हर्षवर्धन (राजनेता): Difference between revisions
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डॉ. हर्षवर्धन की जिंदगी का ध्येय तीन शब्दों में रचा-बसा है- 'शुचिता', 'देशभक्ति' व 'समाजसेवा'। [[परिवार]], समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें इसी तरह विकसित किया है। नेतृत्व क्षमता उनमें शुरू से रही है। [[कानपुर]] में गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल (जीएसवीएम) मेडिकल कॉलेज में वह जूनियर डॉक्टरों के संगठन से जुड़े और उनके संघर्ष का नेतृत्व किया। जब तक वह वहां रहे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा भी लगाई। यही नहीं, जब [[आपातकाल]] लागू हुआ तो उन्होंने भूमिगत रहकर छात्रावासों में और छात्रों के बीच आंदोलन को खड़ा किया। आपातकाल खत्म होने पर जब प्रजातंत्र को पुन:स्थापित करने का आह्वान हुआ तो उन्होंने एक टीम का नेतृत्व करते हुए कानपुर से [[अमेठी]] तक के गांवों में जागरूकता यात्रा निकाली। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य व डॉ. हर्षवर्धन की सहपाठी रहीं डॉ. आरती दवे लालचंदानी के अनुसार- "वह अक्सर अपने साथियों से कहते थे कि दिल्ली लौटकर वह सियासत के साथ समाजसेवा करेंगे और दिल्ली में खुद का अस्पताल होगा, जो आगे चलकर सही भी साबित हुआ। उन्होंने | डॉ. हर्षवर्धन की जिंदगी का ध्येय तीन शब्दों में रचा-बसा है- 'शुचिता', 'देशभक्ति' व 'समाजसेवा'। [[परिवार]], समाज और [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] ने उन्हें इसी तरह विकसित किया है। नेतृत्व क्षमता उनमें शुरू से रही है। [[कानपुर]] में गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल (जीएसवीएम) मेडिकल कॉलेज में वह जूनियर डॉक्टरों के संगठन से जुड़े और उनके संघर्ष का नेतृत्व किया। जब तक वह वहां रहे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा भी लगाई। यही नहीं, जब [[आपातकाल]] लागू हुआ तो उन्होंने भूमिगत रहकर छात्रावासों में और छात्रों के बीच आंदोलन को खड़ा किया। आपातकाल खत्म होने पर जब प्रजातंत्र को पुन:स्थापित करने का आह्वान हुआ तो उन्होंने एक टीम का नेतृत्व करते हुए कानपुर से [[अमेठी]] तक के गांवों में जागरूकता यात्रा निकाली। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य व डॉ. हर्षवर्धन की सहपाठी रहीं डॉ. आरती दवे लालचंदानी के अनुसार- "वह अक्सर अपने साथियों से कहते थे कि दिल्ली लौटकर वह सियासत के साथ समाजसेवा करेंगे और दिल्ली में खुद का अस्पताल होगा, जो आगे चलकर सही भी साबित हुआ। उन्होंने ई.एन.टी. (नाक, कान व गले) सर्जन के तौर पर कृष्णा नगर में अपना क्लीनिक शुरू किया। वह दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहने तक नियमित रूप से इस क्लीनिक में मरीज देखते थे। अब भी जब क्लीनिक पर जाते हैं, मरीजों का हाल-चाल ले लेते हैं। सियासत में आने के दशकों बाद तक इसी क्लीनिक की आय से उनका घर खर्च चलता रहा। आज भी उनका घर साधारण ही है। घर के फर्नीचर तकरीबन 30 [[साल]] पुराने हैं।<ref name="ee">{{cite web |url=https://www.jagran.com/politics/national-health-minister-dr-harshvardhan-singh-simple-and-honest-leader-who-knows-the-public-sense-jagran-special-19348509.html |title=सादगी पसंद और ईमानदार डॉ. हर्षवर्धन|accessmonthday=02 अप्रॅल|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= jagran.com|language=हिंदी}}</ref> | ||
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Revision as of 12:19, 2 April 2020
हर्षवर्धन (राजनेता)
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पूरा नाम | डॉ. हर्षवर्धन गोयल |
जन्म | 13 दिसंबर, 1954 |
जन्म भूमि | दिल्ली, भारत |
अभिभावक | पिता- ओम प्रकाश गोयल, माता- स्नेहलता देवी |
पति/पत्नी | नूतन गोयल |
संतान | तीन- दो पुत्र, एक पुत्री |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | भारतीय जनता पार्टी |
पद | स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री-31 मई, 2019 विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री-9 नवंबर, 2014 |
शिक्षा | एम.बी.बीएस. और एम.एस. |
विद्यालय | ज़ाकिर हुसैन देहली कॉलेज; गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, कानपुर |
व्यवसाय | ऑटोलर्यनोलॉजी चिकित्सक, राजनेता |
अन्य जानकारी | डॉ. हर्षवर्धन को दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास में कोई कभी हरा नहीं पाया। वह 1993 में पहली बार दिल्ली के कृष्णा नगर क्षेत्र से विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। |
अद्यतन | 11:23, 2 अप्रॅल 2020 (IST)
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डॉ. हर्षवर्धन गोयल (अंग्रेज़ी: Dr. Harshvardhan Goel, जन्म- 13 दिसंबर, 1954, दिल्ली) भारतीय राजनेता हैं। वह दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं में से एक हैं। वर्तमान में वह भारत सरकार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। डॉ. हर्षवर्धन 16वीं लोकसभा में संसद सदस्य के रूप में दिल्ली के चांदनी चौक का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोकसभा से पहले वे दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से दिल्ली के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में चुने जा चुके हैं। वह पहली बार कृष्णा नगर विधान सभा से दिल्ली विधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे। डॉ. हर्षवर्धन बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ता रहे हैं, जिसने धीरे-धीरे उन्हें राजनीति की तरफ मोड़ दिया। डॉक्टरी छोड़कर राजनीति में आए डॉ. हर्षवर्धन की गिनती भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं में होती है।
परिचय
डॉ. हर्षवर्धन का जन्म 13 दिसंबर, 1954 को दिल्ली में हुआ। इनके पिता का नाम ओम प्रकाश गोयल और माता का नाम स्नेहलता देवी है। उन्होंने गणेश शंकर विधार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, कानपुर से एमबीबीएस और एमएस की शिक्षा हासिल की है। डॉ. हर्षवर्धन पेशे से तालीमशुदा चिकित्सक हैं और इसीलिए पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच वह डॉक्टर साहब के नाम से मशहूर हैं। उन्होंने 26 फ़रवरी, 1982 को उन्होंने नूतन से विवाह किया। उनके दो बेटे और एक बेटी हैं।
डॉक्टर से राजनेता बने डॉ. हर्षवर्धन दिल्ली के एकमात्र नेता हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए मंत्रिमंडल में जगह दी है। उनको स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भूविज्ञान मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। पिछली सरकार में हर्षवर्धन को पहले स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय दिया गया था। बाद में उन्हें पृथ्वी विज्ञान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का प्रभार दिया गया। 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों में 2,28,145 वोटों से जीते डॉ. हर्षवर्धन दिल्ली की राजनीति के एक मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। वह आज तक एक भी चुनाव नहीं हारें हैं।
नेतृत्व क्षमता
डॉ. हर्षवर्धन की जिंदगी का ध्येय तीन शब्दों में रचा-बसा है- 'शुचिता', 'देशभक्ति' व 'समाजसेवा'। परिवार, समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें इसी तरह विकसित किया है। नेतृत्व क्षमता उनमें शुरू से रही है। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल (जीएसवीएम) मेडिकल कॉलेज में वह जूनियर डॉक्टरों के संगठन से जुड़े और उनके संघर्ष का नेतृत्व किया। जब तक वह वहां रहे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा भी लगाई। यही नहीं, जब आपातकाल लागू हुआ तो उन्होंने भूमिगत रहकर छात्रावासों में और छात्रों के बीच आंदोलन को खड़ा किया। आपातकाल खत्म होने पर जब प्रजातंत्र को पुन:स्थापित करने का आह्वान हुआ तो उन्होंने एक टीम का नेतृत्व करते हुए कानपुर से अमेठी तक के गांवों में जागरूकता यात्रा निकाली। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य व डॉ. हर्षवर्धन की सहपाठी रहीं डॉ. आरती दवे लालचंदानी के अनुसार- "वह अक्सर अपने साथियों से कहते थे कि दिल्ली लौटकर वह सियासत के साथ समाजसेवा करेंगे और दिल्ली में खुद का अस्पताल होगा, जो आगे चलकर सही भी साबित हुआ। उन्होंने ई.एन.टी. (नाक, कान व गले) सर्जन के तौर पर कृष्णा नगर में अपना क्लीनिक शुरू किया। वह दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहने तक नियमित रूप से इस क्लीनिक में मरीज देखते थे। अब भी जब क्लीनिक पर जाते हैं, मरीजों का हाल-चाल ले लेते हैं। सियासत में आने के दशकों बाद तक इसी क्लीनिक की आय से उनका घर खर्च चलता रहा। आज भी उनका घर साधारण ही है। घर के फर्नीचर तकरीबन 30 साल पुराने हैं।[1]
'स्वास्थ्यवर्धन' की उपाधि
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने डॉ. हर्षवर्धन को ऐसे ही स्वास्थ्यवर्धन की उपाधि नहीं दी थी। उनके सिर दिल्ली समेत देशभर में पोलियो मुक्त अभियान शुरू करने का सेहरा बंधा है। अपने प्रयासों से उन्होंने इसे जनआंदोलन बना दिया। उन्हें पता था कि अधिकारियों और चिकित्सकों को साथ लेने मात्र से पोलियो से मुक्ति नहीं पाई जा सकती है, इसलिए वह स्कूलों में गए, आरडब्ल्यूए, सामाजिक व धार्मिक संगठनों के साथ लगातार बैठकें कीं। सेलिब्रिटीज को इससे जोड़ा। उनका ही प्रयास था कि इस अभियान को केंद्र सरकार ने अपनाया और देश पोलियो मुक्त हुआ। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाने का निर्णय लिया तो हर किसी को यह उपयुक्त लगा। मोदी सरकार की दोबारा ऐतिहासिक जीत के बाद स्वास्थ्य मंत्री बने डॉ. हर्षवर्धन पदभार ग्रहण करने साइकिल से मंत्रालय पहुंचे। यह छोटी यात्रा थी, पर इसमें स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति लोगों को प्रेरित करने वाला व्यापक संदेश था।
सादगी और ईमानदारी
डॉ. हर्षवर्धन की सादगी और ईमानदारी पूरे देश में एक नजीर हैं। वह भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनके बारे में पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने कहा था कि- "यदि उन्हें देश के किसी मंत्री को उल्लेखनीय कार्य के लिए पुरस्कृत करना हो तो वह इसके लिए डॉ. हर्षवर्धन को चुनना पसंद करेंगे।" जब वह स्वास्थ्य मंत्री बने तो डॉक्टरों का एक दल उनको बधाई देने गया। साथ में पैकेट में बंद भगवान की मूर्ति थी। उन्होंने उसे लेने से साफ मना कर दिया। जब उनसे बताया गया कि मूर्ति है, तब भी उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। आखिरकार प्रतिनिधिमंडल ने ही पैकेट खोलकर मूर्ति देने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने माना और पैकेट की जगह मूर्ति ली।
मुख्यमंत्री पद के दावेदार
डॉ. हर्षवर्धन की नेतृत्व क्षमता को लेकर भाजपा शुरू से ही आश्वस्त थी। वर्ष 1993 से 1998 तक दो मौके आए, जब उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने की पार्टी में बात चली और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी उनके पक्ष में था, लेकिन परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहीं, जिसकी वजह से अंतत: मुख्यमंत्री नहीं बन सके। इसके बाद भी वर्ष 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव पार्टी ने उनके नेतृत्व में लड़ा, पर संख्या बल कुछ कम रह जाने की वजह से वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। हालांकि इसका मलाल उनके चेहरे पर कभी नहीं दिखा। जनता और पार्टी के हर फैसले को उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया।[1]
सियासी सफ़र
डॉ. हर्षवर्धन की गिनती भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं में होती है। दिल्ली में बीजेपी की सरकार (1993-1998) के दौरान हर्षवर्धन को स्वास्थ्य मंत्री, कानून मंत्री और शिक्षा मंत्री समेत राज्य मंत्रिमण्डल में विभिन्न पदों की जिम्मेदारी सौंपी गई, जो उन्होंने बखूबी निभाई। डॉ. हर्षवर्धन को दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास में कोई कभी भी हरा नहीं पाया। वह 1993 में पहली बार दिल्ली के कृष्णा नगर क्षेत्र से विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। 1996 में उन्हें दिल्ली की सरकार में कानून और स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त किया गया। इसके बाद वह 1998, 2003 और 2008 में विधायक बने। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी बनाया गया था। डॉक्टर हर्षवर्धन को देश के वरिष्ठ, ईमानदार और कुशल संगठनकर्ता के रूप में जाना जाता है; सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि विपक्षी दल भी उनकी ईमारदारी, सरलता और जमीनी नेता होने के कायल है। डॉ. हर्षवर्धन चार बार दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी दी गई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2
सादगी पसंद और ईमानदार डॉ. हर्षवर्धन (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 02 अप्रॅल, 2020। Cite error: Invalid
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