उड़ीसा (आज़ादी से पूर्व): Difference between revisions
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*'''कपिलेन्द्र''' (1435-1467 ई.) - इसने गजपति वंश की स्थापना की तथा उड़ीसा की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया। कपिलेन्द्र ने [[बीदर]] के [[बहमनी वंश|बहमनी]] शासकों तथा [[विजयनगर]] के शासकों से अनेक युद्ध किए। उसका राज्य [[गंगा नदी]] से [[कावेरी नदी]] तक फैला हुआ था। इसने [[बंगाल]] के शासक नासिरूद्दीन को हरा कर 'गौड़ेश्वर' की उपाधि धारण की। | *'''कपिलेन्द्र''' (1435-1467 ई.) - इसने गजपति वंश की स्थापना की तथा उड़ीसा की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया। कपिलेन्द्र ने [[बीदर]] के [[बहमनी वंश|बहमनी]] शासकों तथा [[विजयनगर]] के शासकों से अनेक युद्ध किए। उसका राज्य [[गंगा नदी]] से [[कावेरी नदी]] तक फैला हुआ था। इसने [[बंगाल]] के शासक नासिरूद्दीन को हरा कर 'गौड़ेश्वर' की उपाधि धारण की। | ||
*'''पुरुषोत्तम''' (1467-1497 ई.) - इसका शासन काल पराभव का काल था। इसके शासन काल के दौरान [[गोदावरी नदी]] के दक्षिण का आधार भाग उसके राज्य से | *'''पुरुषोत्तम''' (1467-1497 ई.) - इसका शासन काल पराभव का काल था। इसके शासन काल के दौरान [[गोदावरी नदी]] के दक्षिण का आधार भाग उसके राज्य से पृथक् हो गया। | ||
*'''प्रतापरुद्र''' (1497-1540 ई.) - यह उड़ीसा का अन्तिम शक्तिशाली [[हिन्दू]] शासक था। इसके शासन काल में राज्य पर विजयनगर के कृष्णदेव राय तथा [[गोलकुण्डा]] के कुतुबशाही राज्य ने आक्रमण करके बहुत-सा हिस्सा हथिया लिया था। | *'''प्रतापरुद्र''' (1497-1540 ई.) - यह उड़ीसा का अन्तिम शक्तिशाली [[हिन्दू]] शासक था। इसके शासन काल में राज्य पर विजयनगर के कृष्णदेव राय तथा [[गोलकुण्डा]] के कुतुबशाही राज्य ने आक्रमण करके बहुत-सा हिस्सा हथिया लिया था। | ||
====भोई वंश==== | ====भोई वंश==== |
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मुग़ल शासकों द्वारा उड़ीसा पर अधिकार करने से पूर्व वहाँ अनेक क्षेत्रीय राजवंशों का शासन था। यह राज्य गंगा नदी के डेल्टा से लेकर गोदावरी नदी के मुहाने तक फैला था। उड़ीसा को अवन्तिवर्मन चोडगंग ने एक शक्तिशाली राज्य के रूप में संगठित किया था। अवन्तिवर्मन ने 1076 से 1148 ई. तक, लगभग 70 वर्ष तक शासन किया। उड़ीसा पर निम्न तीन वंश के शासकों ने राज्य किया-
- पूर्वी गंग वंश
- सूर्यवंशी गजपति वंश
- भोई वंश
पुर्वी गंग वंश
पूर्वी गंग वंश में जो शासक हुए, उनका विवरण इस प्रकार से है-
- अनंतवर्मन चोडगंग (1076-1148 ई.) - अनंतवर्मन ने लगभग 70 वर्ष तक शासन किया। उसने एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उड़ीसा का संगठन किया। उसने पुरी में जगन्नाथ मंदिर पुरी तथा भुवनेश्वर में लिंगराज मन्दिर का निर्माण करवाया। अपने शासन काल में उसने संस्कृत और तेलुगु भाषा के साहित्य को संरक्षण प्रदान किया।
- राजराज तृतीय (1197-1211 ई.) - इसके शासन काल में बख्तियार ख़िलजी के दो भाइयों- मोहम्मद और अहमद के नेतृत्व में उड़ीसा पर आक्रमण किया गया।
- अनंगभीम तृतीय (1211-1238 ई.) - चाटेश्वर अभिलेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार अनंगभीम ने ग़यासुद्दीन एवज को पराजित किया था।
- भानुदेव प्रथम - इसने अपने शासन काल में मुहम्मद तुग़लक़ के आक्रमण का सामना किया।
- भानुदेव द्वितीय (1352-1378 ई.) - इसके शासन काल में फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने उड़ीसा पर आक्रमण किया था। इसी के काल में जगन्नाथ मन्दिर का विध्वंस किया गया था।
- भानुदेव तृतीय (1414-1435 ई.) - भानुदेव तृतीय पूर्वी गंग वंश का अन्तिम शासक था।
सूर्यवंशी गजपति वंश
पूर्वी गंग वंश के बाद उड़ीसा में सूर्यवंशी गजपति वंश का शासन आरम्भ हुआ। इस वंश के शासकों में प्रमुख थे-
- कपिलेन्द्र (1435-1467 ई.) - इसने गजपति वंश की स्थापना की तथा उड़ीसा की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया। कपिलेन्द्र ने बीदर के बहमनी शासकों तथा विजयनगर के शासकों से अनेक युद्ध किए। उसका राज्य गंगा नदी से कावेरी नदी तक फैला हुआ था। इसने बंगाल के शासक नासिरूद्दीन को हरा कर 'गौड़ेश्वर' की उपाधि धारण की।
- पुरुषोत्तम (1467-1497 ई.) - इसका शासन काल पराभव का काल था। इसके शासन काल के दौरान गोदावरी नदी के दक्षिण का आधार भाग उसके राज्य से पृथक् हो गया।
- प्रतापरुद्र (1497-1540 ई.) - यह उड़ीसा का अन्तिम शक्तिशाली हिन्दू शासक था। इसके शासन काल में राज्य पर विजयनगर के कृष्णदेव राय तथा गोलकुण्डा के कुतुबशाही राज्य ने आक्रमण करके बहुत-सा हिस्सा हथिया लिया था।
भोई वंश
गजपति वंश के बाद उड़ीसा पर भोई वंश का शासन स्थापित हुआ। इस वंश की स्थापना "गोविन्द विद्यासागर" ने की थी। भोई वंश ने उड़ीसा पर 1539 ई. तक राज्य किया। इस वंश का अन्त कर मुकुन्द हरिचन्दन ने नये राजवंश की स्थापना की। अन्ततः 1586 में बंगाल के सुल्तान ने उड़ीसा को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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