मेहरानगढ़ क़िला: Difference between revisions

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*यहाँ जोधपुर नरेश जसवंतसिंह सहित कई राजाओं के समाधि स्थल बने हुए हैं। जोधपुर की एक विशेषता यहाँ की कृत्रिम झीलें और कुएँ हैं, जिनके अभाव में इस इलाके में नगर की कल्पना नहीं की जा सकती थी।  
*यहाँ जोधपुर नरेश जसवंतसिंह सहित कई राजाओं के समाधि स्थल बने हुए हैं। जोधपुर की एक विशेषता यहाँ की कृत्रिम झीलें और कुएँ हैं, जिनके अभाव में इस इलाके में नगर की कल्पना नहीं की जा सकती थी।  
*मेहरानगढ़ के क़िले का एक कुआँ तो 135 मीटर गहरा है। इस सारी व्यवस्था के बावजूद वहाँ जल का अभाव सदैव महसूस किया जाता था।  
*मेहरानगढ़ के क़िले का एक कुआँ तो 135 मीटर गहरा है। इस सारी व्यवस्था के बावजूद वहाँ जल का अभाव सदैव महसूस किया जाता था।  
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Revision as of 12:37, 10 January 2011

[[चित्र:Mehrangarh-Fort-Jodhpur-1.jpg|thumb|250px|मेहरानगढ़ का क़िला, जोधपुर
Mehrangarh Fort, Jodhpur]]

  • जोधपुर मेहरानगढ़ का क़िला पहाड़ी के बिल्‍कुल ऊपर बसे होने के कारण राजस्थान के सबसे ख़ूबसूरत क़िलों में से एक है।
  • मेहरानगढ़ के क़िले को जोधपुर का क़िला भी कहा जाता है।
  • मेहरानगढ़ का क़िला 120 मीटर ऊँची एक चट्टान पहाड़ी पर निर्मित है। इस दुर्ग के परकोटे की परिधि 10 किलोमीटर है।
  • परकोटे की ऊँचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। परकोटे में दुर्गम मार्गों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे।
  • इस क़िले के सौंदर्य को श्रृंखलाबद्ध रूप से बने द्वार और भी बढ़ाते हैं।
    • इन्‍हीं द्वारों में से एक है-जयपोल। इसका निर्माण राजा मानसिंह ने 1806 ईस्‍वी में किया था।
    • दूसरे द्वार का नाम है-विजयद्वार। इसका निर्माण राजा अजीत सिंह ने मुग़लों पर विजय के उपलक्ष्‍य में किया था।
  • दुर्ग के भीतर राजप्रासाद स्थित है। दुर्ग के भीतर सिलहखाना (शस्त्रागार), मोती महल, जवाहरखाना आदि मुख्य इमारतें हैं।
  • मोती महल के प्रकोष्ठों की भित्तियों तथा छतों पर सोने की अनुपम कारीगरी की गयी है। क़िले के उत्तर की ओर ऊँची पहाड़ी पर थड़ा नामक एक भवन है जो संगमरमर का बना है। यह एक ऊँचे -चौड़े चबूतरे पर स्थित है।
  • यहाँ जोधपुर नरेश जसवंतसिंह सहित कई राजाओं के समाधि स्थल बने हुए हैं। जोधपुर की एक विशेषता यहाँ की कृत्रिम झीलें और कुएँ हैं, जिनके अभाव में इस इलाके में नगर की कल्पना नहीं की जा सकती थी।
  • मेहरानगढ़ के क़िले का एक कुआँ तो 135 मीटर गहरा है। इस सारी व्यवस्था के बावजूद वहाँ जल का अभाव सदैव महसूस किया जाता था।


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