शिव दयाल साहब: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
Line 8: Line 8:
|मृत्यु=[[15 जून]],  [[1878]]
|मृत्यु=[[15 जून]],  [[1878]]
|मृत्यु स्थान=[[आगरा]]
|मृत्यु स्थान=[[आगरा]]
|अविभावक=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=नारायनी देवी
|पति/पत्नी=नारायनी देवी
|संतान=
|संतान=

Revision as of 05:05, 29 May 2015

शिव दयाल साहब
अन्य नाम तुलसी राम (मूल नाम)
जन्म 24 अगस्त,1818 ई.
जन्म भूमि आगरा
मृत्यु 15 जून, 1878
मृत्यु स्थान आगरा
पति/पत्नी नारायनी देवी
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ इन्होंने दो पुस्तकें लिखी थीं, एक गद्य में और एक छंद में। इन दोनों पुस्तकों का शीर्षक सार वचन है।
भाषा हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत, अरबी और गुरुमुखी
प्रसिद्धि संत
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शिव दयाल साहब 'राधा स्वामी सत्संग' के संस्थापक थे, जिसके अनुयायी हिन्दू और सिक्ख दोनों हैं। 1861 ई. में इन्होंने संत सतगुरु के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया था।

शिव दयाल साहब (मूल नाम 'तुलसी राम', जन्म- 24 अगस्त,1818 ई., आगरा; मृत्यु-15 जून, 1878 ई.) दीक्षित हिन्दू संप्रदाय 'राधा स्वामी सत्संग' के संस्थापक थे, जिसके अनुयायी हिन्दू और सिक्ख दोनों हैं। इन्हें राधास्वामी मत की शिक्षाओं को आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है। इनके द्वारा सिखायी गई यौगिक पद्धति "सुरत शब्द योग" के तौर पर जानी जाती है।

  • शिव दयाल साहब जी का जन्म 24 अगस्त, 1818 ई. को आगरा, उत्तर प्रदेश में जन्माष्टमी के दिन हुआ था।
  • इनके माता-पिता हाथरस के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे।
  • पाँच वर्ष की आयु में शिव दयाल को पाठशाला भेजा गया, जहाँ उन्होंने हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी और गुरुमुखी सीखी। उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया।
  • एक धार्मिक वैष्णव परिवार में जन्में शिव दयाल साहूकार के रूप में स्थापित हुए थे।
  • छोटी आयु में ही शिव दयाल का विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ था, जो स्वभाव की बहुत विशाल हृदयी थीं। वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं।
  • शिव दयाल जी स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फ़ारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए थे। लेकिन यह नौकरी उन्हें रास नहीं आई। उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फ़ारसी अध्यापक की नौकरी कर ली।
  • सांसारिक उपलब्धियाँ उन्हें आकर्षित नहीं करती थीं और उन्होंने वह बढ़िया नौकरी भी छोड़ दी। अब शिव दयाल जी अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए।
  • 1861 में उन्होंने संत सतगुरु के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया और अनुयायियों के एक समूह का निर्देश देने लगे।
  • शिव दयाल साहब ने दो पुस्तकें लिखीं, एक गद्य में और एक छंद में। इन दोनों पुस्तकों का शीर्षक सार वचन है।
  • 15 जून, 1878 ई. में शिव दयाल साहब का स्वर्गवास आगरा में हुआ। उनकी अस्थियां आगरा के पास एक बग़ीचे[1] में स्थित समाधि में रखी गईं, जिसका नामकरण उनके नाम पर किया गया है। यह इस संप्रदाय का प्रमुख मुख्यालय है।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दयाल बाग़
  2. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-5 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 300 |

संबंधित लेख