हंटरवाली (फ़िल्म): Difference between revisions
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फ़िल्म पूरी तरह से अभिनेत्री नाडिया के ही चारों ओर घूमती है। फ़िल्म के 'द एंड' के बाद 'हंटरवाली' की कहानी खत्म नहीं होती, बल्कि शुरू होती है। इस फ़िल्म के बाद अभिनेत्री [[नाडिया]] की दर्जनों फ़िल्में बनीं, जिनके नाम 'जंगल प्रिंसेस', 'सर्कस क़्वीन' और 'मिस फ्रंटियर मेल' जैसे थे, मगर उनकी पहचान हमेशा सिर्फ 'हंटरवाली' की ही रही। नाडिया को आज 75 साल बाद भी उनके असल नाम की बजाय 'हंटरवाली' के नाम से ही ज़्यादा याद किया जाता है। इस नाम का जादू उस दौर में ऐसा चला कि जिन निर्माताओं को नाडिया बतौर | फ़िल्म पूरी तरह से अभिनेत्री नाडिया के ही चारों ओर घूमती है। फ़िल्म के 'द एंड' के बाद 'हंटरवाली' की कहानी खत्म नहीं होती, बल्कि शुरू होती है। इस फ़िल्म के बाद अभिनेत्री [[नाडिया]] की दर्जनों फ़िल्में बनीं, जिनके नाम 'जंगल प्रिंसेस', 'सर्कस क़्वीन' और 'मिस फ्रंटियर मेल' जैसे थे, मगर उनकी पहचान हमेशा सिर्फ 'हंटरवाली' की ही रही। नाडिया को आज 75 साल बाद भी उनके असल नाम की बजाय 'हंटरवाली' के नाम से ही ज़्यादा याद किया जाता है। इस नाम का जादू उस दौर में ऐसा चला कि जिन निर्माताओं को नाडिया बतौर हिरोइन नहीं मिल सकीं, उन्होंने 'हंटरवाली' के नाम की नकल कर ही काम चलाने की कोशिश की और कुछ लोग इसमें सफल भी हुए। अकेले [[1938]] में ही इस तरह की 'चाबुकवाली', 'साईकलवाली', 'घूंघटवाली' नाम से फ़िल्में बनाई गईं। नाडिया के साथ भी बाद में 'बम्बईवाली' और 'हंटरवाली की बेटी' नाम की फ़िल्में भी बनीं।<ref name="ab"/> | ||
फ़िल्म 'हंटरवाली' में यूँ तो और भी बहुत से कलाकार थे, जिनमे बोमन श्राफ, जान कवास, शरीफा और मास्टर मोहम्मद भी थे, लेकिन फ़िल्म पूरी तरह [[नाडिया]] के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वज़ीर के हाथों सताए गए जसवंत की भूमिका में बोमन श्राफ एक जगह आकर नाडिया के साथ संघर्ष में शामिल हो जाते हैं, फिर भी उनकी गिनती बाकी के साथ ही होती है। | फ़िल्म 'हंटरवाली' में यूँ तो और भी बहुत से कलाकार थे, जिनमे बोमन श्राफ, जान कवास, शरीफा और मास्टर मोहम्मद भी थे, लेकिन फ़िल्म पूरी तरह [[नाडिया]] के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वज़ीर के हाथों सताए गए जसवंत की भूमिका में बोमन श्राफ एक जगह आकर नाडिया के साथ संघर्ष में शामिल हो जाते हैं, फिर भी उनकी गिनती बाकी के साथ ही होती है। |
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हंटरवाली (फ़िल्म)
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निर्माता | जमशेद बोमन वाडिया |
लेखक | जमशेद बोमन वाडिया |
पटकथा | होमी वाडिया |
कलाकार | नाडिया, शारीफ़ा, सयानी आतिश, बोमन श्राफ, जॉन कवास, मास्टर मोहम्मद, जयदेव |
प्रसिद्ध चरित्र | हंटरवाली |
संगीत | मास्टर मोहम्मद |
गीतकार | जोसफ़ डेविड |
प्रसिद्ध गीत | हंटरवाली है भली, दुनिया की सुघ लेत है |
प्रदर्शन तिथि | 1935 |
अवधि | 164 मिनट |
भाषा | हिन्दी |
अन्य जानकारी | इस फ़िल्म में संगीतकार जयदेव ने भी कार्य किया था, हालाँकि वे इस फ़िल्म के संगीतकार नहीं थे। फ़िल्म का संगीत मास्टर मोहम्मद ने तैयार किया था। |
हंटरवाली भारतीय सिनेमा में सन 1935 में बनी फ़िल्म है। इस फ़िल्म के लेखक और निर्माता जमशेद बोमन वाडिया थे। फ़िल्म के निर्देशक और पटकथा लेखक होमी वाडिया थे, जो जमशेद बोमन जी के ही छोटे भाई थे। इस फ़िल्म के गीतकार जोसफ़ डेविड थे। 'हंटरवाली' में नाडिया, शारीफ़ा और गुलशन ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई थीं। इस फ़िल्म में संगीतकार जयदेव ने भी कार्य किया था, हालाँकि वे इस फ़िल्म के संगीतकार नहीं थे। फ़िल्म का संगीत मास्टर मोहम्मद ने तैयार किया था।
निर्माण योजना
यह उल्लेखनीय है कि 20वीं शताब्दी के दौर में जब 'हंटरवाली' के निर्माण की योजना वाडिया बंधु बना रहे थे, उस समय दुनिया भर में दुनिया खुद को नए सिरे से ईजाद करने में लगी हुई थी। पूरे भारत में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ आज़ादी के आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ लिया था। 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस ने 'पूर्ण स्वराज' सम्बंधी प्रस्ताव पारित कर दिया था। 'नमक सत्याग्रह' और 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के चलते अंग्रेज़ सरकार का दमन चक्र तेज़ी से घूम रहा था। क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च, 1931 को फाँसी हो गई थी। भारतीय जनता अब खुलकर बर्बर, अत्याचारी हुकूमत से मुक्ति के लिए पूरी तरह उठ खड़ी हुई थी। इसी दौर में एक ऐसी फ़िल्म आई, जिसमें अत्याचारी वज़ीर के ज़ुल्मों और उससे निपटने को उठ खड़ी हुई एक औरत की कहानी थी। इस कहानी और कहानी को प्राण देने वाली अभिनेत्री नाडिया के हैरत भरे कारनामों से हैरान लोगों ने जब होश सम्भाला, तो हॉल में तालियों की गूंज थी।[1]
कथावस्तु
फ़िल्म 'हंटरवाली' की कहानी एक ऐसे राजा की है, जो अपने ही वज़ीर राणामल (सयानी 'आतिश') की कुटिल चालों का शिकार है। राजा कमज़ोर है और वज़ीर उसे एक मोहरे की तरह इस्तेमाल करता है और देश की प्रजा पर अत्याचार करता है। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची है मगर कोई ऐसा नहीं है, जो इस अन्याय और अत्याचार को चुनौती दे सके। राजा की एक बेटी है 'माधुरी' (नाडिया)। जो शक्लो-सूरत से एकदम विदेशी बाला, सुनहरे बाल, एकदम गोरा रंग, चेहरे से भारतीय नारी की स्थापित कोमल छवि की बजाय एक दृढ़ प्रतिज्ञता, मगर पहनावा भारतीय साड़ी ही है। उसका अन्दाज़ भी भारतीय है। यही माधुरी वज़ीर के बड़ते ज़ुल्मों के विरुद्ध एक दिन उठ खड़ी होती है। उसे इस बात का बखूबी अन्दाज़ है, कि सेना सहित हुकूमत की हर चीज़ पर वज़ीर का कब्ज़ा है। वह ताकतवर है। ऐसे में उससे सीधे भिड़ना सम्भव नहीं है। इसीलिए युक्ति से काम लेना होगा, और युक्ति बनती है- एक औरत दो रूप। पहला रूप है शहज़ादी का, जिसे दुनिया जानती है और दूसरा रूप है 'हंटरवाली' का, जिसकी असलियत कोई नहीं जानता।
हंटरवाली बहादुर युवती है, हाथ में हंटर है जो ग़रीबो पर अत्याचार करने वालों की खाल खींच लेता है। घोड़े को बिजली सा दौड़ाती है। वह ऊँची-ऊँची इमारतों पर एक जगह से दूसरी जगह कूद जाती है। सर पर टोपी, पाँव में शिकारी जूते, आँखों पर नक़ाब और साड़ी की जगह चुस्त विदेशी निकर और शर्ट पहनती है। हंटरवाली की खूबी यह है कि जब-जब, जहाँ-जहाँ वज़ीर के लोग किसी ग़रीब, किसी मज़लूम पर ज़ुल्म करते हैं, वह अचानक प्रकट हो जाती है। दस-दस और बीस-बीस हथियारबंद सिपाहियों से अकेले दो-दो हाथ कर लेती है। उन्हें मार भगाती है और बदले में जय-जयकार पाती है।[1]
वज़ीर राणामल हंटरवाली से परेशान है। वह उसे ढूँढकर सख्त सज़ा देना चाहता है, मगर वह है कहाँ? जैसे अचानक प्रकट होती है वैसे ही अचानक हवा में गुम हो जाती है। किसी को भी उसका कोई पता-ठिकाना नहीं मालूम है। राजकुमारी माधुरी, जिसके पिता को राणामल ने अगवा करवाया हुआ है, हंटरवाली के बारे में वज़ीर के सामने अनभिज्ञ बनी रहती है। वज़ीर को भी लम्बे समय तक माधुरी पर हंटरवाली होने का सन्देह ही नहीं होता, लेकिन एक दिन हर बात खुलकर सामने आ जाती है और संघर्ष होता है, जैसा कि हिन्दी फ़िल्मों में होता रहा है। अछाई की बुराई पर जीत होती है। फ़िल्म के अंत में हंटरवाली की जय-जयकार होती है, और फ़िल्म समाप्त हो जाती है।
केन्द्रीय नायिका
फ़िल्म पूरी तरह से अभिनेत्री नाडिया के ही चारों ओर घूमती है। फ़िल्म के 'द एंड' के बाद 'हंटरवाली' की कहानी खत्म नहीं होती, बल्कि शुरू होती है। इस फ़िल्म के बाद अभिनेत्री नाडिया की दर्जनों फ़िल्में बनीं, जिनके नाम 'जंगल प्रिंसेस', 'सर्कस क़्वीन' और 'मिस फ्रंटियर मेल' जैसे थे, मगर उनकी पहचान हमेशा सिर्फ 'हंटरवाली' की ही रही। नाडिया को आज 75 साल बाद भी उनके असल नाम की बजाय 'हंटरवाली' के नाम से ही ज़्यादा याद किया जाता है। इस नाम का जादू उस दौर में ऐसा चला कि जिन निर्माताओं को नाडिया बतौर हिरोइन नहीं मिल सकीं, उन्होंने 'हंटरवाली' के नाम की नकल कर ही काम चलाने की कोशिश की और कुछ लोग इसमें सफल भी हुए। अकेले 1938 में ही इस तरह की 'चाबुकवाली', 'साईकलवाली', 'घूंघटवाली' नाम से फ़िल्में बनाई गईं। नाडिया के साथ भी बाद में 'बम्बईवाली' और 'हंटरवाली की बेटी' नाम की फ़िल्में भी बनीं।[1]
फ़िल्म 'हंटरवाली' में यूँ तो और भी बहुत से कलाकार थे, जिनमे बोमन श्राफ, जान कवास, शरीफा और मास्टर मोहम्मद भी थे, लेकिन फ़िल्म पूरी तरह नाडिया के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वज़ीर के हाथों सताए गए जसवंत की भूमिका में बोमन श्राफ एक जगह आकर नाडिया के साथ संघर्ष में शामिल हो जाते हैं, फिर भी उनकी गिनती बाकी के साथ ही होती है।
मुख्य कलाकार
- नाडिया - राजकुमारी माधुरी
- शारीफ़ा - कृष्णावती
- सयानी आतिश - वज़ीर राणामल
- गुलशन -
- बोमन श्राफ - जसवन्त
- जॉन कवास -
- मास्टर मोहम्मद - राजा
- जयदेव - कुन्नू
गीत
- हंटरवाली है भली, दुनिया की सुघ लेत है
- क्या नील गगन में समा शरद का छाया
- गुज़री वो बातें और वो फसाना बदल गया
- ज़मीनो-आस्मां की चक्की चल रही है
- बदी का दौर गुज़रा, अब वक़्त नेकी का आया है
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 हंटरवाली (1935) (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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