अन्नपूर्णा देवी (सुरबहार वादक)
चित्र:Disamb2.jpg अन्नपूर्णा देवी | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अन्नपूर्णा देवी (बहुविकल्पी) |
अन्नपूर्णा देवी (सुरबहार वादक)
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पूरा नाम | अन्नपूर्णा देवी |
अन्य नाम | रोशनआरा ख़ान |
जन्म | 23 अप्रैल, 1927 |
जन्म भूमि | मध्य प्रदेश |
अभिभावक | पित- अलाउद्दीन ख़ान और माता- मदनमंजरी देवी |
पति/पत्नी | पंडित रवि शंकर और रूशी कुमार पंड्या |
संतान | शुभेन्द्र शंकर |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | संगीत कला |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, 'संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अन्नपूर्णा देवी ने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया। कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल देखने को मिल जाता है। |
अद्यतन | 18:36, 28 जून 2017 (IST)
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अन्नपूर्णा देवी (अंग्रेज़ी: Annapurna Devi, मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: 23 अप्रैल,[1] 1927, मध्य प्रदेश) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का सितार) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार अलाउद्दीन ख़ान की बेटी और शिष्या हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।
परिचय
अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा ख़ान) का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अलाउद्दीन ख़ान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था। इनके एकमात्र भाई उस्ताद अली अकबर ख़ान तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा ख़ान) थीं।
संगीत शिक्षा
अन्नपूर्णा देवी की बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया था और दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु माँ ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया। इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को संगीत की शिक्षा नहीं देंगे। एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर ख़ान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया। आगे चलकर अन्नपूर्णा देवी ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से ही सीखा।
कॅरियर
अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर ख़ान। इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया।
पुरस्कार एवं सम्मान
अन्नपूर्णा देवी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
- 2004 - भारत सरकार द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया।
- 1999 - रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने इन्हें 'डॉक्टरेट' की मानद उपाधि से विभूषित किया।
- 1991 - संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में इनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान के लिए इन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया।
- 1977 - अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्नपूर्णा देवी (हिंदी) www.itshindi.com। अभिगमन तिथि: 24 जून, 2017।
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