कुमारी अम्मन मंदिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
 
Line 34: Line 34:
*[http://www.vaikhari.org/kanyakumari.html Kanyakumari Kumari Amman Devi Temple]
*[http://www.vaikhari.org/kanyakumari.html Kanyakumari Kumari Amman Devi Temple]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{तमिलनाडु के पर्यटन स्थल}}
{{तमिलनाडु के पर्यटन स्थल}}{{तमिलनाडु के धार्मिक स्थल}}
[[Category:तमिलनाडु]][[Category:तमिलनाडु के धार्मिक स्थल]][[Category:तमिलनाडु की संस्कृति]][[Category:तमिलनाडु के पर्यटन स्थल]][[Category:हिन्दू मन्दिर]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:तमिलनाडु]][[Category:तमिलनाडु के धार्मिक स्थल]][[Category:तमिलनाडु की संस्कृति]][[Category:तमिलनाडु के पर्यटन स्थल]][[Category:हिन्दू मन्दिर]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 09:45, 4 October 2016

कुमारी अम्मन मंदिर
विवरण 'कुमारी अम्मन मंदिर' तमिलनाडु में समुद्र के तट पर स्थित दक्षिण भाषी लोगों की श्रद्धा और आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
शहर कन्याकुमारी
राज्य तमिलनाडु
निर्माण काल पाण्ड्य शासन काल
पौराणिक मान्यता मान्यता है कि देवी पराशक्ति ने बाणासुर का वध इसी स्थान पर किया था।
अन्य स्थान मंदिर से कुछ ही दूरी पर 'सावित्री घाट', 'गायत्री घाट', 'स्याणु घाट' व 'तीर्थ घाट' स्थित हैं।
संबंधित लेख पार्वती, विष्णु
अन्य जानकारी किसी जमाने में मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की आभा को समुद्री जहाज़ लाइट हाउस समझने की भूल कर बैठते थे, जिस कारण जहाज़ को किनारे करने की कोशिश में वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे।

कुमारी अम्मन मंदिर अथवा कन्याकुमारी मंदिर कन्याकुमारी, तमिलनाडु में स्थित है। समुद्र के तट पर स्थित 'कुमारी अम्मन मंदिर' दक्षिण भाषी लोगों की श्रद्धा और आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर का निर्माण पाण्ड्य राजवंश के शासन काल में हुआ था। मंदिर में सोलह स्तम्भों का एक मंडप निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित अम्मन देवी की नयनाभिराम मूर्ति लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। देवी की नथ में जड़ा हुआ शुद्ध कीमती हीरा दूर तक अपनी जगमगाहट बिखेरता है। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर 'सावित्री घाट', 'गायत्री घाट', 'स्याणु घाट' व 'तीर्थ घाट' स्थित हैं। इन घाटों पर स्नान के उपरांत मंदिर में देवी दर्शनों की परंपरा है।

स्थिति

जिस स्थान पर 'हिन्द महासागर', 'अरब सागर' और 'बंगाल की खाड़ी' की धाराएँ भारत की धरती को चूमती हैं, ठीक वहीं पर 'कुमारी अम्मन मंदिर' स्थित है। यह देवी पार्वती का मंदिर है। मंदिर के पास समुद्र की लहरों की आवाज़ ऐसी सुनाई देती है, मानो स्वर्ग का संगीत कानों में रस घोल रहा हो। यहाँ आने वाले भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं। मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है। कहा जाता है कि किसी जमाने में मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की आभा को समुद्री जहाज़ लाइट हाउस समझने की भूल कर बैठते थे, जिस कारण जहाज़ को किनारे करने की कोशिश में वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे।

पौराणिक उल्लेख

पूर्वाभिमुख इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। क़रीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पाण्ड्य राजवंश के राजाओं के शासन काल में हुआ था। देवी कुमारी पाण्ड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार शक्ति की देवी बाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थीं। बाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति ही कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि बाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा था कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और बाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया।

बाणासुर का अंत

कुछ वर्षों बाद जब कन्या युवावस्था को प्राप्त हुई तो 'सुचिन्द्रम' में उपस्थित भगवान शिव से उनका विवाह होना निश्चित हुआ, क्योंकि देवी तो पार्वती का ही रूप थीं। लेकिन नारद मुनि के गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न नहीं हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य बाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। बाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुँचा। देवी क्रोधित हो गई तो बाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में अपने चक्र आयुध से बाणासुर का अंत किया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के 'कन्याकुमारी' स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी 'कन्याकुमारी' कहलाया तथा मंदिर को 'कुमारी अम्मन' यानी 'कुमारी देवी' का मंदिर कहा जाने लगा।

तिरुवल्लुवर की प्रतिमा

यह भी माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु 'कुमारी अम्मन मंदिर' में जल यात्रा पर्व पर आए थे। यहाँ मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ 'तिरुवकुरल' के 133 अध्यायों का प्रतीक है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख