एक हथिया देवाल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 17: | Line 17: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{उत्तराखंड के पर्यटन स्थल}} | {{उत्तराखंड के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:उत्तराखंड]][[Category:उत्तराखंड के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश | [[Category:उत्तराखंड]][[Category:उत्तराखंड के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 12:01, 25 September 2012
thumb|बल्तिर का अभिशप्त देवालय एक हथिया देवाल एक अभिशप्त देवालय का नाम है। यह सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के कस्बे थल से लगभग छः किलोमीटर दूर ग्राम सभा बल्तिर में स्थित है।
किंवदंती
किंवदंती है कि इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काट-काट कर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ खराब हो गया। अब वह एक हाथ के सहारे ही मूर्तियाँ बनाना चाहता था। परन्तु गाँव के कुछ लोगों ने उसे यह उलाहना देना शुरू कर दिया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या कर सकेगा? लगभग सारे गाँव से एक जैसी उलाहना सुन सुनकर मूर्तिकार खिन्न हो गया। उसने प्रण कर लिया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा। यह प्रण करने के बाद वह एक रात अपनी छेनी, हथौडी सहित अन्य औजार लेकर वह गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पडा। गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी।
अगले दिन प्रातःकाल जब गाँववासी शौच के उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है। कौतूहल से सबकी आँखे फटी रह गयीं। सारे गांववासी वहाँ पर एकत्रित हुये परन्तु वह कारीगर नहीं आया जिसका एक हाथ कटा था। सभी गांववालों ने गाँव में जाकर उसे ढूंढा और आपस में एक दूसरे उसके बारे में पूछा परन्त्तु उसके बारे में कुछ भी पता न चल सका, वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोडकर जा चुका था।
जब स्थानीय पंडितों ने उस देवालय के अंदर उकेरी गयी भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात्रि में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्टकारक भी हो सकता है। बस इसी के चलते रातों रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में (जिन्हे स्थानीय भाषा में नौला कहा जाता है) मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख