झाला मान: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "मुगल" to "मुग़ल")
Line 99: Line 99:
रण भीम कला अतंक से ले
रण भीम कला अतंक से ले


झाला को राणा जान मुगल
झाला को राणा जान मुग़ल
फिर टूट पडे थे झाला पर
फिर टूट पडे थे झाला पर
मिट गया वीर जैसे मिटता
मिट गया वीर जैसे मिटता

Revision as of 12:48, 14 May 2013

झाला मान
पूरा नाम झाला मान
अन्य नाम झाला सरदार, मन्नाजी
नागरिकता भारतीय
विशेष परिचय झाला मान महाराणा प्रताप की सेना में थे और 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी के युद्ध में इन्होंने महाराणा प्रताप को बचाया था।
अन्य जानकारी खानवा के युद्ध में राणा साँगा को झाला मान के दादा 'झाला बीदा' ने बचाया था, किन्तु शरीर पर घाव कम होने पर वे पहचान लिये गये थे।

झाला मान या 'मन्नाजी' एक वीर और पराक्रमी झाला सरदार था, जिसका नाम राजस्थान के इतिहास में प्रसिद्ध है। वह महाराणा प्रताप की सेना में था। जिस प्रकार हल्दीघाटी के युद्ध (18 जून, 1576) में झाला मान ने महाराणा प्रताप को बचाया था, ठीक उसी प्रकार से खानवा के युद्ध में राणा साँगा को झाला मान के दादा 'झाला बीदा' ने बचाया था, किन्तु शरीर पर घाव कम होने पर वे पहचान लिये गये थे।[1]

पराक्रम

राजपूतों में आज भी सिसोदिया गौत्र के बाद झाला गौत्र को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। सन 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध ने राणा प्रताप को बुरी तरह तोडकर रख दिया था। अकबर और राणा के बीच वह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे, ऐसा माना जाता है। मुग़लों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति अधिक थी। युद्ध में 'सलीम' (बाद में जहाँगीर) पर राणा प्रताप के आक्रमण को देखकर असंख्य मुग़ल सैनिक उसी तरफ़ बढ़े और प्रताप को घेरकर चारों तरफ़ से प्रहार करने लगे। प्रताप के सिर पर मेवाड़ का राजमुकुट लगा हुआ था। इसलिए मुग़ल सैनिक उसी को निशाना बनाकर वार कर रहे थे। राजपूत सैनिक भी राणा को बचाने के लिए प्राण हथेली पर रखकर संघर्ष कर रहे थे। परन्तु धीरे-धीरे प्रताप संकट में फँसते ही चले जा रहे थे। स्थिति की गम्भीरता को परखकर झाला सरदार मन्नाजी ने स्वामिभक्ति का एक अपूर्व आदर्श प्रस्तुत करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

बलिदान

झाला सरदार मन्नाजी तेज़ी के साथ आगे बढ़ा और उसने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर रख लिया। वह तेज़ी के साथ कुछ दूरी पर जाकर घमासान युद्ध करने लगा। मुग़ल सैनिक उसे ही प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े। राणा प्रताप जो कि इस समय तक बहुत बुरी तरह घायल हो चुके थे, उन्हें युद्ध भूमि से दूर निकल जाने का अवसर मिल गया। उनका सारा शरीर अगणित घावों से लहूलुहान हो चुका था। युद्ध भूमि से जाते-जाते प्रताप ने मन्नाजी को मरते देखा। राजपूतों ने बहादुरी के साथ मुग़लों का मुक़ाबला किया, परन्तु मैदानी तोपों तथा बन्दूकधारियों से सुसज्जित शत्रु की विशाल सेना के सामने समूचा पराक्रम निष्फल रहा। युद्ध भूमि पर उपस्थित बाईस हज़ार राजपूत सैनिकों में से केवल आठ हज़ार जीवित सैनिक युद्ध भूमि से किसी प्रकार बचकर निकल पाये।

इस प्रकार हल्दीघाटी के इस भयंकर युद्ध में बड़ी सादड़ी के जुझारू झाला सरदार मान या मन्नाजी ने राणा की पाग (पगड़ी) लेकर उनका शीश बचाया। राणा अपने बहादुर सरदार का जुझारूपन कभी नहीं भूल सके। इसी युद्ध में राणा का प्राणप्रिय घोड़ा चेतक अपने स्वामी की रक्षा करते हुए शहीद हो गया और इसी युद्ध में उनका अपना बागी भाई शक्तिसिंह भी उनसे आ मिला और उनकी रक्षा में उसका भाई-प्रेम उजागर हो उठा था।

झाला मान के बलिदान पर श्याम नारायण पान्डेय की एक कविता

झाला का बलिदान -श्याम नारायण पान्डेय[2]

रानव समाज में अरुण पड़ा
जल जंतु बीच हो वरूण पड़ा
इस तरह भभकता था राणा
मानों सर्पों में गरूड पड़ा

हय रुण्ड कतर, गज मुण्ड पाछ
अरि व्यूह गले पर फिरती थी
तलवार वीर की तडप तडप
क्षण क्षण बिजली सी गिरती थी

राणा कर ने सर काट काट
दे दिये कपाल कपाली को
शोणित की मदिरा पिला पिला
कर दिया तुष्ट रण काली को

पर दिन भर लडने से तन में
चल रहा पसीना था तर तर
अविरल शोणित सी धारा थी
राणा क्षत से बहती झर झर

घोडा भी उसका शिथिल बना
था उसको चैन ना घावों से
वह अधिक अधिक लडता यदृपि
दुर्लभ था चलना पावों से

तब तक झाला ने देख लिया
राणा प्रताप हैं संकट में
बोला ना बाल बांका होगा
जब तक है प्राण बचे घट में

अपनी तलवार दुधारी ले
भूखे नाहर सा टूट पडा
कल कल मच गया अचानक दल
अश्विन के घन सा फूट पडा

राणा की जय, राणा की जय
वह आगे बढ़ता चला गया
राणा प्रताप की जय करता
राणा तक चढ़ता चला गया

रख लिया छत्र अपने सर पर
राणा प्रताप मस्तक से ले
के सवर्ण पताका जूझ पडा
रण भीम कला अतंक से ले

झाला को राणा जान मुग़ल
फिर टूट पडे थे झाला पर
मिट गया वीर जैसे मिटता
परवाना दीपक ज्वाला पर

झाला ने राणा रक्षा की
रख दिया देश के पानी को
छोडा राणा के साथ साथ
अपनी भी अमर कहानी को

अरि विजय गर्व से फूल उठे
इस तरह हो गया समर अंत
पर किसकी विजय रही बतला
ए सत्य सत्य अंबर अनंत ?


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजस्थान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 मई, 2013।
  2. हल्दीघाटीः झाला का बलिदान ‍-श्याम नारायण पान्डेय (हिंदी) Rajsamand District, Rajasthan। अभिगमन तिथि: 5 मई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख