हिन्दू विवाह: Difference between revisions

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परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। [[दुष्यंत]] ने [[शकुन्तला]] से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।
====असुर विवाह====
====असुर विवाह====
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।
कन्या को ख़रीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।
====राक्षस विवाह====
====राक्षस विवाह====
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।

Revision as of 12:56, 1 November 2014

thumb|हिन्दू विवाह में सात फेरे लेते हुए वर-वधू हिन्दू विवाह को हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिन्दू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिन्दू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रम्हचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। हिन्दू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

हिन्दू विवाह के प्रकार

ब्रह्म विवाह

दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोग्य वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "अरेंज मैरिज" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।

दैव विवाह

[[चित्र:Marriage.jpg|thumb|श्रीराम-सीता विवाह]] किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।

आर्श विवाह

कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना 'अर्श विवाह' कहलाता है।

प्रजापत्य विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।

गंधर्व विवाह

परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।

असुर विवाह

कन्या को ख़रीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।

राक्षस विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।

पैशाच विवाह

कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख