भानुभाई चितारा: Difference between revisions
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'''भानुभाई चितारा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhanubhai chitara'') भारतीय हस्तशिल्प कलाकार हैं। [[कला]], [[संस्कृति]], परंपरा को जीवित रखने की चाह हो तो उन्हें जीवित रखा जा सकता है। इसकी मिसाल हैं, 80 साल के भानुभाई चितारा, जिन्हें उनकी भारतीय हस्तकला को सदियों से संजोकर और संभालकर रखने के लिए [[2023]] के [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया गया है। भानुभाई चितारा के [[परिवार]] में कई पीढ़ियों से ये कला की जा रही है। भानुभाई चितारा 8वीं पीढ़ी के हैं और आज भी इस हस्तकला का अस्तित्व बरकरार है। | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
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Latest revision as of 07:52, 14 July 2023
भानुभाई चितारा
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पूरा नाम | भानुभाई चितारा |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | चित्रकारी |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्म श्री, 2023 |
प्रसिद्धि | पुरानी हस्तकला ‘माता नी पचेड़ी’ के दक्ष चित्रकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | भानुभाई चितारा के परिवार के अलावा, अन्य परिवार भी इस कला को करते आ रहे हैं, लेकिन चितारा परिवार सबसे पुराना है और आज जो भी इस हस्तकला को कर रहा है |
अद्यतन | 13:22, 14 जुलाई 2023 (IST)
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भानुभाई चितारा (अंग्रेज़ी: Bhanubhai chitara) भारतीय हस्तशिल्प कलाकार हैं। कला, संस्कृति, परंपरा को जीवित रखने की चाह हो तो उन्हें जीवित रखा जा सकता है। इसकी मिसाल हैं, 80 साल के भानुभाई चितारा, जिन्हें उनकी भारतीय हस्तकला को सदियों से संजोकर और संभालकर रखने के लिए 2023 के पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। भानुभाई चितारा के परिवार में कई पीढ़ियों से ये कला की जा रही है। भानुभाई चितारा 8वीं पीढ़ी के हैं और आज भी इस हस्तकला का अस्तित्व बरकरार है।
- इस कला हस्तकला का नाम ‘माता नी पचेड़ी’ है, जो 400 साल पुरानी गुजरात की हस्तकला है। इसका अर्थ ‘मां देवी के पीछे’ होता है। इसमें कपड़े पर पेंटिंग से महीन चित्रकारी करके प्राकृतिक रंग भरे जाते हैं।
- इस चित्रकारी के ज़रिये देवी-देवताओं के अलग-अलग रूप और उनकी कहानियों को दर्शाया जाता है।
- गुजरात में चितारा परिवार के अलावा, अन्य परिवार भी इस कला को करते आ रहे हैं, लेकिन चितारा परिवार सबसे पुराना है और आज जो भी इस हस्तकला को कर रहा है, उसने कभी न कभी चितारा परिवार से इस कला के गुर ज़रूर सीखे होंगे।
- माना जाता है कि ये कला 3000 साल पुरानी है और मुग़लों के समय की है।
- इस कला के बारे में एक किवदंती है कि इस हस्तकला की शुरुआत गुजरात के उस समुदाय ने की थी, जिन्हें जातिवाद के कारण मंदिर में प्रवेश करने से सख़्त मना किया था। इसलिए उस समुदाय के लोग ख़ुद देवी-देवताओं को बनाकर उन्हें पूजते थे।
- भानुभाई चितारा के पोते ओम चितारा ने 'द बेटर इंडिया' से बात करते हुए बताया था कि, “इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि यह कला शुरू कहाँ से हुई। लेकिन सालों से उनका परिवार इस भारतीय हस्तकला से जुड़ा है। मैं, माता नी पचेड़ी बनाने वाला अपने परिवार की नौवीं पीढ़ी हूँ।”
- पहले यह चित्रकारी मात्र लाल रंग और काले रंग से की जाती थी, लेकिन आज इसमें कई तरह के प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल हो रहा है। समय के साथ-साथ लोगों के बीच इस तरह की पारम्परिक कलाओं के प्रति रुचि बढ़ रही है। इसलिए लोग इसे खरीद रहे हैं और पसंद भी कर रहे हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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