आखिरी आवाज़ -रांगेय राघव: Difference between revisions

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'आखिरी आवाज' ([[1962]]) की भूमिका में लेखक ने प्रकट किया है कि- 'आज भी समाज में संघर्ष होता है और पुराने और नये संस्‍कारों का संघर्ष होता है। मेरा नार्यन संघर्ष का जीवन्‍त स्‍वरूप है। मैंने इतिहास संबंधी उपन्‍यास लिखे हैं और सामाजिक भी। कथा साहित्‍य को एक नया विकास देने की ओर मेरी चेष्‍टा रही है। यह उपन्‍यास उसी कड़ी का है।' इस उपन्यास में लेखक ने बताया है कि 'व्‍यक्ति का व्‍यक्तित्‍व युग से समन्वित होकर भी आदर्श के बिजन में सीमित नहीं हो जाता।' इस उपन्‍यास में एक बलात्‍कार और हत्‍या के मुकदमे के इर्द-गिर्द कथा घुमती है। उस कथा के माध्‍यम से स्‍वातन्‍त्र्योत्तर [[भारत]] में नायक दल के नेताओं और सरकारी अधिकारियों की रिश्‍वतखोरी का भण्‍डाफोड़ होने के कारण इसको समाजवादी उपन्‍यास की संज्ञा नहीं दे सकते। घटना प्रधान उपन्‍यास होने के कारण वस्‍तु और चरित्र की दृष्टि से यह उपन्‍यास कोई नयी उपलब्धि नहीं दे पाता।<ref>{{cite web |url=http://www.favreads.in/reviews.php?id_product=2573&id_product_comment=18&action=view#.UP-GjvKBWSo |title=आखिरी आवाज|accessmonthday=23 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
'आखिरी आवाज' ([[1962]]) की भूमिका में लेखक ने प्रकट किया है कि- 'आज भी समाज में संघर्ष होता है और पुराने और नये संस्‍कारों का संघर्ष होता है। मेरा नार्यन संघर्ष का जीवन्‍त स्‍वरूप है। मैंने इतिहास संबंधी उपन्‍यास लिखे हैं और सामाजिक भी। कथा साहित्‍य को एक नया विकास देने की ओर मेरी चेष्‍टा रही है। यह उपन्‍यास उसी कड़ी का है।' इस उपन्यास में लेखक ने बताया है कि 'व्‍यक्ति का व्‍यक्तित्‍व युग से समन्वित होकर भी आदर्श के बिजन में सीमित नहीं हो जाता।' इस उपन्‍यास में एक बलात्‍कार और हत्‍या के मुकदमे के इर्द-गिर्द कथा घुमती है। उस कथा के माध्‍यम से स्‍वातन्‍त्र्योत्तर [[भारत]] में नायक दल के नेताओं और सरकारी अधिकारियों की रिश्‍वतखोरी का भण्‍डाफोड़ होने के कारण इसको समाजवादी उपन्‍यास की संज्ञा नहीं दे सकते। घटना प्रधान उपन्‍यास होने के कारण वस्‍तु और चरित्र की दृष्टि से यह उपन्‍यास कोई नयी उपलब्धि नहीं दे पाता।<ref>{{cite web |url=http://www.favreads.in/reviews.php?id_product=2573&id_product_comment=18&action=view#.UP-GjvKBWSo |title=आखिरी आवाज|accessmonthday=23 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==कथानक==
==कथानक==
डॉ. राघव के सामाजिक उपन्यासों में यह उनका अंतिम उपन्यास है। आकार में काफी बृहद है। पात्रों की भीड भी है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद बदलते हुए ग्राम्य-जीवन का चित्रण है। देहाती जीवन की दलबन्दी, मुकदमेबाजी, भ्रष्टाचार और राजनीति-संबंधी अनेक घटनाएँ हैं, जिन्हें बडे विस्तार और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कई आलोचकों ने इस उपन्यास को [[प्रेमचंद]] की परंपरा से भी जोडा है। हिरदेराम मुख्य प्रभावी पात्र है जो ग्रामीण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। गोविन्द दुश्चरित्र व्यक्ति है। नारी पात्रों में निहाल कौर निर्लज्ज, चरित्र से हीन युवती है। चम्पा, चमेली भी ऐसी ही हैं जो शारीरिक संबंध बनाने में बहुत तेज हैं। इस उपन्यास में आँचलिकता की झलक भी मिलती है। कथोपकथन व्यंग्यात्मक शैली में ह। भाषा ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग में ली जाने वाली लगती है। इस उपन्यास का लेखन परिपक्वता प्रकट करता है।<ref>{{cite web |url=http://www.pressnote.in/%E0%A4%A1%E0%A5%89.-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87%E0%A4%AF-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B5-%E0%A4%83-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-_65682.html#.UQEaIyf29-s|title=डॉ. रांगेय राघव: एक अद्वितीय उपन्यासकार|accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>
डॉ. राघव के सामाजिक उपन्यासों में यह उनका अंतिम उपन्यास है। आकार में काफ़ी बृहद है। पात्रों की भीड भी है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद बदलते हुए ग्राम्य-जीवन का चित्रण है। देहाती जीवन की दलबन्दी, मुकदमेबाजी, भ्रष्टाचार और राजनीति-संबंधी अनेक घटनाएँ हैं, जिन्हें बडे विस्तार और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कई आलोचकों ने इस उपन्यास को [[प्रेमचंद]] की परंपरा से भी जोडा है। हिरदेराम मुख्य प्रभावी पात्र है जो ग्रामीण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। गोविन्द दुश्चरित्र व्यक्ति है। नारी पात्रों में निहाल कौर निर्लज्ज, चरित्र से हीन युवती है। चम्पा, चमेली भी ऐसी ही हैं जो शारीरिक संबंध बनाने में बहुत तेज हैं। इस उपन्यास में आँचलिकता की झलक भी मिलती है। कथोपकथन व्यंग्यात्मक शैली में ह। भाषा ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग में ली जाने वाली लगती है। इस उपन्यास का लेखन परिपक्वता प्रकट करता है।<ref>{{cite web |url=http://www.pressnote.in/%E0%A4%A1%E0%A5%89.-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87%E0%A4%AF-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B5-%E0%A4%83-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-_65682.html#.UQEaIyf29-s|title=डॉ. रांगेय राघव: एक अद्वितीय उपन्यासकार|accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>


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Revision as of 11:25, 14 May 2013

आखिरी आवाज़ -रांगेय राघव
लेखक रांगेय राघव
प्रकाशक राजपाल प्रकाशन
ISBN 9788170288008
देश भारत
पृष्ठ: 344
भाषा हिन्दी
प्रकार उपन्यास

आखिरी आवाज रांगेय राघव, जिन्हें हिन्दी साहित्य का शिरोमणि माना जा सकता है, द्वारा रचित एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास का प्रकाशन 'राजपाल प्रकाशन' द्वारा किया गया था। अपनी अदभुत कल्पना-शक्ति, असाधारण प्रतिभा के द्वारा राघव जी ने एक साधारण से कथानक को इतनी खूबसूरती से वर्णित किया है कि पढ़ते-पढ़ते पाठक रोमांचित हो उठता है।

  • राघव जी ने साहित्य की विविध विधाओं के लिए अमूल्य योगदान दिया है।
  • कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना तथा इतिहास आदि से सम्बद्ध अनेक बहुमूल्य रचनाएँ रांगेय राघव ने लिखीं।
  • अपने उपन्यास 'आखिरी आवाज़' में उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और घूसखोरी की कलई खोली है। सरल और सहज शैली में लिखा गया उनका यह उपन्यास पाठक का भरपूर मनोरंजन करता है।
  • गांव में सरपंच, दरोगा और ऊंची पहुँच वालों की किस तरह तूती बोलती है कि साधारण ग्रामीण अन्याय के विरुद्ध आवाज़ तक नहीं उठा सकता। साथ ही मानवीय उद्वेगों, दंभ और घूसखोरी आदि सामाजिक बुराइयों को भी लेखक ने बड़ी ही सहजता से इस उपन्यास में बेनकाब किया है।

'आखिरी आवाज' (1962) की भूमिका में लेखक ने प्रकट किया है कि- 'आज भी समाज में संघर्ष होता है और पुराने और नये संस्‍कारों का संघर्ष होता है। मेरा नार्यन संघर्ष का जीवन्‍त स्‍वरूप है। मैंने इतिहास संबंधी उपन्‍यास लिखे हैं और सामाजिक भी। कथा साहित्‍य को एक नया विकास देने की ओर मेरी चेष्‍टा रही है। यह उपन्‍यास उसी कड़ी का है।' इस उपन्यास में लेखक ने बताया है कि 'व्‍यक्ति का व्‍यक्तित्‍व युग से समन्वित होकर भी आदर्श के बिजन में सीमित नहीं हो जाता।' इस उपन्‍यास में एक बलात्‍कार और हत्‍या के मुकदमे के इर्द-गिर्द कथा घुमती है। उस कथा के माध्‍यम से स्‍वातन्‍त्र्योत्तर भारत में नायक दल के नेताओं और सरकारी अधिकारियों की रिश्‍वतखोरी का भण्‍डाफोड़ होने के कारण इसको समाजवादी उपन्‍यास की संज्ञा नहीं दे सकते। घटना प्रधान उपन्‍यास होने के कारण वस्‍तु और चरित्र की दृष्टि से यह उपन्‍यास कोई नयी उपलब्धि नहीं दे पाता।[1]

कथानक

डॉ. राघव के सामाजिक उपन्यासों में यह उनका अंतिम उपन्यास है। आकार में काफ़ी बृहद है। पात्रों की भीड भी है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद बदलते हुए ग्राम्य-जीवन का चित्रण है। देहाती जीवन की दलबन्दी, मुकदमेबाजी, भ्रष्टाचार और राजनीति-संबंधी अनेक घटनाएँ हैं, जिन्हें बडे विस्तार और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कई आलोचकों ने इस उपन्यास को प्रेमचंद की परंपरा से भी जोडा है। हिरदेराम मुख्य प्रभावी पात्र है जो ग्रामीण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। गोविन्द दुश्चरित्र व्यक्ति है। नारी पात्रों में निहाल कौर निर्लज्ज, चरित्र से हीन युवती है। चम्पा, चमेली भी ऐसी ही हैं जो शारीरिक संबंध बनाने में बहुत तेज हैं। इस उपन्यास में आँचलिकता की झलक भी मिलती है। कथोपकथन व्यंग्यात्मक शैली में ह। भाषा ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग में ली जाने वाली लगती है। इस उपन्यास का लेखन परिपक्वता प्रकट करता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आखिरी आवाज (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2013।
  2. डॉ. रांगेय राघव: एक अद्वितीय उपन्यासकार (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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