रत्न: Difference between revisions
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रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न शरीर की शोभा आभूषणों के रूप में तो बढ़ाते ही हैं और कुछ लोगों का मानना है की रत्न अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। इन रत्नों से जहाँ स्वयं को सजाने-सँवारने की स्पर्धा लोगों में पाई जाती है वहीं संपन्नता के प्रतीक ये अनमोल रत्न अपने आकर्षण तथा उत्कृष्टता से सबको वशीभूत कर विश्व व्यापी से बखाने जाते हैं। रत्न और जवाहरात के नाम से जाने हुए ये खनिज पदार्थ विश्व की बहुमूल्य राशी हैं, जो युगों से अगणित मनों को मोहते हुए अपनी महत्ता बनाए हुए हैं। | रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न शरीर की शोभा आभूषणों के रूप में तो बढ़ाते ही हैं और कुछ लोगों का मानना है की रत्न अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। इन रत्नों से जहाँ स्वयं को सजाने-सँवारने की स्पर्धा लोगों में पाई जाती है वहीं संपन्नता के प्रतीक ये अनमोल रत्न अपने आकर्षण तथा उत्कृष्टता से सबको वशीभूत कर विश्व व्यापी से बखाने जाते हैं। रत्न और जवाहरात के नाम से जाने हुए ये खनिज पदार्थ विश्व की बहुमूल्य राशी हैं, जो युगों से अगणित मनों को मोहते हुए अपनी महत्ता बनाए हुए हैं। | ||
==इतिहास== | |||
रत्नों का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है। भारत की तरह अन्य देशों में भी इनके जन्म सम्बंधी अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं। हमारे देश में इस तरह की जो कथाएं विख्यात हैं, वे [[पुरणु|पुरणों]] से ली गई हैं। पुरणों में रत्नों की उत्पत्ति से सम्बंधित अनेक कथाएँ हैं। '[[अग्निपुराण]]' के अनुसार - महाबली असुरराज वृत्रासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया। तब भगवान [[विष्णु]] की सलाह पर [[इन्द्र]] ने महर्षि [[दधीचि]] से [[वज्र अस्त्र|वज्र]] बनाने हेतु उनकी हड्डियों का दान मांगा। फिर इसी वज्र से देवताओं ने वृत्रासुर का संहार किया। अस्त्र (वज्र) निर्माण के समय दधीचि की अस्थियों के, जो सूक्ष्म अंश [[पृथ्वी]] पर गिरे, उनसे तमाम रत्नों की खानें बन गईं। | |||
इसी तरह एक दूसरी कथा है। उसके अनुसार - समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्रकट हुआ तो असुर उस अमृत को लेकर भाग गए। [[देवता|देवताओं]] ने उनका पीछा किया। आपस में छीना-झपटी हुई और इस प्रक्रिया में अमृत की कुछ बूंदें छलक कर पृथ्वी पर जा गिरीं। कालांतर में अमृत की ये बूंदें अनगिनत रत्नों में परिवर्तित हो गईं। | |||
एक तीसरी कथा राजा [[बलि]] की है जब वामन रूपी श्री विष्णु ने बलि से साढ़े तीन पन पृथ्वी मांगी तो उसने इसे देना स्वीकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने विराट स्वरूप धारण कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया और आधे पग के लिए उसके शरीर की मांग की थी। राजा बलि ने अपना सम्पूर्ण शरीर वामन को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु के चरणस्पर्श से बलि रत्नमय और वज्रवत् हो गया। इसके बाद इन्द्र ने उसे अपने वज्र से पृथ्वी पर मार गिराया। पृथ्वी पर खंड- खंड होकर गिरते ही बलि के शरीर के सभी अंगों से अलग-अलग रंग, रूप व गुण के रत्न प्रकट हुए। भगवान शंकर ने उन रत्नों को अपने चार त्रिशूलों पर स्थापित करके फिर उन पर नौ ग्रहों एवं बाहर राशियों का प्रभुत्व स्थापित किया। इसके बाद उन्हेँ पृथ्वी पर चार दिशाऑं में गिरा दिया। फलस्वरूप पृथ्वी पर विभिन्न रत्नों की खानें उत्पन्न हुईं। | |||
इन कथाओं को बारे में आप जो कहें- कपोल कल्पना, मिथक या कुछ और... लेकिन इस बात से आप इंकार नहीं कर सकते कि प्राचीनकाल में लोगों को इन रत्नों के रूप, गुण व उपयोग के बारे में कमोबेश ज्ञान था। केवल इतना ही नहीं, वे इन रत्नों का उत्पादन प्राकृतिक व कृत्रिम तौर पर करने लगे थे। इस सच्चाई को आज के आधुनिक इतिहासकार भी मानते हैं। शोध कार्य में लगे वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं। | |||
==ग्रन्थों के अनुसार== | ==ग्रन्थों के अनुसार== | ||
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार उच्च कोटि में 84 प्रकार के रत्न आते हैं। इनमें से बहुत से रत्न अब अप्राप्य हैं तथा बहुत से नए-नए रत्नों का आविष्कार भी हुआ है। रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज़्यादा पहने जाते हैं। वर्तमान समय में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रत्नों की सूचियाँ प्रामाणिक नहीं रह गई हैं। रत्नों के नामों की सूची निम्न प्रकार है - | प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार उच्च कोटि में 84 प्रकार के रत्न आते हैं। इनमें से बहुत से रत्न अब अप्राप्य हैं तथा बहुत से नए-नए रत्नों का आविष्कार भी हुआ है। रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज़्यादा पहने जाते हैं। वर्तमान समय में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रत्नों की सूचियाँ प्रामाणिक नहीं रह गई हैं। रत्नों के नामों की सूची निम्न प्रकार है - |
Revision as of 12:12, 19 October 2010
क़ीमती पत्थर को रत्न कहा जाता है अपनी सुंदरता की वजह से यह क़ीमती होते है। रत्न आकर्षक खनिज का एक टुकड़ा होता है जो कटाई और पॉलिश करने के बाद गहने और अन्य अलंकरण बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। बहुत से रत्न ठोस खनिज के होते है, लेकिन कुछ नरम खनिज के भी होते है। रत्न अपनी चमक और अन्य भौतिक गुणों के सौंदर्य की वजह से गहने में उपयोग किया जाता है। ग्रेडिंग, काटने और पॉलिश से रत्नों को एक नया रुप और रंग दिया जाता है और इसी रूप और रंग की वजह से यह रत्न गहनों को और भी आकर्षक बनाते है। रत्न का रंग ही उसकी सबसे स्पष्ट और आकर्षक विशेषता है। रत्नों को गर्म कर के उसके रंग की स्पष्टता बढ़ाई जाती है।
रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न शरीर की शोभा आभूषणों के रूप में तो बढ़ाते ही हैं और कुछ लोगों का मानना है की रत्न अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। इन रत्नों से जहाँ स्वयं को सजाने-सँवारने की स्पर्धा लोगों में पाई जाती है वहीं संपन्नता के प्रतीक ये अनमोल रत्न अपने आकर्षण तथा उत्कृष्टता से सबको वशीभूत कर विश्व व्यापी से बखाने जाते हैं। रत्न और जवाहरात के नाम से जाने हुए ये खनिज पदार्थ विश्व की बहुमूल्य राशी हैं, जो युगों से अगणित मनों को मोहते हुए अपनी महत्ता बनाए हुए हैं।
इतिहास
रत्नों का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है। भारत की तरह अन्य देशों में भी इनके जन्म सम्बंधी अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं। हमारे देश में इस तरह की जो कथाएं विख्यात हैं, वे पुरणों से ली गई हैं। पुरणों में रत्नों की उत्पत्ति से सम्बंधित अनेक कथाएँ हैं। 'अग्निपुराण' के अनुसार - महाबली असुरराज वृत्रासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया। तब भगवान विष्णु की सलाह पर इन्द्र ने महर्षि दधीचि से वज्र बनाने हेतु उनकी हड्डियों का दान मांगा। फिर इसी वज्र से देवताओं ने वृत्रासुर का संहार किया। अस्त्र (वज्र) निर्माण के समय दधीचि की अस्थियों के, जो सूक्ष्म अंश पृथ्वी पर गिरे, उनसे तमाम रत्नों की खानें बन गईं।
इसी तरह एक दूसरी कथा है। उसके अनुसार - समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्रकट हुआ तो असुर उस अमृत को लेकर भाग गए। देवताओं ने उनका पीछा किया। आपस में छीना-झपटी हुई और इस प्रक्रिया में अमृत की कुछ बूंदें छलक कर पृथ्वी पर जा गिरीं। कालांतर में अमृत की ये बूंदें अनगिनत रत्नों में परिवर्तित हो गईं।
एक तीसरी कथा राजा बलि की है जब वामन रूपी श्री विष्णु ने बलि से साढ़े तीन पन पृथ्वी मांगी तो उसने इसे देना स्वीकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने विराट स्वरूप धारण कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया और आधे पग के लिए उसके शरीर की मांग की थी। राजा बलि ने अपना सम्पूर्ण शरीर वामन को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु के चरणस्पर्श से बलि रत्नमय और वज्रवत् हो गया। इसके बाद इन्द्र ने उसे अपने वज्र से पृथ्वी पर मार गिराया। पृथ्वी पर खंड- खंड होकर गिरते ही बलि के शरीर के सभी अंगों से अलग-अलग रंग, रूप व गुण के रत्न प्रकट हुए। भगवान शंकर ने उन रत्नों को अपने चार त्रिशूलों पर स्थापित करके फिर उन पर नौ ग्रहों एवं बाहर राशियों का प्रभुत्व स्थापित किया। इसके बाद उन्हेँ पृथ्वी पर चार दिशाऑं में गिरा दिया। फलस्वरूप पृथ्वी पर विभिन्न रत्नों की खानें उत्पन्न हुईं।
इन कथाओं को बारे में आप जो कहें- कपोल कल्पना, मिथक या कुछ और... लेकिन इस बात से आप इंकार नहीं कर सकते कि प्राचीनकाल में लोगों को इन रत्नों के रूप, गुण व उपयोग के बारे में कमोबेश ज्ञान था। केवल इतना ही नहीं, वे इन रत्नों का उत्पादन प्राकृतिक व कृत्रिम तौर पर करने लगे थे। इस सच्चाई को आज के आधुनिक इतिहासकार भी मानते हैं। शोध कार्य में लगे वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं।
ग्रन्थों के अनुसार
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार उच्च कोटि में 84 प्रकार के रत्न आते हैं। इनमें से बहुत से रत्न अब अप्राप्य हैं तथा बहुत से नए-नए रत्नों का आविष्कार भी हुआ है। रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज़्यादा पहने जाते हैं। वर्तमान समय में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रत्नों की सूचियाँ प्रामाणिक नहीं रह गई हैं। रत्नों के नामों की सूची निम्न प्रकार है -
रत्न का महत्व
[[चित्र:Topaz.jpg|पुखराज के विभिन्न रंग
Colors of Topaz|thumb]]
रत्न की अंगूठी या लॉकेट पहने से व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक तालमेल में बाधा को दूर कर अनुकूल बनाना, संतान कष्ट, विद्या में रुकावटें, विदेश, आर्थिक उन्नति आदि में सफलता मिलती है। मानवीय उत्थान-पतन में इनकी अद्भुत भूमिका को आँकना आसान नहीं है; तभी तो भारतीय कोहनूर हीरा अपनी दमक एवं प्रभाव से विश्व स्तर पर श्रेष्ठता बनाए हुए है। वैसे तो रत्नों की संख्या 84 है, किंतु यहाँ पर हम केवल नव रत्नों के विषय में विवरण दे रहे हैं; क्योंकि ये नव रत्न नव ग्रहों के अनुरूप धारकों में विशेष प्रचलित हैं।
नव ग्रहों और रत्नों की स्थिति
ग्रह | संबंधित रत्न | उपयुक्त धातु | लग्न साशि | स्वामी ग्रह | अनुकूल |
---|---|---|---|---|---|
सुर्य | माणिक्य | स्वर्ण | मेष | मंगल | मूँगा |
चंद्र | मोती | चाँदी | वृषभ | शुक्र | हीरा |
मंगल | मूँगा | स्वर्ण | मिथुन | बुध | पन्ना |
बुध | पन्ना | स्वर्ण,काँसा | कर्क | चंद्र | मोती |
बृहस्पति | पुखराज | चाँदी | सिंह | सूर्य | माणिक्य |
शुक्र | हीरा | चाँदी | कन्या | बुध | पन्ना |
शनि | नीलम | लोहा,सीसा | तुला | शुक्र | हीरा |
राहु | गोमेद | चाँदी, सोना, ताँबा, लोहा, काँसा | वृश्चिक | मंगल | मूँगा |
केतु | लहसुनिया | चाँदी, सोना, ताँबा, लोहा, काँसा | धनु | गुरु | पुखराज |
मकर | शनि | नीलम | |||
कुंभ | शनि | नीलम | |||
मीन | गुरु | पुखराज |
गोमेद
गोमेद राहु ग्रह का रत्न है। नवरत्न में गोमेद भी होता है। गोमेद रत्न ज़्यादा तर पीताभ गहरे लाल रंग का होता है और यह सभी रंगों में भी पाया जाता है। गोमेद रत्न पारदर्शक होता है।
नीलम
नीलम शनि ग्रह का रत्न है। नवरत्न में नीलम भी होता है। नीलम रत्न गहरे नीले और हल्के नीले रंग का होता है। नीलम पारदर्शी, चमकदार और लोचदार रत्न है। शनि का रत्न नीलम एल्यूमीनियम और ऑक्सिजन के मेल से बनता है। इसे कुरुंदम समूह का रत्न माना जाता है।
पन्ना
पन्ना बुध ग्रह का रत्न है। पन्ना हरे रंग का एक रत्न है। नवरत्न में पन्ना भी होता है। पन्ना धारण करने से बल, बुद्धि, विद्या तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
पुखराज
पुखराज गुरु ग्रह का रत्न है। पुखराज एक मूल्यवान रत्न है। पुखराज रत्न सभी रत्नों का राजा है। पुखराज रत्न एल्युमिनियम और फ्लोरीन सहित सिलिकेट खनिज होता है। संस्कृत भाषा में पुखराज को पुष्पराग कहा जाता है। पुखराज रत्न पीले, सफेद और नीले रंगों में पाया जाता है।
माणिक्य
[[चित्र:Ruby-Gemstone.jpg|माणिक्य रत्न
Ruby Gemstone|thumb]]
माणिक्य सुर्य ग्रह का रत्न है। माणिक्य गुलाबी या लाल रंग का एक बहुमूल्य रत्न है। माणिक्य रत्न गुलाबी और सुर्ख लाल रंग का होता है तथा काले रंग का भी पाया जाता है। गुलाबी रंग का माणिक्य श्रेष्ठ माना गया है।
मूँगा
मूँगा मंगल ग्रह का रत्न है। मूँगा लाल, सिंदूर वर्ण और गुलाबी रंग का होता है। मूँगा सफेद और कृष्ण वर्ण में भी प्राप्य है। मूँगा का प्राप्ति स्थान समुद्र है। मूँगा का दूसरा नाम प्रवाल भी है। मूँगा एक प्रकार का लाल रत्न है जो समुद्र में पाया जाता है। मूँगा वास्तव में समुद्री जीवों के कठोर कंकालों से निर्मित एक प्रकार का निक्षेप है।
मोती
मोती चन्द्र ग्रह का रत्न है। मोती सफेद, काला, पीला, लाल तथा आसमानी और अनेक रंगों में पाया जाता है। मोती समुद्र से सीपों से प्राप्त किया जाता है। मोती एक बहुमूल्य रत्न जो समुद्र की सीपी में से निकलता है और छूटा, गोल तथा सफेद होता है। मोती को उर्दू में मरवारीद कहते हैं।
लहसुनिया
लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। लहसुनिया रत्न बिल्ली के आँख के समान चमकदार होता है। इसमें पीले, काले और सफेद रंग की झाईं भी होती है। लहसुनिया रत्न को वैदूर्य भी कहा जाता है।
हीरा
हीरा शुक्र ग्रह का रत्न है। हीरा एक प्रकार का बहुमूल्य रत्न है जो बहुत चमकदार और बहुत कठोर होता है। हीरा रत्न अत्यन्त महंगा व दिखने में सुन्दर होता है। हीरा सफेद, नीला, पीला, गुलाबी, काला, लाल आदि अनेक रंगों में उपलब्ध होता है। सफेद हीरा सर्वोत्तम है और हीरा सभी प्रकार के रत्नों में श्रेष्ठ है। हीरे को हीरे के कणों के द्वारा पॉलिश करके खूबसूरत बनाया जाता है।
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