गायत्री मन्त्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "ह्रदय" to "हृदय")
 
Line 16: Line 16:
गायत्री साधना के नियम बहुत सरल हैं। [[स्नान]] आदि से शुद्ध होकर प्रात:काल पूर्व की ओर, सायंकाल पश्चिम की ओर मुंह करके, आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए। पास में [[जल]] का पात्र तथा [[धूपबत्ती]] जलाकर रख लेनी चाहिए। जल और [[अग्नि]] को साक्षी रूप में समीप रखकर जप करना उत्तम है। आरम्भ में गायत्री के चित्र का पूजन अभिवादन या [[ध्यान]] करना चाहिए, पीछे जप इस प्रकार आरम्भ करना चाहिए कि कंठ से [[ध्वनि]] होती रहे, होंठ हिलते रहें, पर पास बैठा हुआ भी दूसरा मनुष्य उसे स्पष्ट रूप से न सुन समझ सके। तर्जनी उंगली से माला का स्पर्श करना चाहिए। एक माला पूरी होने के बाद उसे उलट देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए। जप पूरा होने पर पास में रखे हुए जल को [[सूर्य]] के सामने अर्घ्य चढ़ा देना चाहिए। [[रविवार]] गायत्री का दिन है, उस दिन उपवास या हवन हो सके तो उत्तम है।<ref name="aa"/>
गायत्री साधना के नियम बहुत सरल हैं। [[स्नान]] आदि से शुद्ध होकर प्रात:काल पूर्व की ओर, सायंकाल पश्चिम की ओर मुंह करके, आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए। पास में [[जल]] का पात्र तथा [[धूपबत्ती]] जलाकर रख लेनी चाहिए। जल और [[अग्नि]] को साक्षी रूप में समीप रखकर जप करना उत्तम है। आरम्भ में गायत्री के चित्र का पूजन अभिवादन या [[ध्यान]] करना चाहिए, पीछे जप इस प्रकार आरम्भ करना चाहिए कि कंठ से [[ध्वनि]] होती रहे, होंठ हिलते रहें, पर पास बैठा हुआ भी दूसरा मनुष्य उसे स्पष्ट रूप से न सुन समझ सके। तर्जनी उंगली से माला का स्पर्श करना चाहिए। एक माला पूरी होने के बाद उसे उलट देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए। जप पूरा होने पर पास में रखे हुए जल को [[सूर्य]] के सामने अर्घ्य चढ़ा देना चाहिए। [[रविवार]] गायत्री का दिन है, उस दिन उपवास या हवन हो सके तो उत्तम है।<ref name="aa"/>
==गायत्री मंत्र पर महापुरुषों के विचार==
==गायत्री मंत्र पर महापुरुषों के विचार==
*"गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त ह्रदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।" -[[महात्मा गाँधी]]
*"गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।" -[[महात्मा गाँधी]]


*"ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है।" -[[मदन मोहन मालवीय|महामना मदन मोहन मालवीय]]
*"ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है।" -[[मदन मोहन मालवीय|महामना मदन मोहन मालवीय]]

Latest revision as of 09:55, 24 February 2017

thumb|गायत्री मन्त्र|200px गायत्री मन्त्र हिन्दू ब्राह्मणों का मूल मंत्र है, विशेषकर उनका जो जनेऊ धारण करते हैं। इस मंत्र के द्वारा वे देवी का आह्वान करते हैं। यह मंत्र सूर्य भगवान को समर्पित है। इसलिए इस मंत्र को सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पढ़ा जाता है। वैदिक शिक्षा लेने वाले युवकों के उपनयन और जनेऊ संस्कार के समय भी इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है। ऐसी शिक्षा को 'गायत्री दीक्षा' कहा जाता है।

सबसे पवित्र मन्त्र

'गायत्री', 'सावित्री' और 'सरस्वती' एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- "जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है। गायत्री मन्त्र ऋक्, यजु, साम, काण्व, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है, किन्तु सर्वत्र एक ही मिलता है। इसमें चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।[1]

अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें। ( अर्थः- उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। )

महत्त्व

गायत्री सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मंत्र है। जो कार्य संसार में किसी अन्य मंत्र से हो सकता है, गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है। समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर में कही गयी है। अथर्ववेद में गायत्री को आयु, विद्या, संतान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। विश्वामित्र ऋषि ने कहा है, "गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। संपूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं हैं।"[2]

24 अक्षर

गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में अनेक ज्ञान-विज्ञान छिपे हुए हैं। गायत्री साधना द्वारा आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है और अनेक ऋद्धि-सिद्धियां परिलक्षित होने लगती हैं। गायत्री उपासना से तुरंत आत्मबल बढ़ता है। गायत्री साधना एक बहुमूल्य दिव्य संपत्ति है। इस संपत्ति को इकट्ठी करके साधक उसके बदले में सांसारिक सुख एवं आत्मिक आनन्द भली प्रकार प्राप्त कर सकता है। गायत्री के 24 अक्षरों का गुंथन ऐसा विचित्र एवं रहस्यमय है कि उनके उच्चारण मात्र से जिव्हा, कंठ, तालु एवं मूर्धा में अवस्थित नाड़ी तंतुओं का एक अद्भुत क्रम में संचालन होता है। इस प्रकार गायत्री के जप से अनायास ही एक महत्वपूर्ण योग साधना होने लगती है और उन गुप्त शक्ति केंद्रों के जागरण से आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगता है।

भगवान का नारी स्वरूप 'गायत्री'

'गायत्री' भगवान का नारी रूप है। भगवान की माता के रूप में उपासना करने से दर्पण के प्रतिबिम्ब एवं कुएं की आवाज़ की तरह वे भी हमारे लिए उसी प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं। गायत्री को "भूलोक की कामधेनु" कहा गया है। गायत्री को 'सुधा' भी कहा गया है, क्योंकि जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर सच्चा अमृत प्रदान करने की शक्ति से वह परिपूर्ण हैं। गायत्री को 'पारसमणि' कहा गया है, क्योंकि उसके स्पर्श से लोहे के समान कलुषित अंत:करणों का शुद्ध स्वर्ण जैसा महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाता है। गायत्री को 'कल्पवृक्ष' कहा गया है, क्योंकि इसकी छाया में बैठकर मनुष्य उन सब कामनाओं को पूर्ण कर सकता है जो उसके लिए उचित एवं आवश्यक है। श्रद्धापूर्वक गायत्री माता का आंचल पकड़ने का परिणाम सदा कल्याणपरक होता है। गायत्री को 'ब्रह्मास्त्र' कहा गया है, क्योंकि कभी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती। इसका प्रयोग कभी भी व्यर्थ नहीं होता है।

साधना के नियम

गायत्री साधना के नियम बहुत सरल हैं। स्नान आदि से शुद्ध होकर प्रात:काल पूर्व की ओर, सायंकाल पश्चिम की ओर मुंह करके, आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए। पास में जल का पात्र तथा धूपबत्ती जलाकर रख लेनी चाहिए। जल और अग्नि को साक्षी रूप में समीप रखकर जप करना उत्तम है। आरम्भ में गायत्री के चित्र का पूजन अभिवादन या ध्यान करना चाहिए, पीछे जप इस प्रकार आरम्भ करना चाहिए कि कंठ से ध्वनि होती रहे, होंठ हिलते रहें, पर पास बैठा हुआ भी दूसरा मनुष्य उसे स्पष्ट रूप से न सुन समझ सके। तर्जनी उंगली से माला का स्पर्श करना चाहिए। एक माला पूरी होने के बाद उसे उलट देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए। जप पूरा होने पर पास में रखे हुए जल को सूर्य के सामने अर्घ्य चढ़ा देना चाहिए। रविवार गायत्री का दिन है, उस दिन उपवास या हवन हो सके तो उत्तम है।[2]

गायत्री मंत्र पर महापुरुषों के विचार

  • "गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।" -महात्मा गाँधी
  • "ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है।" -महामना मदन मोहन मालवीय
  • "भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह इतना सरल है कि एक ही श्वाँस में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह मंत्र है गायत्री मंत्र।" -रवींद्रनाथ टैगोर
  • "गायत्री में ऐसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती है।" -योगी अरविंद
  • "गायत्री का जप करने से बडी‍-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति भारी है।" -स्वामी रामकृष्ण परमहंस
  • "गायत्री सद्‌बुद्धि का मंत्र है, इसलिए उसे मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है।" -स्वामी विवेकानंद


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाजसनेयी सं0 3।35
  2. 2.0 2.1 सर्वश्रेष्ठ मंत्र माना गया है गायत्री को (हिन्दी) प्रभा साक्षी। अभिगमन तिथि: 31 जनवरी, 2015।

संबंधित लेख