मदुरै: Difference between revisions
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thumb|250px|मीनाक्षी मंदिर, मदुरई मदुरै या मदुरई या मदुरा नगर तमिलनाडु के दक्षिण में वैगोई नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। यह दक्षिण भारत का एक बहुत प्राचीन नगर है, जो ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी में पाण्ड्य राजाओं की राजधानी था। वेनिस यात्री मार्कोपोलो पाण्ड्य राज्य में 1288 ई. में आया था, और उसने इस भूमि की सम्पन्नता तथा उसके व्यापार की समृद्धि का विवरण विस्तार से दिया है।
इतिहास
संगमयुगीन महाकाव्य शिलप्पादिकारम में मदुरा का एक सुसज्जित नगर के रूप में वर्णन किया गया है। मदुरा नगर का दूसरा नाम कदम्ब वन था। चीनी पर्यटक युवानच्वांग ने इस नगर का उल्लेख मलकूट नाम से किया है। यह कांजीवरम से 3,006 ली अर्थात् 750 किलोमीटर दूर था। तीसरी शताब्दी ईस्वी में पाण्ड्य देश में आधुनिक मदुरै, रामनाड, तिन्नेवेल्लि तथा ट्रावनकोर राज्य का दक्षिणी भाग आता था। मैगस्थनीज ने पाण्ड्य राजा का उल्लेख किया है। यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि पाण्ड्य देश के लोगों के आभूषण समुद्री मोतियों के बने होते थे। मदुरा के पाण्ड्य शासक छठी शताब्दी के बाद आगामी तीन सौ वर्षों तक बादामी के चालुक्य और कांची के पल्लवों से संघर्ष करते रहे। तेरहवीं सदी तक तमिल देश में चोलों को परास्त करके पाण्ड्यों ने एक सशक्त शाक्ति के रूप में अपना स्थान बना लिया था। मअबर का सूबेदार अहसानशाह जलालुद्दीन ने मदुरै में अपना स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित किया।
मलिक काफ़ूर का आक्रमण
अलाउद्दीन ख़िलजी के समय मलिक काफ़ूर ने पाण्ड्यों की राजधानी मदुरै पर 1311 ई. में आक्रमण कर दिया। काफ़ूर ने मदुरा के अनेक मन्दिरों को नष्ट किया और सम्पत्ति को लूटा। लूट में यहाँ से 512 हाथी, 5,000 घोड़े तथा 500 मन हीरे, मोती, पन्ना, माणिक्य रत्न लूट ले गया। कालांतर में विजयनगर साम्राज्य ने 1370 ई. में मदुरा पर विजय प्राप्त की। विजयनगर का पतन होने पर मदुरा नायक वंश की राजधानी बनी। प्राचीन तमिल साहित्य में मदुरा का विशद् वर्णन मिलता है।
नगर संरचना
यह नगर देवालय, प्रशस्त राजमार्गों, सभा-भवनों मन्दिरों तथ सरोवरों से युक्त एक आकर्षक नगर था। यहाँ के भवन वास्तुशास्त्रीय पद्धति पर निर्मित किये गये थे। यहाँ दो बाज़ार लगते थे। एक दिन में और दूसरा रात्रि में। राजप्रासाद के चारों ओर अमात्यों, महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों, पुरोहितों तथा धनिकों के घर बने हुए थे। नगर के प्रधान राजमार्गों पर स्वच्छता की पर्याप्त व्यवस्था थी। नगर के बाहर वेश्याएँ रहती थीं। एक विद्वान ने मदुरा की नगर संरचना पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि 'सदियों के नगर-निर्माण सम्बन्धी अनुभव के आधार पर निर्मित और सिद्धांतकारों के ग्रंथों में सुस्पष्टतः प्रतिपादित प्राचीन भारतीय नगर के निदर्श हम अयोध्या, कावेरीपट्टनम और मदुरा जैसे वस्तुतः विद्यमान नगरों के उन कलात्मक बिंबों में साकार हुआ पाते हैं, जिनका अंकन रामायण और शिलप्पादिकारम में पाते हैं।'
प्रसिद्धि
मदुरा प्राचीन काल से ही सुन्दर सूती वस्त्रों तथा मोतियों के लिए प्रसिद्ध रहा है। कौटिल्य तथा टॉलमी ने मदुरा के वस्त्रों की प्रशंसा की है। इस नगर में अनेक भव्य मन्दिर हैं, जिनमें मीनाक्षी मन्दिर उल्लेखनीय हैं।
वास्तु रचना
मीनाक्षी मन्दिर मदुरा नरेश तिरुमल्लाई नायक (1570 - 1642 ई.) तथा उसके वंशजों ने बनवाया था। यह दोहरा मन्दिर है। इससे एक सुन्दरेश्वर को तथा दूसरा उसकी पत्नी मीनाक्षी को समर्पित है। ऊँची दीवार से घिरी 850 फुट लम्बी तथा 725 फुट चौड़ी मुख्य भूमि में ये दोनों मन्दिर विस्तारित हैं। घेरे के चार किनारों में से प्रत्येक में मध्य भाग की ओर एक-एक गोपुर है। मन्दिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। जो 200 फुट लम्बे और 100 फुट चौड़े ढके हुए स्तम्भ युक्त मार्ग से जुड़ा है। अंतिम, घेरे के भीतर तीन खण्डों में मुख्य मन्दिर है। भीतरी कक्ष के ऊपर एक शिखर है, जिसकी चौरस छत इस तरह आगे निकली हुई कि मन्दिर के दक्षिण भाग में अनुलग्न मीनाक्षी का देवालय है, जो मुख्य मन्दिर का लघु रूप है। मीनाक्षी मन्दिर के सामने ही स्वर्ण कमल सरोवर है। भव्य स्थापत्य तथा सूक्ष्म शिल्प के दर्शन हमें मदुरा मन्दिर में एक साथ मिलते हैं।
भाषा
मदुरई और इसके आसपास के क्षेत्रों में जो भाषाएँ बोली जती हैं, उनमें मुख्य हैं-तमिल भाषा, मलयालम भाषा, कन्नड़ भाषा, हिन्दी व उर्दू।
जनसंख्या
भारत की जनगणना 2001 के अनुसार, यहाँ की जनसंख्या नगर निगम क्षेत्र 9,22,931 तथा ज़िले की कुल जनसंख्या 25,62,279 है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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