ऊटी
ऊटी
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विवरण | ऊटी, तमिलनाडु राज्य, दक्षिण-पूर्वी भारत में स्थित है। ऊटी का पुराना नाम 'उटकमंड' और 'उदगमंडलम' था। |
राज्य | तमिलनाडु |
ज़िला | नीलगिरि |
स्थापना | सन् 1821 |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 11° 24' 42.63", पूर्व- 76° 41' 45.24" |
मार्ग स्थिति | ऊटी मैसूर से लगभग 126 किमी. और महाबलीपुरम से लगभग 520 किमी. की दूरी पर स्थित है। |
तापमान | गर्मी- 10°C - 25°C, सर्दी- 5°C -21°C |
प्रसिद्धि | नैसर्गिक सौंदर्य, धुंध से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ और ओस से भीगी पेड़ों की पत्तियाँ |
कब जाएँ | अप्रैल-जून, सितंबर-नवंबर |
कैसे पहुँचें | जलयान, हवाई जहाज़, रेल, बस आदि |
हवाई अड्डा | कोयंबतुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे |
रेलवे स्टेशन | कोयंबतुर रेलवे स्टेशन |
यातायात | साइकिल-रिक्शा, ऑटो-रिक्शा, टैक्सी, सिटी बस |
क्या देखें | बॉटनिकल गार्डन, रोज़ गार्डन, ऊटी झील, डोड्डाबेट्टा |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
क्या खायें | ऊटी चाय, हाथ से बनी चॉकलेट, खुशबूदार तेल और मसालों के लिए प्रसिद्ध है। |
क्या ख़रीदें | नीलगिरि की मशहूर चाय, ऊनी वस्त्र और नर्सरी पलांटस। |
एस.टी.डी. कोड | 0423 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
चित्र:Map-icon.gif | गूगल मानचित्र |
संबंधित लेख | महाबलीपुरम, कन्याकुमारी, चेन्नई, कांचीपुरम |
भाषा | तमिल, कन्नड़, हिन्दी, मलयालम और अंग्रेज़ी |
अन्य जानकारी | अंग्रेज़ों द्वारा 1821 में स्थापित ऊटी का इस्तेमाल 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तक मद्रास प्रेज़िडेंसी के ग्रीष्मकालीन सरकारी मुख्यालय के रूप में किया जाता था। |
अद्यतन | 13:34, 23 दिसम्बर 2014 (IST)
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ऊटी (अंग्रेज़ी:Ooty) तमिल नाडु राज्य, दक्षिण-पूर्वी भारत में स्थित है। ऊटी का पुराना नाम उटकमंड और उदगमंडलम था। यह समुद्रतल से 2,240 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है। ऊटी नीलगिरि ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय है और नीलगिरि पहाड़ियों में स्थित है। इसके चारों तरफ कई चोटियाँ हैं, जिनमें तमिल नाडु का सबसे ऊँचा क्षेत्र डोडाबेट्टा (2,637 मीटर) भी शामिल है।
उदगमंडमल
पर्वतीय स्थलों की रानी ऊटी का वास्तविक नाम उदगमंडमल है। तमिल नाडु में स्थित ऊटी दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। पश्चिमी घाट पर स्थित ऊटी समुद्र तल से 2240 मीटर की ऊंचाई पर है। ऊटी नीलगिरी ज़िले का मुख्यालय भी है। यहां सदियों से ज़्यादातर तोडा जनजाति के लोग रहते है। लेकिन ऊटी की वास्तविक खोज करने और उसके विकास का श्रेय अंग्रेजों को जाता है। 1822 में कोयंबटूर के तत्कालीन कलक्टर जॉन सुविलिअन ने यहां स्टोन हाउस का निर्माण करवाया था जो अब गवर्मेट आर्ट कॉलेज के प्रधानाचार्य का चैंबर है और ऊटी की पहचान भी। ब्रिटिश राज के दौरान ऊटी मद्रास प्रेसिडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी।[1][[चित्र:Ooty-Lake-1.jpg|thumb|left|ऊटी झील]]
क्वीन ऑफ़ हिल स्टेशन
ऊटी की स्थिति के कारण यहाँ का मौसम पूरे वर्ष खुशनुमा रहता है। हालाँकि ठंड में दक्षिण भारत के अन्य भागों की तुलना में यहाँ का मौसम अधिक ठंडा होता है। औपनिवेशिक विरासत इस शहर में ब्रिटिश संस्कृति तथा वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है। वास्तव में कई पर्यटकों ने गौर किया है कि यह हिल स्टेशन सुंदर अंग्रेज़ गाँव की तरह दिखता है। शायद यही कारण है कि इस शहर को अधिकतम आय पर्यटन से होती है। ब्रिटिश यहाँ की जलवायु तथा प्राकृतिक सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस स्थान का नाम ऊटी “क्वीन ऑफ़ हिल स्टेशन” रखा। उनके लिए यह एक छिपे हुए खजाने के समान था क्योंकि वे दक्षिण भारत के किसी भी अन्य शहर के गर्म और नम मौसम को सहन नहीं कर सकते थे। वे इस क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत करने के लिए इतने उत्सुक थे कि उन्होंने ऊटी के निकट स्थित वेलिंगटन शहर में मद्रास रेजीमेंट की स्थापना की। उस दिन से वेलिंगटन में मद्रास रेजीमेंट का केंद्र बना हुआ है। इसके कारण ऊटी ब्रिटिश लोगों में ग्रीष्म / सप्ताहांत स्थान के रूप में लोकप्रिय हुआ। इस शहर को मद्रास प्रेसीडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ऊटी का विकास भी किया तथा यहाँ नीलगिरी में चाय, सागौन और सिनकोना का उत्पादन प्रारंभ किया। ऊटी में तथा इसके आसपास चाय और कॉफ़ी के अनेक बाग़ान हैं।[2]
इतिहास
अंग्रेज़ों द्वारा 1821 में स्थापित ऊटी का इस्तेमाल 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तक मद्रास प्रेज़िडेंसी के ग्रीष्मकालीन सरकारी मुख्यालय के रूप में किया जाता था। प्राथमिक तौर पर यह नगर एक पर्यटक आरामगाह है।[[चित्र:Rose-Garden-Ooty-2.jpg|thumb|250px|left|रोज़ गार्डन, ऊटी]]
लुप्त इतिहास
ऊटी में पुराने विश्व का एक आकर्षण है जो आज भी बेजोड़ है। जब आप ऊटी में भ्रमण करते हैं तब यहाँ की वास्तुकला तथा कुछ इमारतों के डिज़ाइन को देखकर आप पुराने समय में पहुँच जाते हैं। वे आपको बीते हुए समय की याद दिलाती हैं। ऊटी के पतन का कोई इतिहास नहीं है। ब्रिटिश लोगों के आने के बाद इसका उदय प्रारंभ हुआ। हालाँकि इन बीती दो शताब्दियों में इस शहर ने ऐसा इतिहास बनाया है जो पहले कभी नहीं था या जो हमारे लिए लुप्त था। आधुनिक विश्व के लिए ऊटी का इतिहास ब्रिटिश लोगों के आने के बाद से प्रारंभ होता है, मुख्य रूप से सिपाहियों के आने के बाद से। जैसे ही आप इस शहर में प्रवेश करते हैं वैसे ही आपको यह पता चल जाता है कि इस शहर पर ब्रिटिश लोगों का प्रभाव है। कला और इमारतों की वास्तुकला, घरों के डिज़ाइन और निर्माण की शैली सभी कुछ ब्रिटिश काल से मिलता जुलता है। यहाँ के स्थानीय लोगों के जीवन पर ब्रिटिश परंपराओं का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। स्थानीय खाद्य पदार्थों पर भी अंग्रेज़ी डिशेज़ (खाद्य पदार्थों) का प्रभाव दिखाई देता है। इसके परिणामस्वरूप आपको ऊटी में अंग्रेज़ी और भारतीय मसालों के सम्मिश्रण से बना सबसे उत्तम खाना खाने मिल सकता है। ब्रिटिश लोगों ने मेहनती स्थानीय लोगों के साथ मिलकर ऊटी को सफलता दिलवाई। समृद्ध सांस्कृतिक विरासत केवल ऊटी में ही देखने मिलती है। अत: आज यह कहना गलत होगा कि ऊटी का कोई ऐतिहासिक भूतकाल नहीं है या भारत के विकास में इसका कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है।[2]
कृषि और व्यापार
ऊटी चाय प्रसंस्करण और वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
यातायात और परिवहन
- वायु मार्ग
ऊटी का निकटतम हवाई अड्डा कोयंबतुर है।
- रेल मार्ग
ऊटी रेलमार्ग द्वारा अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है। ऊटी का निकटतम रेलवे स्टेशन मुख्य जंक्शन कोयंबतुर/कोयंबटूर है।
- सड़क मार्ग
ऊटी के लिए बंगलोर, कोचीन, मैसूर, कालीकट और कोयंबटूर आदि स्थानों से नियमित बसें उपलब्ध हैं। राज्य राजमार्ग 17 से मड्डुर और मैसूर होते हुए बांदीपुर पहुंचा जा सकता है। यहाँ से ऊटी की दूरी केवल 67 किलोमीटर है। ऊटी पहुंचने का दूसरा रास्ता जो कोयंबतूर से 105 किमी दूर है, एकदम अलग तरह का है। कोयंबतूर से मिट्टूप्लायम पहुंचते ही ऊटी की पहाड़ियां नज़र आने लगती हैं। मैदानी इलाक़ों में ही कुछ किलोमीटर का रास्ता केरल की हरियाली जैसा है, जो जंगलों के बीच से गुजरता है। जंगली में नारियल, खजूर और ताड़ के अलाव़ा कई खूबसूरत जंगली पौधे नज़र आते हैं।
शिक्षण संस्थान
thumb|250px|पाइकारा झील, ऊटी ऊटी में शैक्षणिक संस्थानों में गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, गवर्नमेंट पॉलीटेक्निक, लॉले इंस्टिट्यूट और होमियोपैथिक औषधि शोध केंद्र शामिल हैं।
खानपान एवं ख़रीददारी
ऊटी में कई चाइनीज रेस्टोरेंट हैं लेकिन सबसे मशहूर है नीलगिरी पुस्तकालय के पास स्थित शिंकोज। कमर्शियल रोड पर बने कुरिंजी में दक्षिण भारतीय भोजन मिलता है। ऊटी चाय, हाथ से बनी चॉकलेट, खुशबूदार तेल और मसालों के लिए प्रसिद्ध है। कमर्शियल रोड पर हाथ से बनी चॉकलेट कई तरह के स्वादों में मिल जाएगी। यहां हर दूसरी दुकान पर यह चॉकलेट मिलती है। हॉस्पिटल रोड की किंग स्टार कंफेक्शनरी इसके लिए बहुत प्रसिद्ध है। कमर्शियल रोड की बिग शॉप से विभिन्न आकार और डिजाइन के गहने ख़रीदे जा सकते हैं। यहां के कारीगर पारंपरिक तोडा शैली के चांदी के गहनों को सोने में बना देते हैं। तमिल नाडु सरकार के हस्तशिल्प केंद्र पुंपुहार में बड़ी संख्या में लोग हस्तशिल्प से बने सामान की ख़रीददारी करने आते हैं।[1]
पर्यटन
नीलगिरी यानी नीले पहाड़ की गोद में बसा हरा भरा पर्यटन स्थल ऊटी दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख पर्वतीय स्थलों में से एक है। यह देशी विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन आराम से छुट्टियाँ बिताने के लिए यह एक उम्दा पिकनिक स्पॉट है। ख़ूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे, घने जंगल, झरने, पहाड़ की चोटियाँ और दूर-दूर तक फैले चाय के बाग़ान यहाँ आने वाले सैलानियों का मन मोह लेते हैं। यहाँ की जलवायु हमेशा खुशनुमा रहती है। ऊटी का नैसर्गिक सौंदर्य, धुंध से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ, ओस से भीगी पेड़ों की पत्तियाँ और अनेक ख़ूबसूरत नज़ारों को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते यहाँ का तापमान गर्मियों में भी 25 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा नहीं होता।
पर्यटन स्थल
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बॉटनिकल गार्डन, ऊटी |
रोज़ गार्डन|250px|center |
रोज़ गार्डन, ऊटी |
ऊटी झील|250px|center |
ऊटी झील |
डोड्डाबेट्टा|250px|center |
डोड्डाबेट्टा, ऊटी |
बॉटनिकल गार्डन
यहाँ के दर्शनीय स्थलों में सबसे पहला नाम बॉटनिकल गार्डन का आता है। यह गार्डन 22 एकड़ में फैला हुआ है और यहाँ लगभग 650 दुर्लभ किस्म के पेड़-पौधों के साथ-साथ, अद्भुत ऑर्किड, रंगबिरंगे लिली, ख़ूबसूरत झाड़ियाँ व 2000 हज़ार साल पुराने पेड़ का अवशेष देखने को मिलता है। वनस्पति विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए यह एक प्रमुख स्थान है। इस वनस्पति उद्यान की स्थापना सन 1847 में की गई थी। 22 हेक्टेयर में फैले इस ख़ूबसूरत बाग़ की देखरख बाग़वानी विभाग करता है। यहां एक पेड़ के जीवाश्म संभाल कर रखे गए हैं जिसके बारे में माना जाता है कि यह 20 मिलियन वर्ष पुराना है। प्रकृति प्रेमियों के बीच यह गार्डन बहुत लोकप्रिय है। मई के महीने में यहां ग्रीष्मोत्सव मनाया जाता है। इस महोत्सव में फूलों की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसमें स्थानीय प्रसिद्ध कलाकार भाग लेते हैं।
रोज़ गार्डन
ऊटी का रोज़ गार्डन बहुत ख़ूबसूरत है। इस गार्डन की स्थापना 1995 में की गई थी। यह उद्यान 10 एकड़ में फैला हुआ है। रोज़ गार्डन में लगभग 200 प्रकार के गुलाब के फूलों का संग्रह है। रोज़ गार्डन को दक्षिण एशिया का सबसे उत्कृष्टता का पुरस्कार मिला है।
ऊटी झील
ऊटी झील को देखना अपने आप में एक अनोखा और सुखद अनुभव है। झील के चारों ओर फूलों की क्यारियों में तरह तरह के रंगबिरंगे फूल यहाँ की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं। झील में मोटर बोट, पैडल बोट और रो बोट्स में बोटिंग का लुत्फ भी उठाया जा सकता है। इस झील का निर्माण यहां के पहले कलक्टर जॉन सुविलिअन ने सन 1825 में करवाया था। यह झील 2.5 किमी. लंबी है। यहां आने वाले पर्यटक बोटिंग और मछली पकड़ने का आनंद ले सकते हैं। मछलियों के लिए चारा ख़रीदने से पहले आपके पास मछली पकड़ने की अनुमति होनी चाहिए। यहां एक बग़ीचा और जेट्टी भी है। इन्हीं विशेषताओं के कारण प्रतिवर्ष 12 लाख दर्शक यहां आते हैं।
नीलगिरि की पहाड़ियाँ
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
नीलगिरि की पहाड़ियाँ हिमरेखा में नहीं आतीं, लेकिन गर्मियों में यहां का तापमान दिन में 25 डिग्री सेण्टीग्रेड से ऊपर नहीं जाता और रात में 10 डिग्री तक गिर जाता है। जिसका अंदाज़ बाहर के पर्यटकों को नहीं होता, क्योंकि वे यह मानकर चलते हैं कि दक्षिण भारत का पहाड़ी सैरगाह होने की वजह से यहां भी गर्मी होगी। जिसके चलते यहां आने के बाद ज़्यादातर पर्यटकों को गर्म कपड़े ख़रीदने पर मजबूर होना पड़ता है। फिर अगर बारिश हो जाये तो तापमान और भी नीचे आ जाता है।
डोड्डाबेट्टा
डोड्डाबेट्टा ऊटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है। यह नीलगिरि की सबसे ऊँचा पर्वत है। इसकी ऊँचाई 2,636 मीटर है, यहाँ से पूरे इलाक़े का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह चोटी समुद्र तल से 2623 मीटर ऊपर है। यह ज़िले की सबसे ऊंची चोटी मानी जाती है। यह चोटी ऊटी से केवल 10 किमी. दूर है इसलिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां से घाटी का नज़ारा अद्धभुत दिखाई पड़ता है। लोगों का कहना है कि जब मौसम साफ़ होता है तब यहां से दूर के इलाक़े भी दिखाई देते हैं जिनमें कायंबटूर के मैदानी इलाक़े भी शामिल हैं।
मदुमलाई वन्यजीव अभ्यारण्य
यह वन्यजीव अभ्यारण्य ऊटी से 67 किमी. दूर है। यहां पर वनस्पति और जन्तुओं की कुछ दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं और कई लुप्तप्राय: जानवर भी यहां पाए जाते हैं। हाथी, सांभर, चीतल, हिरन आसानी से देखे जा सकते हैं। जानवरों के अलावा यहां रंगबिरंगे पक्षी भी उड़ते हुए दिखाई देते हैं। अभ्यारण्य में ही बना थेप्पाक्कडु हाथी कैंप बच्चों को बहुत लुभाता है।
ललित कला अकादमी आर्ट गैलरी
कला के शौकीन लोगों के लिए ऊटी में ललित कला अकादमी आर्ट गैलरी भी है। जो ऊटी से 2 किलोमीटर दूर स्थित है। गैलरी में भारत की विभिन्न प्रकार की पेंटिंग्स और स्कल्पचर्स मौज़ूद हैं।
कालहट्टी जलप्रपात
कालहट्टी जलप्रपात ऊटी का एक ख़ूबसूरत दर्शनीय स्थल है। यह जलप्रपात लगभग 100 फुट ऊँचा है, यहाँ का सौंदर्य देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहाँ अनेक प्रकार के पर्वतीय पक्षी भी देखे जा सकते हैं। कलपट्टी के किनारे स्थित यह झरना 100 फीट ऊंचा है। यह वॉटरफॉल्स ऊटी से केवल 13 किमी. की दूरी पर है इसलिए ऊटी आने वाले पर्यटक यहां की सुंदरता को देखने भी आते हैं। झरने के अलावा कलहट्टी-मसिनागुडी की ढलानों पर जानवरों की अनेक प्रजातियां भी देखी जा सकती हैं, जिसमें चीते, सांभर और जंगली भैसा शामिल हैं।
डाल्फिंस नोज
ऊटी में डाल्फिंस नोज एक ख़ूबसूरत पिकनिक स्पॉट है। डाल्फिंस नोज अपने नाम की तरह ही रोचक व रोमांच पैदा करने वाला स्थल है। यहाँ से पूरी घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। मौसम साफ़ हो तो यहाँ से कोटागिरी के कैथरज फॉल्स का नज़ारा भी देखा जा सकता है। यहाँ बच्चों के साथ आउटडोर पिकनिक का भरपूर आनंद लिया जा सकता है।
कोटागिरी हिल
कोटागिरी हिल ऊटी से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोटागिरी हिल प्राकृतिक सुंदरता के लिए दर्शनीय स्थल है। यहाँ के चाय बाग़ानों को देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। नीलगिरी के तीन हिल स्टेशनों में से यह सबसे पुराना है। यह ऊटी और कून्नूर के समान प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि इन दोनों की अपेक्षा कोटागिरी का मौसम ज़्यादा सुहावना होता है। यहां बहुत ही सुंदर हिल रिजॉर्ट है जहां चाय के बहुत खूबसूरत बाग़ान हैं। हिल स्टेशन की सभी खूबियां यहां मौजूद लगती हैं। यहां की यात्रा आपको निराश नहीं करेगी।
वाइल्ड लाइफ़ सैक्चुरी
वाइल्ड लाइफ़ सैक्चुरी कोटागिरी से आगे ऊटी से 67 किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ दुर्लभ प्रजातियों के पशुओं को देखा जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 ऊटी:दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन (हिन्दी) यात्रा सलाह। अभिगमन तिथि: 22 दिसम्बर, 2014।
- ↑ 2.0 2.1 ऊटी पर्यटन – पहाड़ियों की रानी (हिन्दी) hindi native planet। अभिगमन तिथि: 22 दिसम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
- एक रोमांटिक यात्रा ऊटी की
- पर्वतीय स्थलों की रानी ऊटी (उदगमंडमल) की यात्रा
- सफर सुहाना मैसूर से ऊटी तक
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