ऑथेलो -रांगेय राघव: Difference between revisions

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==भूमिका==
==भूमिका==

Revision as of 10:07, 27 January 2013

ऑथेलो -रांगेय राघव
लेखक शेक्सपियर
अनुवादक रांगेय राघव
प्रकाशक राजपाल एंड संस
ISBN 817028368x
देश भारत
पृष्ठ: 135
भाषा हिन्दी

ऑथेलो शेक्सपियर द्वारा रचित एक दु:खांत नाटक है, जिसका हिन्दी अनुवाद भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव ने किया था। इस नाटक के हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन 'राजपाल एंड संस' द्वारा हुआ था। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी में अनुवाद किया था, जो सीरीज में पाठकों को उपलब्ध कराए गये हैं।

भूमिका

‘ऑथेलो’ एक दुख दुःखांत नाटक है। शेक्सपियर ने इसे सन 1601 से 1608 के बीच लिखा था। यह समय शेक्सपियर के नाट्य-साहित्य के निर्माण-काल का तीसरा काल माना जाता है, जबकि उसने अपने प्रसिद्ध दुःखान्त नाटक लिखे थे। इस काल के नाटक प्रायः निराशा से भरे हैं। ‘ऑथेलो’ की कथा सम्भवत: शेक्सपियर से पहले भी प्रचलित थी। दरबारी नाटक-मण्डली ने राजा जेम्स प्रथम के समय में 1 नवम्बर, 1604 ई. को सभा में ‘वेनिस का मूर’ नामक नाटक खेला था। शेक्सपियर ने भी ‘ऑथेलो’ नाटक का दूसरा नाम- ‘वेनिस का मूर’ ही रखा है। सम्भवतः यह शेक्सपियर का ही नाटक रहा हो। कथा का मूल स्रोत सम्भवत: 1566 ई. में प्रकाशित जेराल्डी चिन्थियो की ‘हिकैतोमिथी’ पुस्तक से लिखा गया है। अंग्रेज़ी साहित्य में इस कथा का शेक्सपियर के अतिरिक्त कहीं विवरण प्राप्त नहीं होता। शेक्सपियर की कथा और चिन्थिओ की कथा में काफ़ी अन्तर है।

रांगेय राघव के अनुसार

इस कथा में मेरी राय में खलनायक इआगो का चित्रण इतना सबल है कि देखते ही बनता है। प्रायः प्रत्येक पात्र अपना सजीव चित्र छोड़ जाता है। विश्व साहित्य में ‘ऑथेलो’ एक महान रचना है, क्योंकि इसके प्रत्येक पृष्ठ में मानव-जीवन की उन गहराइयों का वर्णन मिलता है, जो सदैव स्मृति पर खिंचकर रह जाती हैं। मैंने अपने अनुवाद को जहाँ तक हुआ है सहज बनाने की चेष्ठा की है। कुछ बातें हमें याद रखनी चाहिए कि शेक्सपियर के समय में स्त्रियों का अभिनय लड़के करते थे। दूसरे, उनके समय में नाटकों में पर्दों का प्रयोग नहीं होता था, दर्शकों को काफ़ी कल्पना करनी पड़ती थी। इन बातों के बावजूद शेक्सपियर की कलम का जादू सिर पर चढ़ कर बोलता है। यदि पाठकों को इस नाटक में कोई कमी लगे तो उसे शेक्सपियर पर न मढ़कर मेरे अनुवाद पर मढ़िए, मैं आभारी रहूँगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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