आषाढ़: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "हिंदू" to "हिन्दू") |
||
Line 1: | Line 1: | ||
* | *हिन्दू [[पंचांग]] के अनुसार नववर्ष [[चैत्र]] [[माह]] से प्रारंभ हो जाता है। हिन्दी वर्ष का चतुर्थ मास जो ईस्वी कैलेंडर में लगभग जून या जुलाई माह में पड़ता है। इस महीने से वर्षा ऋतुभी प्रारम्भ हो जाती है। | ||
*आषाढ़ मास के धार्मिक कृत्यों के अन्तर्गत 'एकभक्त व्रत' तथा खड़ाऊँ, छाता, नमक तथा आँवलों का [[ब्राह्मण]] को दान करना चाहिए। इस दान से [[वामन अवतार|वामन भगवान]] की निश्चय ही कृपादृष्टि होगी। यह कार्य या तो आषाढ़ मास के प्रथम दिन हो अथवा सुविधानुसार किसी भी दिन। | *आषाढ़ मास के धार्मिक कृत्यों के अन्तर्गत 'एकभक्त व्रत' तथा खड़ाऊँ, छाता, नमक तथा आँवलों का [[ब्राह्मण]] को दान करना चाहिए। इस दान से [[वामन अवतार|वामन भगवान]] की निश्चय ही कृपादृष्टि होगी। यह कार्य या तो आषाढ़ मास के प्रथम दिन हो अथवा सुविधानुसार किसी भी दिन। | ||
*आषाढ़ [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[द्वितीया]] को यदि [[पुष्य नक्षत्र]] हो तो [[कृष्ण]], [[बलराम]] तथा [[सुभद्रा]] का रथोत्सव निकाला जाए। | *आषाढ़ [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[द्वितीया]] को यदि [[पुष्य नक्षत्र]] हो तो [[कृष्ण]], [[बलराम]] तथा [[सुभद्रा]] का रथोत्सव निकाला जाए। |
Revision as of 09:54, 24 April 2011
- हिन्दू पंचांग के अनुसार नववर्ष चैत्र माह से प्रारंभ हो जाता है। हिन्दी वर्ष का चतुर्थ मास जो ईस्वी कैलेंडर में लगभग जून या जुलाई माह में पड़ता है। इस महीने से वर्षा ऋतुभी प्रारम्भ हो जाती है।
- आषाढ़ मास के धार्मिक कृत्यों के अन्तर्गत 'एकभक्त व्रत' तथा खड़ाऊँ, छाता, नमक तथा आँवलों का ब्राह्मण को दान करना चाहिए। इस दान से वामन भगवान की निश्चय ही कृपादृष्टि होगी। यह कार्य या तो आषाढ़ मास के प्रथम दिन हो अथवा सुविधानुसार किसी भी दिन।
- आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यदि पुष्य नक्षत्र हो तो कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा का रथोत्सव निकाला जाए।
- शुक्ल पक्ष की सप्तमी को वैवस्वत सूर्य की पूजा होनी चाहिए, जो पूर्वाषाढ़ को प्रकट हुआ था।
- अष्टमी के दिन महिषासुरमर्दिनी दुर्गा को हरिद्रा, कपूर तथा चन्दन से युक्त जल में स्नान कराना चाहिए। तदनन्तर कुमारी कन्याओं और ब्राह्मणों को सुस्वाद मधुर भोजन कराया जाए। तत्पश्चात दीप जलाना चाहिए।
- दशमी के दिन परलक्ष्मी व्रत तमिलनाडु में अत्यन्त प्रसिद्ध है।
- एकादशी तथा द्वादशी के दिन भी उपवास, पूजन आदि का विधान है।
- आषाढ़ी पूर्णिमा का चन्द्रमा बड़ा पवित्र है। अतएव उस दिन दान पुण्य अवश्य ही करना चाहिए। यदि संयोग से पूर्णिमा के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र हो तो दस विश्वदेवों का पूजन किया जाना चाहिए। पूर्णिमा के दिन खाद्य का दान करने से कभी न भ्रान्त होने वाला विवेक तथा बुद्धि प्राप्त होती है[1]।
- विष्णु एकादशी के दिन से देवी-देवता चार माह के लिए शयन करने चले जाएँगे। इसे चातुर्मास भी कहा जाता है। देवी-देवताओं के चार माह तक विश्राम में जाने की अवधि तक शास्त्रों के मुताबिक सभी मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। चार माह बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवता शयन से उठेंगे, जिसे देवउठान एकादशी कहा जाता है। देवउठान एकादशी के बाद फिर से विवाह लग्न प्रारंभ हो जाएँगे।
- वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में पहली नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्र मानी जाती है। आश्विन मास में तीसरी नवरात्र तथा माघ मास में चौथी नवरात्रि मनायी जाती है। इस प्रकार चार नवरात्रों का उल्लेख 'देवी भागवत' और अन्य पुराणों में आया है।
- आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवरात्रि का आरंभ होता है। इसे 'गुप्त नवरात्रि' कहते हैं। इसकी गोपनीयता का कारण है कि यह काल ऋतु परिवर्तन का समय है। प्रत्येक ऋतु परिवर्तन में विभिन्न रोग मानव पशु-पक्षियों के साथ वनस्पतियों में भी लग जाते हैं। अत: उन रोगों की निवृत्ति के लिये हम देवी माता की आराधना करते है जिसे एकांत स्थान में करने का विधान है जिससे बहुत जल्द ही देवी माँ प्रसन्न होती है और वरदान देती है।
- गुप्त नवरात्र की गोपनीयता का रहस्य स्पष्ट है कि यह समय शक्त और शौण उपासकों के लिये पैशाचिक, वामाचारी, क्रियाओं के लिये अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है इसमें प्रलय और संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है इन्हीं संहारकर्ता देवी देवताओं के गण एवं गणिकाओं अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच, पैताल, डाकिनी, शाकिनी, शंखिनी, शूलिनी, शववाहना, शवखढा आदि की साधना की जाती है ऐसी साधनाएं शक्त मतानुसार शीघ्र सफल होती है। गोपनीयता का रहस्य ही है कि यह सर्वसाधारण के लिये नहीं किंतु विशिष्ट लोगों की साधना के लिये सुरक्षित है। इस नवरात्र में केवल जनसामान्य को भगवती की गंध, पुष्प, धूप और दीप आदि से पूजा करके आराधना करनी चाहिये।
- आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इस दिन लोग पूरे दिन का व्रत रखकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर भोग लगाते हुए पुष्प , धूप , दीप से आरती करते हैं। ग़रीब ब्राह्मणों को दान भी किया जाता है। इस एकादशी के बारे में मान्यता है कि मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
- आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' अथवा 'व्यास पूर्णिमा' कहते हैं । इस दिन लोग अपने गुरु के पास जाते हैं तथा उच्चासन पर बैठाकर माल्यापर्ण करते हैं तथा पुष्प ,फल, वस्र आदि गुरु को अर्पित करते हैं। यह गुरु - पूजन का दिन होता है जिसकी प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।
- आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को व्रत किया जाता है। यह एकादशी स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली एवं संपूर्ण पापों का हरण करने वाली है। इसी एकादशी से चातुर्मास्य व्रत भी प्रारंभ होता है। इसी दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करते हैं, जब तक कार्तिक शुक्ल मास की एकादशी नहीं आ जाती है। अतः आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भली भांति धर्म का आचरण भी अवश्य करना चाहिए।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुधर्मोत्तरपुराण