Difference between revisions of "चैतन्य महाप्रभु"

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[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu.jpg|चैतन्य महाप्रभु<br /> Chaitanya Mahaprabhu|thumb|250px]]
चैतन्य महाप्रभु [[भक्तिकाल]] के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के [[गौड़ीय संप्रदाय]] की आधारशिला रखी । भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त [[वृन्दावन]] को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया । चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन 1486 की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के [[नवद्वीप]] (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब मायापुर कहा जाता है । बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें निमाई कहकर पुकारते थे । गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर आदि भी कहते थे । चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई । उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है ।  
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चैतन्य महाप्रभु [[भक्तिकाल]] के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के [[गौड़ीय संप्रदाय]] की आधारशिला रखी । भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त [[वृन्दावन]] को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया । चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन् 1486 की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के [[नवद्वीप]] (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब मायापुर कहा जाता है । बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें निमाई कहकर पुकारते थे । गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर आदि भी कहते थे । चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई । उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है ।  
 
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इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था । निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे । साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे । इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था । बहुत कम उम्र में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे । इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया । निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद् चिंतन में लीन रहकर राम व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे । 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ । सन 1505 में सर्प दंश से पत्नी की मृत्यु हो गई । वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ । जब ये किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया । सन 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने गया गए, तब वहां इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई । उन्होंने निमाई से कृष्ण-कृष्ण रटने को कहा । तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे । भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए । सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने । इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की । निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से [[ढोल|ढोलक]], [[मृदंग]], [[झांझ|झाँझ]], [[मंजीरे]] आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया । 'हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे । हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे` नामक अठारह शब्दीय कीर्तन महामन्त्र निमाई की ही देन है ।
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इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था । निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे । साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे । इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था । बहुत कम उम्र में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे । इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया । निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद् चिंतन में लीन रहकर राम व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे । 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ । सन् 1505 में सर्प दंश से पत्नी की मृत्यु हो गई । वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ । जब ये किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया । सन् 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने गया गए, तब वहां इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई । उन्होंने निमाई से कृष्ण-कृष्ण रटने को कहा । तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे । भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए । सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने । इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की । निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से [[ढोल|ढोलक]], [[मृदंग]], [[झांझ|झाँझ]], [[मंजीरे]] आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया । 'हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे । हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे` नामक अठारह शब्दीय कीर्तन महामन्त्र निमाई की ही देन है ।
 
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इनका पूरा नाम विश्वम्भर विश्र और कहीं श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र मिलता है। चैतन्य ने चौबीस वर्ष की उम्र में वैवाहिक जीवन त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था।  वे कर्मकांड के विरोधी और श्रीकृष्ण के प्रति आस्था के समर्थक थे।  चैतन्य मत का एक नाम 'गोडीय वैष्णव मत' भी है।  चैतन्य ने अपने जीवन का शेष भाग प्रेम और भक्ति का प्रचार करने में लगाया।  उनके पंथ का द्वार सभी के लिए खुला था।  हिन्दू और मुसलमान सभी ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया।  उनके अनुयायी चैतन्यदेव को [[विष्णु के अवतार|विष्णु का अवतार]] मानते हैं।  अपने जीवन के अठारह वर्ष उन्होंने उड़ीसा में बिताये।  छह वर्ष तक वे दक्षिण भारत, वृन्दावन आदि स्थानों में विचरण करते रहे।  48 वर्ष की अल्पायु में उनका देहांत हो गया।  मृदंग की ताल पर कीर्तन करने वाले चैतन्य के अनुयायियों की संख्या आज भी पूरे [[भारत]] में पर्याप्त है।
 
इनका पूरा नाम विश्वम्भर विश्र और कहीं श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र मिलता है। चैतन्य ने चौबीस वर्ष की उम्र में वैवाहिक जीवन त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था।  वे कर्मकांड के विरोधी और श्रीकृष्ण के प्रति आस्था के समर्थक थे।  चैतन्य मत का एक नाम 'गोडीय वैष्णव मत' भी है।  चैतन्य ने अपने जीवन का शेष भाग प्रेम और भक्ति का प्रचार करने में लगाया।  उनके पंथ का द्वार सभी के लिए खुला था।  हिन्दू और मुसलमान सभी ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया।  उनके अनुयायी चैतन्यदेव को [[विष्णु के अवतार|विष्णु का अवतार]] मानते हैं।  अपने जीवन के अठारह वर्ष उन्होंने उड़ीसा में बिताये।  छह वर्ष तक वे दक्षिण भारत, वृन्दावन आदि स्थानों में विचरण करते रहे।  48 वर्ष की अल्पायु में उनका देहांत हो गया।  मृदंग की ताल पर कीर्तन करने वाले चैतन्य के अनुयायियों की संख्या आज भी पूरे [[भारत]] में पर्याप्त है।

Revision as of 14:01, 6 March 2012

chaitany mahaprabhu
Chaitanya Mahaprabhu|thumb|250px
chaitany mahaprabhu bhaktikal ke pramukh kaviyoan mean se ek haian. inhoanne vaishnavoan ke gau diy sanpraday ki adharashila rakhi . bhajan gayaki ki ek nayi shaili ko janm diya tatha rajanitik asthirata ke dinoan mean hindoo muslim ekata ki sadbhavana ko bal diya, jati-paant, ooanch-nich ki bhavana ko door karane ki shiksha di tatha vilupt vrindavan ko phir se basaya aur apane jivan ka aantim bhag vahian vyatit kiya . chaitany mahaprabhu ka janm sanh 1486 ki phalgun shukl poornima ko pashchim bangal ke navadvip (nadiya) namak us gaanv mean hua, jise ab mayapur kaha jata hai . balyavastha mean inaka nam vishvanbhar tha, parantu sabhi inhean nimaee kahakar pukarate the . gauravarn ka hone ke karan log inhean gauraang, gaur hari, gaur suandar adi bhi kahate the . chaitany mahaprabhu ke dvara gau diy vaishnav sanpraday ki adharashila rakhi gee . unake dvara praranbh kie ge mahamantr nam sankirtan ka atyant vyapak v sakaratmak prabhav aj pashchimi jagat tak mean hai .


inake pita ka nam jagannath mishr v maan ka nam shachi devi tha . nimaee bachapan se hi vilakshan pratibha sanpann the . sath hi, atyant saral, suandar v bhavuk bhi the . inake dvara ki gee lilaoan ko dekhakar har koee hataprabh ho jata tha . bahut kam umr mean hi nimaee nyay v vyakaran mean parangat ho ge the . inhoanne kuchh samay tak nadiya mean skool sthapit karake adhyapan kary bhi kiya . nimaee balyavastha se hi bhagavadh chiantan mean lin rahakar ram v krishna ka stuti gan karane lage the . 15-16 varsh ki avastha mean inaka vivah lakshmipriya ke sath hua . sanh 1505 mean sarp dansh se patni ki mrityu ho gee . vansh chalane ki vivashata ke karan inaka doosara vivah navadvip ke rajapandit sanatan ki putri vishnupriya ke sath hua . jab ye kishoravastha mean the, tabhi inake pita ka nidhan ho gaya . sanh 1509 mean jab ye apane pita ka shraddh karane gaya ge, tab vahaan inaki mulaqat eeshvarapuri namak sant se huee . unhoanne nimaee se krishna-krishna ratane ko kaha . tabhi se inaka sara jivan badal gaya aur ye har samay bhagavan shrikrishna ki bhakti mean lin rahane lage . bhagavan shrikrishna ke prati inaki anany nishtha v vishvas ke karan inake asankhy anuyayi ho ge . sarvapratham nityanand prabhu v advaitachary maharaj inake shishy bane . in donoan ne nimaee ke bhakti aandolan ko tivr gati pradan ki . nimaee ne apane in donoan shishyoan ke sahayog se dholak, mridang, jhaanjh, manjire adi vady yantr bajakar v uchch svar mean nach-gakar hari nam sankirtan karana praranbh kiya . 'hare-krishna, hare-krishna, krishna-krishna, hare-hare . hare-ram, hare-ram, ram-ram, hare-hare` namak atharah shabdiy kirtan mahamantr nimaee ki hi den hai .


inaka poora nam vishvambhar vishr aur kahian shrikrishna chaitany chandr milata hai. chaitany ne chaubis varsh ki umr mean vaivahik jivan tyag kar sannyas grahan kar liya tha. ve karmakaand ke virodhi aur shrikrishna ke prati astha ke samarthak the. chaitany mat ka ek nam 'godiy vaishnav mat' bhi hai. chaitany ne apane jivan ka shesh bhag prem aur bhakti ka prachar karane mean lagaya. unake panth ka dvar sabhi ke lie khula tha. hindoo aur musalaman sabhi ne unaka shishyatv grahan kiya. unake anuyayi chaitanyadev ko vishnu ka avatar manate haian. apane jivan ke atharah varsh unhoanne u disa mean bitaye. chhah varsh tak ve dakshin bharat, vrindavan adi sthanoan mean vicharan karate rahe. 48 varsh ki alpayu mean unaka dehaant ho gaya. mridang ki tal par kirtan karane vale chaitany ke anuyayiyoan ki sankhya aj bhi poore bharat mean paryapt hai.

chaitany sampraday

  • is sanpraday ke pravartak chaitany mahaprabhu haian.
  • tatvik siddhaant ki drishti se ise achianty bhedabhedavadi sanpraday kahate haian.
  • isake anusar paramatattv ek hi haian jo sachchidanand svaroop haian, jo anant shakti sanpann tatha anadi hai.
  • upadhi bhed ke dvara usako paramatma, brahm au bhagavan kaha gaya hai.

vithika


sanbandhit lekh