सड़क परिवहन: Difference between revisions
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राज्यों की सड़को का निर्माण, रख रखाव आदि राज्य सरकारों एवं संघ शासित क्षेत्रों द्वारा सम्पन्न होता है। राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एम.एन.पी.) के अन्तर्गत सड़कों का विकास किया जा रहा है। इसका उद्देश्य 1500 या इससे अधिक आबादी वाले सभी गांवो को हर मौसम में चालू रहने वाले मार्गो से जोड़ना है। | राज्यों की सड़को का निर्माण, रख रखाव आदि राज्य सरकारों एवं संघ शासित क्षेत्रों द्वारा सम्पन्न होता है। राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एम.एन.पी.) के अन्तर्गत सड़कों का विकास किया जा रहा है। इसका उद्देश्य 1500 या इससे अधिक आबादी वाले सभी गांवो को हर मौसम में चालू रहने वाले मार्गो से जोड़ना है। | ||
Revision as of 08:57, 6 May 2012
सड़क परिवहन ने भारत के समाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कम एवं मध्यम दूरियाँ तक के लिए यह यातायात का सर्वाधिक सुगम एवं सस्ता साधन भी हैं। वास्तव में यह सेवा परिवहन के अन्य साधनों की सहायक है, क्योकि इसकी विश्वसनीयता, शीघ्रता, लचीलापन एवं दरवाजे तक प्रदान की जाने वाली सुविधा काफी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में भौतिक विशेषताओं के कारण रेल परिवहन एक सीमा तक ही किया सकता है। अतएव सड़कों का महत्तव अपने आप बढ़ जाता है। इसका सबसे महत्तवपूर्ण बिन्दू सवारियों की संख्या में लगातार होने वाली वृद्धि है। 1950-51 में जहाँ देश में कुल 34,000 बसें एवं 82,000 ट्रकें थी, वहीं वर्ष 1990-91 में इनकी संख्या बढ़कर क्रमशः 1,91,73,168 तथा 12,89,250 हो गयी। मार्च, 1997 में भारत में सड़को की कुल लम्बाई बढ़कर 33 लाख 40 हजार किमी हो गई है। इनमें 65,754 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग तथा 1,29,431 किमी राज्य राजमार्ग 4,70,000 किमी मुख्य ज़िला सड़के और लगभग 26,50,000 किमी अन्य ज़िला और ग्रामीण सड़कें शामिल हैं। राष्ट्रीय राजमार्गो की कुल लम्बाई में से 32 प्रतिशत एकल (सिंगल) लेन/मध्यवर्ती लेन, लगभग 55 प्रतिशत मानक 2- लेन ओर शेष 13 प्रतिशत 4- लेन वाली अथवा उससे ज्यादा चौड़ी सड़कें है।
सड़कों के वर्ग
भारत में प्रबन्धन के आधार पर सड़कों को तीन वर्गो में रखा जाता है-
- राष्ट्रीय महामार्ग
- राज्य महामार्ग
- सीमावर्ती सड़के
सड़कों का निर्माण
राज्यों की सड़को का निर्माण, रख रखाव आदि राज्य सरकारों एवं संघ शासित क्षेत्रों द्वारा सम्पन्न होता है। राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एम.एन.पी.) के अन्तर्गत सड़कों का विकास किया जा रहा है। इसका उद्देश्य 1500 या इससे अधिक आबादी वाले सभी गांवो को हर मौसम में चालू रहने वाले मार्गो से जोड़ना है।
सीमावर्ती सड़को का निर्माण एवं प्रबन्धन सीमा सड़क विकास बोर्ड द्वारा किया जाता है। इस बोर्ड का गठन भारत के उत्तरी तथा पुर्वोत्तर क्षेत्र के सीमावर्ती इलाकों में सड़क परिवाहन का समन्वित तथा तीव्र विकास करके भारत के आर्थिक विकास को तेज करने तथा प्रतिरक्षा सम्बन्धी तैयारियों को मजबूती प्रदान करने के लिए सन 1960 में किया गया था। वर्तमान में इसकी विकास सम्बन्धी गतिविधियाँ राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, असम, मेघालय, नागालैण्ड, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, अण्डमान निकोबार द्वीप समूह तथा भूटान में भी प्रारम्भ की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त सीमा सड़क संगठन भी भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में थल सेना की सहायता के लिए तीव्र गति से सड़कों एवं हवाई पट्टियों का निर्माण करने की भूमिका निभाता है। इसका कार्य विभागीय रूप में पूरा किया जाता है। 31 मार्च, 2005 तक सीमा सड़क संगठन द्वारा लगभग 40,450 किमी लम्बे सड़क मार्गो का निर्माण किया जा चुका था। वर्तमान में भारत में राज्यवार सड़को की कुल लम्बाई तालिका में दर्शित है।
राष्ट्रीय राजमार्ग
भारत में अहमदाबाद और बड़ोदरा को 6- पथ एक्सप्रेस मार्ग से जोड़ा गया है। राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, प्रबन्धन एवं रख-रखाव की जिम्मेदारी भारत सरकार द्वारा निभायी जाती है। इनका नियंत्रण केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सी.पी.डब्ल्यू.डी.) द्वारा किया जाता है। वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली के अन्तर्गत कुल 65,754 किमी लम्बी सड़कें शामिल हैं। हालांकि राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई भारत की सड़कों की कुल लम्बाई मात्र 2 प्रतिशत ही हैं। किन्तु ये सम्पूर्ण भारत के सड़क परिवाहन का लगभग 40 प्रतिशत यातायात सम्पन्न कराती है। भारत में कुल 75 (14 अन्य प्रस्तावित) राष्ट्रीय राजमार्ग हैं, जिसमें सबसे लम्बा राष्ट्रीय रजमार्ग संख्या 7 हैं, जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक जाता हैं। सड़को का सबसे ज्यादा लम्बाई महाराष्ट्र (2.45 लाख किमी) में है।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम
भारत में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) के दौरान व्यापक राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) शुरू किया है। यह एनएचडीपी परियोजना भारत में संचालित अब तक की सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है। इसका संचालन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना को दो चरणों में पूरा करने का कार्यक्रम है जिसके तहत लगभग 14,279 किमी सड़कों को कुल 64, 639 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 4 व 6 लेन वाले राष्ट्रीय राजमार्गों में विकसित किया जाएगा।
30 अप्रैल, 2006 तक राष्ट्रीय राजमार्ग विकार परियोजना I और II के अंतर्गत स्वर्णिम चतुर्भुज की कुल 5,846 किमी की लम्बाई में से 5,319 किमी मार्ग को चार लेन वाला बनाया जा चुका है। इसी प्रकार 7,300 किमी की उत्तर दक्षिण और पूर्व-पश्चिम के अंतर्गत 822 किमी लम्बे मार्ग को चार लेन में बदलने का कार्य पूरा हो चुका है जबकि 4,892 किमी की लम्बाई के मार्ग पर कार्य प्रगति पर है।
- चरण 3 - राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के चरण 3 के तहत लगभग 12,109 किमी. वर्तमान राष्ट्रीय राजमार्ग को चार लेने वाले मार्ग में बदलने का लक्ष्य रखा गया है। इस पर 80,626 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है।
- चरण 4 - इसके तहत 20,000 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग को खड़जें वाले पेन्ड खण्ड सहित दो लेन वाला बनाने का प्रस्ताव है।
- चरण 5 - इस चरण के अंतर्गत 41,210 करोड़ रुपये की लागत पर 6,500 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग को, जिसमें स्वर्ण चतुर्भुज के तहत 57,000 किमी और राष्ट्रीय राजमार्गों के अन्य खण्डों के तहत 800 किमी शामिल है 6 लेन वाला बनाने की स्वीकृति प्रदान की गई है।
- चरण 6 - इसके तहत 16,680 करोड़ रुपये की लागत से नये जोड़े गये मार्गो पर पूरी पहुंच नियंत्रण वाले 1000 किमी के एक्सप्रेस वे के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है।
- चरण 7 - इस चरण के दौरान 16,680 करोड़ की लागत पर रिंग रोड का निर्माण करने की योजना है।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के तृतीय चरण से लेकर सातवें चरण की उपपरियोजनाओं को सरकारी निजी भागेदारी के आधार पर बनाओं, चलाओं और अंतरित करो (बीओटी) के पद्धति पर शुरू करने की योजना है।
राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के तहत चार महानगरों - दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों से संबद्ध होकर स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का क्रियांवयन किया जा रहा है। इसकी कुल लम्बाई 5,846 किमी है। उत्तर दक्षिण मार्ग (कॉरिडोर) के अंतर्गत कोच्चि-सेलम स्पर मार्ग सहित श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग और सिल्वर को पोरबंदर से जोड़ने वाला पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर शामिल है। इन राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 7,300 किमी है। उत्तर दक्षिण और पूर्व-पश्चिम कॉरिडोरों का निर्माण दिसम्बर, 2007 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। 30 नवम्बर, 2007 एक एनएचडीपी परियोजना के तहत 7,962 किमी वाले राष्ट्रीय राजमार्ग का कार्य पूरा हो चुका है। इस राजमार्ग का अधिकांश भाग (5,629 किमी) स्वर्ण चतुर्भुज में स्थित है। लगभग 7,744 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माणाधीन है। नवम्बर, 2007 तक स्वर्ण चतुर्भज का लगभग 96 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। उत्तर दक्षिण तथा पूर्व-पूर्व पश्चिम कॉरिडॉरों का निर्माण कार्य दिसम्बर, 2009 तक पूरा करने का लक्ष्य है।
पंचवर्षीय योजनाएँ
- आठवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस कार्य पर 3221.40 करोड़ रु. खर्च किये गये। 31 मार्च, 2000 तक कुल 4,771 किमी लंबे नये संपर्क मार्गो का निर्माण और 26,573 किमी सड़को को चौड़ा और मजबूत करके दो लेन वाली सड़कों में बदला गया है।
- दसवीं पंचवर्षीय योजना के लिए केन्द्रीय क्षेत्र के सड़क कार्यक्रम के लिए 59,700 करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया गया था, जिसमें 500 करोड़ रुपये का प्रावधान अंतर-राज्य मार्गो और आर्थिक महत्तव की सड़को के लिए किया गया। योजना के लिए आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संशोधनों से 24,700 करोड़ रुपये जुटाये गये। राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों की योजना में सड़को और पुलों के लिए लगभग 50,321 करोड़ रुपये निर्धारित किये गये थे।
- 11 वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय प्रमुख मार्ग विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 4-लेन और 2-लेन वाली कुल 45,974 किमी लम्बी सड़क निर्माण का कार्यक्रम तय किया गया है। इसकी कुल लागत 2,20,000 करोड़ रुपये होगी। सरकार द्वारा इसका क्रियांवयन सार्वजनिक-निजी साझेदारी के आधार पर किया जाएगा।
- 11 वीं योजना के अंतर्गत ग्रामीण सड़को के विस्तार के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अधीन 1,00 जनसंख्या वाले सभी ग्रामों और पहाड़ी क्षेत्रों में 500 जनसंख्या वाले क्षेत्रों को जोड़ा जाएगा। इस कार्यक्रम से भारत के ग्रामों को बाजार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत लाया जाएगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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