पन्नालाल घोष: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " फिल्म" to " फ़िल्म")
No edit summary
Line 49: Line 49:


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{शास्त्रीय वादक कलाकार}}
{{शास्त्रीय वादक कलाकार}}{{संगीत वाद्य}}
[[Category:वादन]][[Category:शास्त्रीय वादक कलाकार]][[Category:संगीत कोश]][[Category:कला_कोश]]
[[Category:वादन]][[Category:शास्त्रीय वादक कलाकार]][[Category:संगीत कोश]][[Category:कला_कोश]]
[[Category:चरित कोश]]
[[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 11:38, 14 June 2012

पन्नालाल घोष
पूरा नाम अमूल ज्योति घोष
प्रसिद्ध नाम पंडित पन्नालाल घोष
जन्म 31 जुलाई, 1911
जन्म भूमि कोलकाता
मृत्यु 20 अप्रैल, 1960
पति/पत्नी पारुल घोष
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय संगीत
प्रसिद्धि बाँसुरी वादक
संबंधित लेख अली अकबर ख़ाँ, अमजद अली ख़ाँ, शिवकुमार शर्मा, असद अली ख़ाँ, अलाउद्दीन ख़ाँ
अन्य जानकारी पन्नाबाबू शास्त्रीय बांसुरी के जन्मदाता हैं और उन्हें बांसुरी का मसीहा कहना समीचीन होगा। जिन्हें बांसुरी को लोक वाद्य से शास्त्रीय वाद्य यंत्र के रूप में स्थापित करने का श्रेय जाता हैं।
अद्यतन‎

पन्नालाल घोष (अंग्रेज़ी: Pannalal Ghosh) वास्तविक नाम 'अमूल ज्योति घोष' (जन्म- 31 जुलाई, 1911 - मृत्यु- 20 अप्रैल, 1960) भारत के प्रसिद्ध बाँसुरी वादक थे। पंडित पन्नालाल घोष बांसुरी के मसीहा नयी बांसुरी के जन्मदाता और भारतीय शास्त्रीय संगीत का युगपुरूष जिसने लोक वाद्य बाँसुरी को शास्त्रीय के रंग में ढालकर शास्त्रीय वाद्य यंत्र बना दिया।

जीवन परिचय

जन्म

अमल ज्योति घोष के नाम से जाने जाने वाले पंडित पन्नालाल घोष का जन्म 31 जुलाई 1911 में पूर्वी बंगाल के बारीसाल में हुआ था। शुरू में उनका परिवार अमरनाथगंज के गांव में रहता था जो बाद में फतेहपुर आ गया। उनका जन्म संगीत सुधी परिवार में हुआ था। उनके पिता अक्षय कुमार घोष सितार वादक थे और उनकी मां सुकुमारी गायक थीं।[1]

प्रारंभिक जीवन

हारमोनियम उस्ताद खुशी मोहम्मद ख़ान उनके पहले गुरु थे और ख्याल गायक पंडित गिरजा शंकर चक्रवर्ती एवं उस्ताद अलाउद्दीन ख़ान साहब से भी उन्होंने शिक्षा हासिल की थी। 1940 में पन्नाबाबू ने संगीत निर्देशक अनिल विश्वास की बहन और जानी मानी पार्श्व गायिका पारुल घोष से विवाह कर लिया। इसके पहले 1938 में पन्नालाल घोष ने यूरोप का दौरा किया और वे उन आरंभिक शास्त्रीय संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने विदेश में कार्यक्रम पेश किया।[1]

बांसुरी के जन्मदाता

पन्नाबाबू शास्त्रीय बांसुरी के जन्मदाता हैं और उन्हें बांसुरी का मसीहा कहना समीचीन होगा। जिन्हें बांसुरी को लोक वाद्य से शास्त्रीय वाद्य यंत्र के रूप में स्थापित करने का श्रेय जाता हैं। उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि 1930 में उनका पहला एलपी जारी हुआ। आने वाली सदियां पन्ना बाबू के काम को कभी भूल नहीं सकती हैं। उन्हीं का प्रयास है कि कृष्ण कन्हैया की बांसुरी का आज के फ्यूजन संगीत में भी अहम स्थान है। बांसुरी को शास्त्रीय वाद्य के रूप में लोगों के दिलों में बसाने का काम पन्ना बाबू ने शुरू किया था और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे बांसुरी वादकों ने इस वाद्य यंत्र को विदेशों में लोकप्रिय कर दिया। पन्नालाल जी ने कई फ़िल्मों में भी बांसुरी बजाई थी, जो आज भी अद्वितीय है। जिनमें मुग़ले आज़म, बसंत बहार, बसंत दुहाई, अंजान और आंदोलन जैसी कई प्रसिद्ध फ़िल्में प्रमुख हैं जिसके संगीत के साथ पंडित पन्नालाल घोष का नाम जुड़ा रहा।[1]

निधन

पारंपरिक भारतीय वाद्य यंत्र बांसुरी की अतुल्य विरासत अपने शिष्य और प्रशंसकों के हाथों में सौंप कर 20 अप्रैल 1960 में पन्नाबाबू हमेशा के लिए इस दुनिया से कूच कर गये। पन्नालाल जी की बांसुरी जब आज भी सुनते हैं तो उनकी मिठास तथा विविधता का कोई जोड़ नज़र नहीं आता। उनका बजाया हुआ राग मारवा तथा अन्य राग जब आज सुनते हैं तो अध्यात्मिक अहसास होने लगता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 बांसुरी के मसीहा थे पंडित पन्नालाल घोष (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) समय लाइव। अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख