शिल्पग्राम उदयपुर: Difference between revisions

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Revision as of 07:27, 7 August 2012

यह एक शिल्पग्राम है जहाँ गोवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपरिक घरों को दिखाया गया है। यहाँ पर इन राज्यों के शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी प्रदर्शित किए जाते हैं। भारत सरकार द्वारा स्थापित "पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र- WZCC" का ग्रामीण शिल्प एवं लोककला का परिसर 'शिल्पग्राम' उदयपुर नगर के पश्चिम में लगभग 3 किमी दूर हवाला गाँव में स्थित है।

प्रमुख बिन्दु

  • लगभग 130 बीघा (70 एकड़) भूमि क्षेत्र में फैला तथा रमणीय अरावली पर्वतमालाओं के मध्य में बना यह शिल्पग्राम पश्चिम क्षेत्र के ग्रामीण तथा आदिम संस्कृति एवं जीवन शैली को दर्शाने वाला एक जीवन्त संग्रहालय है। इस परिसर में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सदस्य राज्यों की पारंपरिक वास्तु कला को दर्शाने वाली झोंपड़ियां निर्मित की गई जिनमें भारत के पश्चिमी क्षेत्र के पांच राज्यों के भौगोलिक वैविध्य एवं निवासियों के रहन-सहन को दर्शाया गया है।
  • इस परिसर में राजस्थान की सात झोपड़ियां है। इनमें से दो झोंपड़ियां बुनकर का आवास है जिनका प्रतिरूप राजस्थान के गांव रामा तथा जैसलमेर के रेगिस्तान में स्थित सम से लिया गया है। मेवाड़ के पर्वतीय अंचल में रहने वाले कुंभकार की झोंपड़ी उदयपुर के 70 किमी दूर स्थित ढोल गाँव से ली गई है। दो अन्य झोंपड़ियां दक्षिण राजस्थान की भील व सहरिया आदिवासियों की हैं जो मूलत: कृषक है।
  • शिल्पग्राम में गुजरात राज्य की प्रतिकात्मक बारह झोंपड़ियां हैं इसमें छ: कच्छ के बन्नी तथा भुजोड़ी गांव से ली गई है। बन्नी झोंपड़ियों में रहने वाली रेबारी, हरिजन व मुस्लिम जाति प्रत्येक की 2-2 झोंपड़ियां है जो कांच की कशीदाकारी, भरथकला व रोगनकाम के सिद्धहस्त शिल्पी माने जाते है। लांबड़िया उत्तर गुजरात के गांव पोशीना के मृण शिल्पी का आवास है जो अपने विशेष प्रकार के घोड़ों के सृजक के रूप में पहचाने जाते हैं। इसी के समीप पश्चिम गुजरात के छोटा उदयपुर के वसेड़ी गांव के बुनकर का आवास बना हुआ है। गुजरात के आदिम व कृषक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली जनजाति राठवा और डांग की झोंपड़ियां अपने पारंपरिक वास्तुशिल्प एवं भित्ति अलंकरणों से पहचानी जा सकती है। इसके अतिरिक्त लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी से तराशी पेठापुर हवेली गुजरात के गांधीनगर जिले की काष्ठ कला का बेजोड़ नमूना है।
  • शिल्पग्राम में स्थित बच्चों के लिए झूले, शिल्प बाजार, घोड़े व ऊँट की सवारी, मृण कला संग्रहालय, कांच जड़ित कार्य एवं भित्तिचित्र भी इसके मुख्य आकर्षण हैं।

शिल्पग्राम उत्सव

भारत में उत्सव एवं पर्व मनाए जाने की प्राचीन परंपरा रही है। यह एक ऐसी परंपरा है जिससे समूचा मानव समाज गायन, नृत्य एवं सृजन के माध्यम से अपने उल्लास को अभिव्यक्त करता है। विश्व एकता की अवधारणा सच्चे अर्थों में हमारे उत्सवों त्यौहारों एवं मेलों में निहित है। इसी परिप्रेक्ष्य में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा हर वर्ष दिसम्बर माह के अन्त में दस दिन का कार्यक्रम उदयपुर स्थित शिल्पग्राम में राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं लोक कला पर्व ”शिल्पग्राम उत्सव” आयोजित किया जाता है। शिल्पग्राम उत्सव में देश के विभिन्न प्रान्तों से आये शिल्पकार भाग लेते है जिन्हें अपनी शिल्प कला हेतु पारम्परिक तरीके से बाजार उपलब्ध कराया जाता है जिससे उन्हें उनके शिल्प का उचित दाम मिल सके। इस उत्सव में देश के लगभग 400 से अधिक शिल्पकार एवं कलाकार भाग लेते है। उत्सव में प्रत्येक दिन को अलग प्रकार से आयोजित किया जाता है जिसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से आये कलाकार अपनी प्रस्तुती देते है।


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