चैत्र: Difference between revisions
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*इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं। | *इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं। | ||
*[[पुराण]] अनुसार इसी दिन भगवान [[विष्णु]] ने [[दशावतार]] में से पहला [[मत्स्य अवतार]] लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। | *[[पुराण]] अनुसार इसी दिन भगवान [[विष्णु]] ने [[विष्णु के अवतार|दशावतार]] में से पहला [[मत्स्य अवतार]] लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। | ||
*प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरूआत हुई। | *प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरूआत हुई। | ||
*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही [[सत युग]] का प्रारंभ माना जाता है। यह तिथि हमें सतयुग की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है। | *चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही [[सत युग]] का प्रारंभ माना जाता है। यह तिथि हमें सतयुग की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है। |
Revision as of 12:58, 14 September 2010
- चैत्र हिंदू पंचांग का प्रथम मास है।
- हिंदू नववर्ष के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े।
- इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं।
- पुराण अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था।
- प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरूआत हुई।
- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सत युग का प्रारंभ माना जाता है। यह तिथि हमें सतयुग की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है।
- सतयुग का अर्थ है हम कर्म करें और कर्तव्य के मार्ग पर आगे बढ़े।
- इस मास के सामान्य कृत्यों का विवरण कृत्यरत्नाकर, [1]; निर्णयसिन्धु, [2]में मिलता है।
- शुक्ल प्रतिपदा कल्पादि तिथि है।
- इस दिन से प्रारम्भ कर चार मास तक जलदान करना चाहिए।
- शुक्ल तृतीयों को उमा, शिव तथा अग्नि का पूजन होना चाहिए।
- शुक्ल तृतीया मन्वादि तिथि है। उसी दिन मत्स्यजयन्ती मनानी चाहिए।
- चतुर्थी को गणेशजी का लड्डुओं से पूजन होना चाहिए।
- पंचमी को लक्ष्मी पूजन तथा नागों के पूजन का विधान है।
- षष्ठी के लिए स्वामी कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
- सप्तमी को दमनक पौधे से सूर्यपूजन की विधि है।
- अष्टमी को भवानी कुछ महत्वपूर्ण व्रतों का अन्यत्र भी परिगणन किया गया है। यात्रा होती है। इस दिन ब्रह्मपुत्र नदी में स्नान का महत्व है।
- नवमी को भद्रकाली की पूजा होती है।
- दशमी को दमनक पौधे से धर्मराज की पूजा का विधान है।
- शुक्ल एकादशी को कृष्ण भगवान का दोलोत्सव तथा दमनक से ऋषियों का पूजन होता है। महिलाएँ कृष्णपत्नी रुक्मिणी का पूजन करती हैं तथा सन्ध्या काल में सभी दिशाओं में पंचगव्य फेंकती हैं। *द्वादशी को दमनकोत्सव मनाया जाता है।
- त्रयोदशी को कामदेव की पूजा चम्पा के पुष्पों तथा चन्दन के लप से की जाती है।
- चतुर्दशी को नृसिंहदोलोत्सव मनाया जाता है। दमनक पौधे से एकवीर, भैरव तथा शिव की पूजा की जाती है।
- पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमज्जयन्ती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता है।
विधि
- नए साल का आरंभ हमें सूर्य पूजन से करके करना चाहिए।
- सूर्य को प्रत्यक्ष देव माना गया है।
- सूर्य से हमें ऊर्जा मिलती है।
- हम सूर्य की तरह ऊर्जावान है।
- इस दिन सूर्य उदय से पहले जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो, उबटन लगाकर स्नान करें।
- नए वस्त्र पहनें और सूर्य के दर्शन करें।
- सूर्य को अध्र्य दें और पूजन कर नए साल के लिए प्रार्थना करें।
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