सोमेश्वर प्रथम आहवमल्ल: Difference between revisions

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*केवल [[परमार वंश|परमारों]] और चोलों के साथ हुए युद्धों में ही सोमेश्वर ने अपनी 'आहवमल्लता' का परिचय नहीं दिया। [[चोल वंश|चोलों]] को परास्त कर उसने उत्तरी [[भारत]] की दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया।  
*केवल [[परमार वंश|परमारों]] और चोलों के साथ हुए युद्धों में ही सोमेश्वर ने अपनी 'आहवमल्लता' का परिचय नहीं दिया। [[चोल वंश|चोलों]] को परास्त कर उसने उत्तरी [[भारत]] की दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया।  
*एक शक्तिशाली सेना को साथ लेकर उसने पहले [[जेजाकभुक्ति]] के [[चन्देल वंश|चन्देल]] राजा को परास्त किया।  
*एक शक्तिशाली सेना को साथ लेकर उसने पहले [[जेजाकभुक्ति]] के [[चन्देल वंश|चन्देल]] राजा को परास्त किया।  
*[[महमूद गज़नवी]] इस राज्य को भी जीतने में समर्थ हुआ था, पर उसके उत्तराधिकारी के शासन काल में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में कीर्तिवर्मा नामक वीर चन्देल ने अपने पूर्वजों के स्वतंत्र राज्य का पुनरुद्धार कर लिया था।  
*[[महमूद गज़नवी]] इस राज्य को भी जीतने में समर्थ हुआ था, पर उसके उत्तराधिकारी के शासन काल में ग्यारहवीं [[सदी]] के उत्तरार्द्ध में कीर्तिवर्मा नामक वीर चन्देल ने अपने पूर्वजों के स्वतंत्र राज्य का पुनरुद्धार कर लिया था।  
*सोमेश्वर के आक्रमण के समय सम्भवतः कीर्तिवर्मा ही चन्देल राज्य का स्वामी था। चन्देल राज्य को जीतकर सोमेश्वर ने कच्छपघातों को विजय किया, और फिर [[गंगा नदी|गंगा]] - [[यमुना नदी|यमुना]] के उन प्रदेशों पर आक्रमण किया, जो [[कन्नौज]] के राज्य के अंतर्गत थे।  
*सोमेश्वर के आक्रमण के समय सम्भवतः कीर्तिवर्मा ही चन्देल राज्य का स्वामी था। चन्देल राज्य को जीतकर सोमेश्वर ने कच्छपघातों को विजय किया, और फिर [[गंगा नदी|गंगा]] - [[यमुना नदी|यमुना]] के उन प्रदेशों पर आक्रमण किया, जो [[कन्नौज]] के राज्य के अंतर्गत थे।  
*अभी कन्नौज पर [[गहड़वाल वंश]] के प्रतापी राजाओं का आधिपत्य नहीं हुआ था, और वहाँ [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] का ही शासन क़ायम था। जो कि इस समय तक बहुत निर्बल हो चुका था। कन्नौज का अधिपति चालुक्य राज सोमेश्वर के सम्मुख नहीं टिक सका, और उसने भागकर उत्तरी पर्वतों की शरण ली।  
*अभी कन्नौज पर [[गहड़वाल वंश]] के प्रतापी राजाओं का आधिपत्य नहीं हुआ था, और वहाँ [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] का ही शासन क़ायम था। जो कि इस समय तक बहुत निर्बल हो चुका था। कन्नौज का अधिपति चालुक्य राज सोमेश्वर के सम्मुख नहीं टिक सका, और उसने भागकर उत्तरी पर्वतों की शरण ली।  

Revision as of 10:57, 3 October 2011

  • सोमेश्वर प्रथम (1043 से 1068 ई.) ने अपने शासनकाल में चालुक्य राजधानी मान्यखेट में स्थानान्तरित कर कल्याणी में शासन किया।
  • यह कल्याणी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी व शक्तिशाली राजा था।
  • अपने विरुद 'आहवमल्ल' को सार्थक कर उसने दूर-दूर तक विजय यात्राएँ कीं, और चालुक्यों के राज्य को एक विशाल साम्राज्य के रूप में परिवर्तित कर दिया।
  • इस समय चालुक्यों के मुख्य प्रतिस्पर्धी मालवा के परमार और सुदूर दक्षिण के चोल राजा थे। सोमेश्वर ने इन दोनों शत्रुओं के साथ घनघोर युद्ध किए।
  • परमार राजा भोज को परास्त कर उसने परमार राज्य की राजधानी 'धार' पर अधिकार कर लिया, और भोज को उज्जयिनी में आश्रय लेने के लिए विवश कर दिया। पर चालुक्यों का मालवा पर यह आधिपत्य देर तक स्थिर नहीं रह सका। कुछ समय बाद भोज ने एक बड़ी सेना को साथ लेकर धारा पर चढ़ाई की, और चालुक्यों के शासन का अन्त कर अपनी राजधानी में पुनः प्रवेश किया।
  • सुदूर दक्षिण के चोल राजा से भी सोमेश्वर के अनेक युद्ध हुए, और कुछ समय के लिए कांची पर भी चालुक्यों का आधिपत्य हो गया।
  • पल्लव वंश की यह पुरानी राजधानी इस समय चोल शक्ति की महत्त्वपूर्ण केन्द्र थी।
  • केवल परमारों और चोलों के साथ हुए युद्धों में ही सोमेश्वर ने अपनी 'आहवमल्लता' का परिचय नहीं दिया। चोलों को परास्त कर उसने उत्तरी भारत की दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया।
  • एक शक्तिशाली सेना को साथ लेकर उसने पहले जेजाकभुक्ति के चन्देल राजा को परास्त किया।
  • महमूद गज़नवी इस राज्य को भी जीतने में समर्थ हुआ था, पर उसके उत्तराधिकारी के शासन काल में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में कीर्तिवर्मा नामक वीर चन्देल ने अपने पूर्वजों के स्वतंत्र राज्य का पुनरुद्धार कर लिया था।
  • सोमेश्वर के आक्रमण के समय सम्भवतः कीर्तिवर्मा ही चन्देल राज्य का स्वामी था। चन्देल राज्य को जीतकर सोमेश्वर ने कच्छपघातों को विजय किया, और फिर गंगा - यमुना के उन प्रदेशों पर आक्रमण किया, जो कन्नौज के राज्य के अंतर्गत थे।
  • अभी कन्नौज पर गहड़वाल वंश के प्रतापी राजाओं का आधिपत्य नहीं हुआ था, और वहाँ गुर्जर प्रतिहार वंश का ही शासन क़ायम था। जो कि इस समय तक बहुत निर्बल हो चुका था। कन्नौज का अधिपति चालुक्य राज सोमेश्वर के सम्मुख नहीं टिक सका, और उसने भागकर उत्तरी पर्वतों की शरण ली।
  • चेदि के कलचुरी राजा कर्णदेव (1063-1093) ने चालुक्य आक्रमण का मुक़ाबला करने में अधिक साहस दिखाया, पर उसे भी सोमेश्वर के सम्मुख परास्त होना पड़ा। जिस समय सोमेश्वर स्वयं उत्तरी भारत की विजय यात्रा में तत्पर था, उसका पुत्र विक्रमादित्य पूर्वी भारत में अंग, बंग, मगध और मिथिला के प्रदेशों की विजय कर रहा था।
  • विक्रमादित्य ने पूर्व में और आगे बढ़कर कामरूप (असम) पर भी आक्रमण किया, पर उसे जीतने में उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई।
  • पर यह ध्यान में रखना चाहिए कि सोमेश्वर और विक्रमादित्य की विजय यात्राओं ने किसी स्थायी साम्राज्य की नींव नहीं डाली। वे आँधी की तरह सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर छा गए, और वहाँ तहस-नहस मचाकर आँधी की तरह ही दक्षिणापथ लौट गए।
  • इन दिग्विजयों ने केवल देश में उथल-पुथल, अव्यवस्था और अराजकता ही उत्पन्न की। कोई स्थायी परिणाम उनका नहीं हुआ। उसमें सन्देह नहीं कि सोमेश्वर एक महान विजेता था, और अनेक युद्धों में उसने अपने अनुपम शौर्य का प्रदर्शन किया था।
  • 1068 में उसकी मृत्यु हुई। जीवन के समान उसकी मृत्यु भी असाधारण थी। एक रोग से पीड़ित होकर जब उसने अनुभव किया, कि उसके लिए रोग से छुटकारा पाना सम्भव नहीं है, तो तुंगभद्रा नदी में छलांग मारकर उसने अपने शरीर का अन्त कर लिया।
  • इस प्रकार की मृत्यु के लिए जिस साहस की आवश्यकता थी, वही सोमेश्वर के सम्पूर्ण जीवन में उसके युद्धों और संघर्षों में प्रगट हुआ था।



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