पद (काव्य): Difference between revisions

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'''पद''' काव्य रचना की गेय शैली है। इसका विकास लोकगीतों की परंपरा से माना जाता है। यह मात्रिक [[छन्द]] की श्रेणी में आता है। प्राय: पदों के साथ किसी न किसी राग का निर्देश मिलता है। पद विशेष को सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है।
'''पद''' [[काव्य]] रचना की गेय [[शैली]] है। इसका विकास लोक गीतों की परंपरा से माना जाता है। यह मात्रिक [[छन्द]] की श्रेणी में आता है। प्राय: पदों के साथ किसी न किसी राग का निर्देश मिलता है। पद विशेष को सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है।
 
*'टेक' पद का विशेष अंग है। प्राय: [[हिन्दी साहित्य]] में पद शैली की दो परम्पराएँ मिलती हैं। पहली सन्तों के 'सबदों' की दूसरी कृष्ण भक्तों की पद-शैली, जिसका आधार लोक गीतों की शैली होगा।
*मध्यकालीन समय में भक्ति भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग हुआ।
*[[सूरदास]] का समस्त काव्य-व्यक्तित्व पद शैली से ही निर्मित है। '[[सूरसागर -सूरदास|सूरसागर]]' का सम्पूर्ण कवित्वपूर्ण और सजीव भाग पदों में है।
*[[परमानन्ददास]], [[नन्ददास]], [[कृष्णदास]], [[मीराबाई]], [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] आदि के पदों में सूर की मार्मिकता मिलती है।
*[[तुलसीदास]] ने अपनी कूछ रचनाएँ पद शैली में की हैं।
*वर्तमान में पद शैली का प्रचलन नहीं के बराबर है, परन्तु सामान्य जनता और सुशिक्षित जनों में सामान्य रूप से इनका प्रचार और आकर्षण है।




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*[http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AA%E0%A4%A6#.Urrhzfvy4dU पद]
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Latest revision as of 13:55, 25 December 2013

पद काव्य रचना की गेय शैली है। इसका विकास लोक गीतों की परंपरा से माना जाता है। यह मात्रिक छन्द की श्रेणी में आता है। प्राय: पदों के साथ किसी न किसी राग का निर्देश मिलता है। पद विशेष को सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है।

  • 'टेक' पद का विशेष अंग है। प्राय: हिन्दी साहित्य में पद शैली की दो परम्पराएँ मिलती हैं। पहली सन्तों के 'सबदों' की दूसरी कृष्ण भक्तों की पद-शैली, जिसका आधार लोक गीतों की शैली होगा।
  • मध्यकालीन समय में भक्ति भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग हुआ।
  • सूरदास का समस्त काव्य-व्यक्तित्व पद शैली से ही निर्मित है। 'सूरसागर' का सम्पूर्ण कवित्वपूर्ण और सजीव भाग पदों में है।
  • परमानन्ददास, नन्ददास, कृष्णदास, मीराबाई, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि के पदों में सूर की मार्मिकता मिलती है।
  • तुलसीदास ने अपनी कूछ रचनाएँ पद शैली में की हैं।
  • वर्तमान में पद शैली का प्रचलन नहीं के बराबर है, परन्तु सामान्य जनता और सुशिक्षित जनों में सामान्य रूप से इनका प्रचार और आकर्षण है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:साहित्यिक शब्दावली