तिरुवल्लूर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "खूबसूरत" to "ख़ूबसूरत")
No edit summary
Line 17: Line 17:
#लक्ष्मी नरसिम्हा पेरुमल मंदिर
#लक्ष्मी नरसिम्हा पेरुमल मंदिर
#तिरुप्पासुर शिव मंदिर
#तिरुप्पासुर शिव मंदिर
====वरदराज मंदिर====
===वरदराज मंदिर===
तिरुवल्लूर में '[[वरदराज पेरुमल मन्दिर|वरदराज पेरुमल]]' का विशाल मंदिर तीन घेरों के अंतर्गत स्थित है। पहले घेरे की लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 155 फुट है। दूसरे की लम्बाई 470 फुट और चौड़ाई 470 फुट और तीसरे की लम्बाई 940 फुट और चौड़ाई 700 फुट है। पहले घेरे के चारों ओर दालान और मध्य में वरदराज की मूर्ति भुजंग पर शयन करती हुई दिखाई देती है। पास ही भगवान [[शिव]] का मंदिर है। यह भी कई डेवढ़ियों के भीतर है। दोनों मंदिरों के आगे जगमोहन है और घेरे के आगे गोपुर। दूसरे घेरे में जो पीछे बना था, बहुत-से छोटे स्थान और दालान और पहले गोपुर से अधिक ऊँचे दो गोपुर हैं। तीसरे घेरे के भीतर जो दूसरे के बाद में बना था, 668 स्तंभों का एक मंडप और कई मंदिर तथा पाँच गोपुर हैं, जिनमें प्रथम और अंतिम बहुत विशाल हैं।
तिरुवल्लूर में '[[वरदराज पेरुमल मन्दिर|वरदराज पेरुमल]]' का विशाल मंदिर तीन घेरों के अंतर्गत स्थित है। पहले घेरे की लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 155 फुट है। दूसरे की लम्बाई 470 फुट और चौड़ाई 470 फुट और तीसरे की लम्बाई 940 फुट और चौड़ाई 700 फुट है। पहले घेरे के चारों ओर दालान और मध्य में वरदराज की मूर्ति भुजंग पर शयन करती हुई दिखाई देती है। पास ही भगवान [[शिव]] का मंदिर है। यह भी कई डेवढ़ियों के भीतर है। दोनों मंदिरों के आगे जगमोहन है और घेरे के आगे गोपुर। दूसरे घेरे में जो पीछे बना था, बहुत-से छोटे स्थान और दालान और पहले गोपुर से अधिक ऊँचे दो गोपुर हैं। तीसरे घेरे के भीतर जो दूसरे के बाद में बना था, 668 स्तंभों का एक मंडप और कई मंदिर तथा पाँच गोपुर हैं, जिनमें प्रथम और अंतिम बहुत विशाल हैं।
===पौराणिक कथा===
वरदराज मंदिर के बारे में एक कथा इस प्रकार है कि [[सतयुग]] में [[शालिहोत्र]] नामक [[ब्राह्मण]] ने एक वर्ष तक उपवास करके तप किया। वर्षान्त में शालिकणों को चुनकर नैवेद्य बनाया। भगवान को भोग लगाकर पारण करने जा रहे थे तो एक वृद्ध ब्राह्मण अतिथि आ गये। उन्हें वह प्रसाद शालिहोत्र ने आदर पूर्वक अर्पित किया। भोजन करके अतिथि ने उनकी कुटिया में विश्राम के लिए प्रवेश किया। जब शालिहोत्र अतिथि की चरण सेवा करने कुटिया में गये तो देखा कि वहाँ तो साक्षात [[नारायण|शेषशायी नारायण]] विराजमान हैं। शालिहोत्र ने उनसे बहीं रहने का वरदान मांग लिया।
वीक्ष्यारण्य नरेश धर्मसेन के यहाँ उनकी पुत्री रूप में [[लक्ष्मी|लक्ष्मी जी]] ने अवतार लिया। पिता ने उनका नाम वसुमती रखा। युवा होने पर राजकुमार वेश में श्रीवीरराघव गये और राजा से प्रार्थना करके उनकी पुत्री से [[विवाह]] किया। वर वधु विवाह के पश्चात मंदिर में दर्शन करने आये तो अपने-अपने श्रीविग्रहों में लीन हो गये<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दूओं के तीर्थ स्थान|लेखक= सुदर्शन सिंह 'चक्र'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=101|url=}}</ref>।
====जनश्रुति====
====जनश्रुति====
एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि [[अज्ञातवास]] के समय [[पांडव|पांडवों]] ने यहाँ भगवान शिव की आराधना के फलस्वरूप भयंकर जल त्रास से त्राण पाया था। वदागलाई सम्प्रदाय का केन्द्र यहाँ के अहोविलन मठ में है।
*एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि [[अज्ञातवास]] के समय [[पांडव|पांडवों]] ने यहाँ भगवान शिव की आराधना के फलस्वरूप भयंकर जल त्रास से त्राण पाया था। वदागलाई सम्प्रदाय का केन्द्र यहाँ के अहोविलन मठ में है।
*जब वीरभद्र द्वारा दक्ष को मरवा देने से [[शंकर|शंकर जी]] को ब्रह्म हत्या लगी तो यहाँ स्नान करके वे उससे मुक्त हुए। तबसे वे यहाँ सरोवर के तट पर विराजमान हुए।
==कैसे पहुँचें==
==कैसे पहुँचें==
'''वायु मार्ग''' - यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा [[चेन्नई]] में है।<br />
'''वायु मार्ग''' - यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा [[चेन्नई]] में है।<br />
Line 32: Line 36:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{तमिलनाडु के पर्यटन स्थल}}{{तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान}}
{{तमिलनाडु के पर्यटन स्थल}}{{तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:तमिलनाडु]][[Category:तमिलनाडु के पर्यटन स्थल]][[Category:तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:चेन्नई]]
[[Category:तमिलनाडु]][[Category:तमिलनाडु के पर्यटन स्थल]][[Category:तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:चेन्नई]][[Category:तमिलनाडु के धार्मिक स्थल]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 05:57, 18 September 2016

thumb|250px|वीरराघवस्वामी मंदिर, तिरुवल्लूर तिरुवल्लूर तमिलनाडु का एक ज़िला है, जो 3422 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के आरकोनम स्टेशन से 17 मील की दूरी पर स्थित है। उत्तर में यह कांचीपुरम से, पश्चिम में वेल्लोर से, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और उत्तर में आंध्र प्रदेश से घिरा हुआ है। तिरुवल्लूर को पहले 'त्रिवेल्लोर' और 'तिरुवल्लूर' के नाम से भी जाना जाता था, किन्तु वर्तमान समय में इसे 'तिरुवल्लूर' ही कहा जाता है।

  • तिरुवल्लूर का संबंध भगवान बालाजी की शयन मुद्रा से है, जो यहाँ के वीरराघव मंदिर में स्थित है।
  • सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर पल्लवों का शासन था, जो कई अन्य वंशों के शासकों के अधीन होता हुआ अरकोट के नवाब के पास पहुँचा।
  • उन्नसवीं शताब्दी में तिरुवल्लूर भी अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गया था।
  • यहाँ के प्राचीन मंदिर और ख़ूबसूरत झीलें सैलानियों को बड़ी संख्या में आकर्षित करती हैं।
  • तिरुवल्लूर में तमिल, हिन्दी, मलयालम, तेलुगू और उर्दू भाषा बोली जाती है।

पर्यटन स्थल

तिरुवल्लूर के प्रमुख पर्यटन स्थल निम्नलिखित हैं-

  1. मुरुगन मंदिर
  2. वरदराज पेरुमल मंदिर
  3. पूंडी मधा चर्च
  4. सप्त ऋषि तीर्थम
  5. सरवन पोईकई
  6. वीरराघवस्वामी मंदिर
  7. लक्ष्मी नरसिम्हा पेरुमल मंदिर
  8. तिरुप्पासुर शिव मंदिर

वरदराज मंदिर

तिरुवल्लूर में 'वरदराज पेरुमल' का विशाल मंदिर तीन घेरों के अंतर्गत स्थित है। पहले घेरे की लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 155 फुट है। दूसरे की लम्बाई 470 फुट और चौड़ाई 470 फुट और तीसरे की लम्बाई 940 फुट और चौड़ाई 700 फुट है। पहले घेरे के चारों ओर दालान और मध्य में वरदराज की मूर्ति भुजंग पर शयन करती हुई दिखाई देती है। पास ही भगवान शिव का मंदिर है। यह भी कई डेवढ़ियों के भीतर है। दोनों मंदिरों के आगे जगमोहन है और घेरे के आगे गोपुर। दूसरे घेरे में जो पीछे बना था, बहुत-से छोटे स्थान और दालान और पहले गोपुर से अधिक ऊँचे दो गोपुर हैं। तीसरे घेरे के भीतर जो दूसरे के बाद में बना था, 668 स्तंभों का एक मंडप और कई मंदिर तथा पाँच गोपुर हैं, जिनमें प्रथम और अंतिम बहुत विशाल हैं।

पौराणिक कथा

वरदराज मंदिर के बारे में एक कथा इस प्रकार है कि सतयुग में शालिहोत्र नामक ब्राह्मण ने एक वर्ष तक उपवास करके तप किया। वर्षान्त में शालिकणों को चुनकर नैवेद्य बनाया। भगवान को भोग लगाकर पारण करने जा रहे थे तो एक वृद्ध ब्राह्मण अतिथि आ गये। उन्हें वह प्रसाद शालिहोत्र ने आदर पूर्वक अर्पित किया। भोजन करके अतिथि ने उनकी कुटिया में विश्राम के लिए प्रवेश किया। जब शालिहोत्र अतिथि की चरण सेवा करने कुटिया में गये तो देखा कि वहाँ तो साक्षात शेषशायी नारायण विराजमान हैं। शालिहोत्र ने उनसे बहीं रहने का वरदान मांग लिया। वीक्ष्यारण्य नरेश धर्मसेन के यहाँ उनकी पुत्री रूप में लक्ष्मी जी ने अवतार लिया। पिता ने उनका नाम वसुमती रखा। युवा होने पर राजकुमार वेश में श्रीवीरराघव गये और राजा से प्रार्थना करके उनकी पुत्री से विवाह किया। वर वधु विवाह के पश्चात मंदिर में दर्शन करने आये तो अपने-अपने श्रीविग्रहों में लीन हो गये[1]

जनश्रुति

  • एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहाँ भगवान शिव की आराधना के फलस्वरूप भयंकर जल त्रास से त्राण पाया था। वदागलाई सम्प्रदाय का केन्द्र यहाँ के अहोविलन मठ में है।
  • जब वीरभद्र द्वारा दक्ष को मरवा देने से शंकर जी को ब्रह्म हत्या लगी तो यहाँ स्नान करके वे उससे मुक्त हुए। तबसे वे यहाँ सरोवर के तट पर विराजमान हुए।

कैसे पहुँचें

वायु मार्ग - यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा चेन्नई में है।
रेल मार्ग - तिरुवल्लूर चेन्नई से 44 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। चेन्नई के सेंट्रल सबअर्बन स्टेशन और चेन्नई बीच स्टेशन से तिरुवल्लूर के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग - तिरुपति और तिरुत्तनी को जाने वाली सरकार द्वारा संचालित बसें तिरुवल्लूर को चेन्नई से जोड़ती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 403 |

  1. हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 101 |

संबंधित लेख