शैतान सिंह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 16: Line 16:
|रैंक=मेजर
|रैंक=मेजर
|यूनिट=13 कुमायूं बटालियन
|यूनिट=13 कुमायूं बटालियन
|सेवा काल=1949–1962
|सेवा काल=[[1949]]–[[1962]]
|युद्ध=[[भारत चीन युद्ध (1962)]]
|युद्ध=[[भारत चीन युद्ध (1962)]]
|भाषा=
|भाषा=
Line 36: Line 36:
|शीर्षक 5=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=चीन का यह युद्ध जिसमें मेजर शैतान सिंह ने अपना पराक्रम दिखाया, [[1962]] में आक्साई चिन सीमा विवाद से शुरू हुआ था।
|अन्य जानकारी=[[चीन]] का यह युद्ध जिसमें मेजर शैतान सिंह ने अपना पराक्रम दिखाया, [[1962]] में आक्साई चिन सीमा विवाद से शुरू हुआ था।
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
|अद्यतन=
Line 48: Line 48:
जब सामने से मोर्टार का हमला आगे की सैन्य पंक्ति को साफ कर गया, तब चीनी फौजों ने ध्यान प्लाटून के बीच में केन्द्रित किया। मेजर शैतान सिंह पूरी तरह से घिर गए थे और उन्हें इस बात का पूरा एहसास था। उन्होंने हिम्मत न हारते हुए एक बार अपनी टुकड़ी को संगठित करके उनके ठिकानों पर तैनात किया और उन्हें अपनी नेतृत्व क्षमता से हौसला दिया कि वह आखिरी पल तक जूझ जाएँ। इस दौरान उनकी एक बाँह में गोली लगी और फिर मशीनगन ने उनके पैर एक वार किया। इस वार ने उन्हें धराशायी कर दिया। उनके पास गिनती के जवान थे। उन्होंने कोशिश तो की कि वह अब मेजर शैतान सिंह को उठा कर किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचा दे, लेकिन उनके पास इतना अवसर नहीं था। ऐसे में मेजर ने उन्हें आदेश किया कि उनके सैनिक दुश्मन से जूझते रहें और उन्हें वहीं छोड़ दें। मेजर शैतान सिंह के हताहत होने ने उनकी जीवित बची सेना को उत्तेजना से भर दिया लेकिन दुश्मन प्रबल था और अंतत: एक-एक करके मेजर शैतान सिंह के सारे जवान रणभूमि में बलिदान हो गए। उस बर्फ से ढ़के रण क्षेत्र में मेजर शैतान सिंह का मृत शरीर तीन महीने बाद पाया गया। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत [[परमवीर चक्र]] प्रदान किया गया।           
जब सामने से मोर्टार का हमला आगे की सैन्य पंक्ति को साफ कर गया, तब चीनी फौजों ने ध्यान प्लाटून के बीच में केन्द्रित किया। मेजर शैतान सिंह पूरी तरह से घिर गए थे और उन्हें इस बात का पूरा एहसास था। उन्होंने हिम्मत न हारते हुए एक बार अपनी टुकड़ी को संगठित करके उनके ठिकानों पर तैनात किया और उन्हें अपनी नेतृत्व क्षमता से हौसला दिया कि वह आखिरी पल तक जूझ जाएँ। इस दौरान उनकी एक बाँह में गोली लगी और फिर मशीनगन ने उनके पैर एक वार किया। इस वार ने उन्हें धराशायी कर दिया। उनके पास गिनती के जवान थे। उन्होंने कोशिश तो की कि वह अब मेजर शैतान सिंह को उठा कर किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचा दे, लेकिन उनके पास इतना अवसर नहीं था। ऐसे में मेजर ने उन्हें आदेश किया कि उनके सैनिक दुश्मन से जूझते रहें और उन्हें वहीं छोड़ दें। मेजर शैतान सिंह के हताहत होने ने उनकी जीवित बची सेना को उत्तेजना से भर दिया लेकिन दुश्मन प्रबल था और अंतत: एक-एक करके मेजर शैतान सिंह के सारे जवान रणभूमि में बलिदान हो गए। उस बर्फ से ढ़के रण क्षेत्र में मेजर शैतान सिंह का मृत शरीर तीन महीने बाद पाया गया। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत [[परमवीर चक्र]] प्रदान किया गया।           
==परमवीर चक्र सम्मान==
==परमवीर चक्र सम्मान==
मेजर शैतान सिंह का शौर्य पराक्रम चीन के ख़िलाफ़ लड़ते हुए रेजांग ला मोर्चे पर अंतिम बार [[18 नवम्बर]] [[1962]] को नज़र आया। वह चुशूर सक्टर में 17 हजार फीट की ऊचाँई पर चीन की गोला बारूद से लैस भारी सेना का सामना कर रहे थे। उस मोर्चे पर उन्होंने अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व क्षमता तथा देश के प्रति गहरी समर्पण भावना का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत [[परमवीर चक्र]] प्रदान किया गया।  
मेजर शैतान सिंह का शौर्य पराक्रम चीन के ख़िलाफ़ लड़ते हुए रेजांग ला मोर्चे पर अंतिम बार [[18 नवम्बर]] [[1962]] को नज़र आया। वह चुशूर सक्टर में 17 हजार फीट की ऊचाँई पर चीन की गोला बारूद से लैस भारी सेना का सामना कर रहे थे। उस मोर्चे पर उन्होंने अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व क्षमता तथा देश के प्रति गहरी समर्पण भावना का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत [[परमवीर चक्र]] प्रदान किया गया।
 


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 54: Line 55:
<references/>
<references/>
*पुस्तक- परमवीर चक्र विजेता | लेखक- अशोक गुप्ता | पृष्ठ संख्या- 69
*पुस्तक- परमवीर चक्र विजेता | लेखक- अशोक गुप्ता | पृष्ठ संख्या- 69
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{परमवीर चक्र सम्मान}}  
{{परमवीर चक्र सम्मान}}  
[[Category:चरित कोश]]
[[Category:चरित कोश]][[Category:परमवीर चक्र सम्मान]][[Category:युद्धकालीन वीरगति]][[Category:भारतीय सैनिक]][[Category:थल सेना]]
[[Category:परमवीर चक्र सम्मान]]
[[Category:युद्धकालीन वीरगति]]
[[Category:भारतीय सैनिक]]
[[Category:थल सेना]]
__NOTOC__
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 05:38, 18 November 2017

शैतान सिंह
पूरा नाम मेजर शैतान सिंह भाटी
जन्म 1 दिसम्बर, 1924
जन्म भूमि जोधपुर, राजस्थान
स्थान रेजांग ला, जम्मू और कश्मीर, भारत
अभिभावक हेमसिंह जी भाटी (पिता)
सेना भारतीय थल सेना
रैंक मेजर
यूनिट 13 कुमायूं बटालियन
सेवा काल 19491962
युद्ध भारत चीन युद्ध (1962)
सम्मान परमवीर चक्र (1962)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी चीन का यह युद्ध जिसमें मेजर शैतान सिंह ने अपना पराक्रम दिखाया, 1962 में आक्साई चिन सीमा विवाद से शुरू हुआ था।

मेजर शैतान सिंह (अंग्रेज़ी: Major Shaitan Singh, जन्म: 1 दिसम्बर, 1924 - शहादत: 18 नवम्बर, 1962) परमवीर चक्र सम्मानित भारतीय व्यक्ति हैं। इन्हें यह सम्मान 1962 में मरणोपरांत मिला।

जीवन परिचय

शैतान सिंह का पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था। इनका जन्म 1 दिसम्बर 1924 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ था। उनके पिता श्री हेमसिंह जी भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल रहे थे। शैतान सिंह ने 1 अगस्त 1949 को कुमायूं में कदम रखा था। चीन का वह युद्ध जिसमें मेजर शैतान सिंह ने अपना पराक्रम दिखाया, 1962 में आक्साई चिन सीमा विवाद से शुरू हुआ था। चुशूल सेक्टर सीमा से बस पन्द्रह मील दूर था और वह क्षेत्र लद्दाख की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। चीन का युद्ध भारत के लिए बहुत से सन्दर्भो में एक नया पाठ था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू विश्व शान्ति के पक्षधर थे और उनकी नजर विकास कार्यों पर अधिक थी। आवास, उद्योग आदि क्षेत्रों पर देश की योजनाएँ केन्द्रित थी। चीन की विस्तारवादी नीति और कार्यवाही भले ही भारत से छिपी नहीं थी, फिर भी हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे कि चीन हमारे लिए एक हमलावर देश सिद्ध होगा। भले ही चीन ने जिस तरह से तिब्बत पर अपना कब्जा जमाया हुआ था और दलाई लामा को भारत ने शरण दी थी, यह एक साफ कारण बनता था।

भारत चीन युद्ध (1962)

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

जून 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान 13 कुमायूं बटालियन चुशूल सेक्टर में तैनात थी। उस ब्रिगेड की कमान ब्रिगेडियर टी.एन. रैना संभाल रहे थे। अम्बाला से जब यह ब्रिगेड जम्मू कश्मीर पहुँची तो उन्होंने एक दम पहली बार बर्फ देखी। इसके पहले उन्होंने कभी पर्वतीय सीमा का अनुभव नहीं लिया था। अब उन्हें दुनिया के सबसे ज्यादा शीत प्रताड़ित क्षेत्र में लड़ना था। उनके सामने चीन की सेना सिनकियांग से थी, जो ऐसे युद्ध क्षेत्र में लड़ने की अभ्यस्त थी। चीन की सेना के पास सभी आधुनिक शास्त्र तथा भरपूर गोला-बारूद था, जबकि भरतीय सैनिकों के पास एक बार में एक गोली की मार करने वाली राइफलें थीं, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद बेकार घोषित कर दी गई थीं। मौसम की मार और हथियारों की इस स्थिति के बावजूद 13 कुमाँयू की 'सी कम्पनी के मेजर शैतान सिंह इस मनोबल से भरपूर थे कि उनके रेजांग ला के मोर्चे पर अगर दुश्मन हमला करता है तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। दुश्मन की ओर से सब तरफ आटोमेटिक बन्दूकों की तथा मोर्टार की घेरा बन्दी बनी हुई थी। चीनी फौजों ने अचानक हमला किया और सचमुच उसे भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। युद्ध भूमि दुश्मन के सैनिकों की लाशों से भर गई। उनके गुपचुप हमले का कुमायूंनी सतर्कता के कारण भारत को चल गया था। जब चीनी दुश्मन का अचानक हमला नाकाम हो गया तो उसने रेजांग ला पर मोर्टार तथा रॉकेटों से बंकरों पर गोलीबारी शुरू कर दी। ऐसे में किसी भी बंकर के बचे रहे जाने की सम्भावना नहीं थी फिर भी मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी ने वहाँ से पीछे हटने का नाम नहीं लिया।
जब सामने से मोर्टार का हमला आगे की सैन्य पंक्ति को साफ कर गया, तब चीनी फौजों ने ध्यान प्लाटून के बीच में केन्द्रित किया। मेजर शैतान सिंह पूरी तरह से घिर गए थे और उन्हें इस बात का पूरा एहसास था। उन्होंने हिम्मत न हारते हुए एक बार अपनी टुकड़ी को संगठित करके उनके ठिकानों पर तैनात किया और उन्हें अपनी नेतृत्व क्षमता से हौसला दिया कि वह आखिरी पल तक जूझ जाएँ। इस दौरान उनकी एक बाँह में गोली लगी और फिर मशीनगन ने उनके पैर एक वार किया। इस वार ने उन्हें धराशायी कर दिया। उनके पास गिनती के जवान थे। उन्होंने कोशिश तो की कि वह अब मेजर शैतान सिंह को उठा कर किसी सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचा दे, लेकिन उनके पास इतना अवसर नहीं था। ऐसे में मेजर ने उन्हें आदेश किया कि उनके सैनिक दुश्मन से जूझते रहें और उन्हें वहीं छोड़ दें। मेजर शैतान सिंह के हताहत होने ने उनकी जीवित बची सेना को उत्तेजना से भर दिया लेकिन दुश्मन प्रबल था और अंतत: एक-एक करके मेजर शैतान सिंह के सारे जवान रणभूमि में बलिदान हो गए। उस बर्फ से ढ़के रण क्षेत्र में मेजर शैतान सिंह का मृत शरीर तीन महीने बाद पाया गया। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।

परमवीर चक्र सम्मान

मेजर शैतान सिंह का शौर्य पराक्रम चीन के ख़िलाफ़ लड़ते हुए रेजांग ला मोर्चे पर अंतिम बार 18 नवम्बर 1962 को नज़र आया। वह चुशूर सक्टर में 17 हजार फीट की ऊचाँई पर चीन की गोला बारूद से लैस भारी सेना का सामना कर रहे थे। उस मोर्चे पर उन्होंने अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व क्षमता तथा देश के प्रति गहरी समर्पण भावना का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक- परमवीर चक्र विजेता | लेखक- अशोक गुप्ता | पृष्ठ संख्या- 69

संबंधित लेख