सिवाणा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "दरवाजा" to "दरवाज़ा")
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
Line 3: Line 3:
सिवाणा दुर्ग का इतिहास बड़ा गौरवशाली रहा है। सिवाणा दुर्ग इसका निर्माण परमारवंशीय वीर नारायण ने 954 ई. में करवाया था। तदंतर यह क़िला [[चौहान वंश|चौहानों]] के अधिकार में आ गया। [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने सिवाणा पर जब [[2 जुलाई]], 1306 में आक्रमण किया, तब यह दुर्ग कान्हड़देव के भतीजे चौहान सरदार शीतलदेव के अधिकार में था। बरनी की फुतुहाते फीरोजशाही से ज्ञात होता है कि यह घेरा दीर्घकाल तक चला। ख़िलजी सेना ने इसे लेने के कठोर प्रयास किये। बबूल, धोक व पलास के वृक्षों से अच्छादित सघन वन में खड़े सिवाणा के क़िले को जीतने में तुर्क सेना को पसीने आ गये।  
सिवाणा दुर्ग का इतिहास बड़ा गौरवशाली रहा है। सिवाणा दुर्ग इसका निर्माण परमारवंशीय वीर नारायण ने 954 ई. में करवाया था। तदंतर यह क़िला [[चौहान वंश|चौहानों]] के अधिकार में आ गया। [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने सिवाणा पर जब [[2 जुलाई]], 1306 में आक्रमण किया, तब यह दुर्ग कान्हड़देव के भतीजे चौहान सरदार शीतलदेव के अधिकार में था। बरनी की फुतुहाते फीरोजशाही से ज्ञात होता है कि यह घेरा दीर्घकाल तक चला। ख़िलजी सेना ने इसे लेने के कठोर प्रयास किये। बबूल, धोक व पलास के वृक्षों से अच्छादित सघन वन में खड़े सिवाणा के क़िले को जीतने में तुर्क सेना को पसीने आ गये।  
==अधिकार==
==अधिकार==
शीतलदेव ने क़िले की सुरक्षा का माक़ूल प्रबन्ध कर रखा था। नैणसी की ख्यात और कान्हड़देव प्रबंध के अनुसार कई महीनों के घेरे के पश्चात अंत में विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन को सफलता मिली। [[अमीर खुसरो]] ने सिवाणा के सैनिकों की वीरता और शौर्य की बहुत प्रशंसा की है। शीतलदेव मारा गया। अलाउद्दीन ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रखा और कमालुद्दीन गुर्ग को यहाँ का प्रशासक नियुक्त करने के बाद वह लौट गया। जब खलजियों की शक्ति निर्बल हो गयी तो राठौर जैतमल ने इस दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया और कई पुश्तों तक उसके वंशजों का इस पर अधिकार रहा। जब [[मारवाड़]] का शासक [[मालदेव]] बना, तो उसने अपनी शक्ति को संगठित करने के लिए क़िले को अपने अधिकार में कर लिया। [[अकबर]] के समय राव चन्द्रसेन ने सिवाना के दुर्ग में रहकर काफ़ी समय तक मुग़ल सेनाओं का विरोध किया। अंत में इस पर अकबर का अधिकार हो गया। बाद में अकबर के अधीनस्थ मोटा राजा उदयसिंह का इस पर कब्ज़ा हो गया।
शीतलदेव ने क़िले की सुरक्षा का माक़ूल प्रबन्ध कर रखा था। नैणसी की ख्यात और कान्हड़देव प्रबंध के अनुसार कई महीनों के घेरे के पश्चात् अंत में विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन को सफलता मिली। [[अमीर खुसरो]] ने सिवाणा के सैनिकों की वीरता और शौर्य की बहुत प्रशंसा की है। शीतलदेव मारा गया। अलाउद्दीन ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रखा और कमालुद्दीन गुर्ग को यहाँ का प्रशासक नियुक्त करने के बाद वह लौट गया। जब खलजियों की शक्ति निर्बल हो गयी तो राठौर जैतमल ने इस दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया और कई पुश्तों तक उसके वंशजों का इस पर अधिकार रहा। जब [[मारवाड़]] का शासक [[मालदेव]] बना, तो उसने अपनी शक्ति को संगठित करने के लिए क़िले को अपने अधिकार में कर लिया। [[अकबर]] के समय राव चन्द्रसेन ने सिवाना के दुर्ग में रहकर काफ़ी समय तक मुग़ल सेनाओं का विरोध किया। अंत में इस पर अकबर का अधिकार हो गया। बाद में अकबर के अधीनस्थ मोटा राजा उदयसिंह का इस पर कब्ज़ा हो गया।


==भू-भाग==
==भू-भाग==

Latest revision as of 07:33, 7 November 2017

सिवाणा राजस्थान में जोधपुर से 54 मील पश्चिम में स्थित है।

इतिहास

सिवाणा दुर्ग का इतिहास बड़ा गौरवशाली रहा है। सिवाणा दुर्ग इसका निर्माण परमारवंशीय वीर नारायण ने 954 ई. में करवाया था। तदंतर यह क़िला चौहानों के अधिकार में आ गया। अलाउद्दीन ख़िलजी ने सिवाणा पर जब 2 जुलाई, 1306 में आक्रमण किया, तब यह दुर्ग कान्हड़देव के भतीजे चौहान सरदार शीतलदेव के अधिकार में था। बरनी की फुतुहाते फीरोजशाही से ज्ञात होता है कि यह घेरा दीर्घकाल तक चला। ख़िलजी सेना ने इसे लेने के कठोर प्रयास किये। बबूल, धोक व पलास के वृक्षों से अच्छादित सघन वन में खड़े सिवाणा के क़िले को जीतने में तुर्क सेना को पसीने आ गये।

अधिकार

शीतलदेव ने क़िले की सुरक्षा का माक़ूल प्रबन्ध कर रखा था। नैणसी की ख्यात और कान्हड़देव प्रबंध के अनुसार कई महीनों के घेरे के पश्चात् अंत में विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन को सफलता मिली। अमीर खुसरो ने सिवाणा के सैनिकों की वीरता और शौर्य की बहुत प्रशंसा की है। शीतलदेव मारा गया। अलाउद्दीन ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रखा और कमालुद्दीन गुर्ग को यहाँ का प्रशासक नियुक्त करने के बाद वह लौट गया। जब खलजियों की शक्ति निर्बल हो गयी तो राठौर जैतमल ने इस दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया और कई पुश्तों तक उसके वंशजों का इस पर अधिकार रहा। जब मारवाड़ का शासक मालदेव बना, तो उसने अपनी शक्ति को संगठित करने के लिए क़िले को अपने अधिकार में कर लिया। अकबर के समय राव चन्द्रसेन ने सिवाना के दुर्ग में रहकर काफ़ी समय तक मुग़ल सेनाओं का विरोध किया। अंत में इस पर अकबर का अधिकार हो गया। बाद में अकबर के अधीनस्थ मोटा राजा उदयसिंह का इस पर कब्ज़ा हो गया।

भू-भाग

सिवाना का दुर्ग वैसे तो चारों ओर से रेतीले भू-भाग से घिरा है। परंतु इसके साथ-साथ इस भाग में छप्पन के पहाड़ों का सिलसिला पूर्व-पश्चिम की सीध में 48 मील फैला है। इस पहाड़ी सिलसिले के अंतर्गत हलदेश्वर का पहाड़ सबसे ऊँचा है, जिस पर ही यह सुदृढ़ दुर्ग बना हुआ है। इसकी टेढ़ी-मेढ़ी चढ़ाई, घुमावदार बुर्ज, सुदृढ़ दीवारें, मध्ययुगीन सामरिक उपयोगिता पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डालती हैं। इसमें कल्ला रायमलोत का थड़ा (रायमलोत राव चन्द्रसेन का भतीजा था) और महाराजा अजीत सिंह द्वारा बनवाया हुआ दरवाज़ा, कोट तथा महल आदि विद्यमान हैं।




पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख