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*फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला मास। | |||
*[[अमावस्या]] के पश्चात [[चन्द्रमा]] जब [[मेष राशि]] और [[अश्विनी नक्षत्र]] में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15 वें दिन [[चित्रा नक्षत्र]] में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास 'चित्रा' नक्षत्र के कारण 'चैत्र' कहलाता है। | *[[अमावस्या]] के पश्चात [[चन्द्रमा]] जब [[मेष राशि]] और [[अश्विनी नक्षत्र]] में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15 वें दिन [[चित्रा नक्षत्र]] में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास 'चित्रा' नक्षत्र के कारण 'चैत्र' कहलाता है। | ||
*हिंदू [[नववर्ष]] के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े। | *हिंदू [[नववर्ष]] के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े। | ||
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*नवमी को भद्रकाली की पूजा होती है। | *नवमी को भद्रकाली की पूजा होती है। | ||
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*शुक्ल एकादशी को [[कृष्ण]] भगवान का दोलोत्सव तथा दमनक से ऋषियों का पूजन होता है। महिलाएँ कृष्णपत्नी [[रुक्मिणी]] का पूजन करती हैं तथा सन्ध्या काल में सभी दिशाओं में पंचगव्य फेंकती हैं। *द्वादशी को दमनकोत्सव मनाया जाता है। | *शुक्ल एकादशी को [[कृष्ण]] भगवान का दोलोत्सव तथा दमनक से ऋषियों का पूजन होता है। महिलाएँ कृष्णपत्नी [[रुक्मिणी]] का पूजन करती हैं तथा सन्ध्या काल में सभी दिशाओं में पंचगव्य फेंकती हैं। | ||
*द्वादशी को दमनकोत्सव मनाया जाता है। | |||
*त्रयोदशी को कामदेव की पूजा चम्पा के पुष्पों तथा चन्दन के लप से की जाती है। | *त्रयोदशी को कामदेव की पूजा चम्पा के पुष्पों तथा चन्दन के लप से की जाती है। | ||
*चतुर्दशी को नृसिंहदोलोत्सव मनाया जाता है। दमनक पौधे से एकवीर, भैरव तथा शिव की पूजा की जाती है। | *चतुर्दशी को नृसिंहदोलोत्सव मनाया जाता है। दमनक पौधे से एकवीर, भैरव तथा शिव की पूजा की जाती है। | ||
*पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमज्जयन्ती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता है। | *पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमज्जयन्ती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता है। | ||
*चैत्र मास की [[पूर्णिमा]] को 'चैते पूनम' भी कहा जाता है, इसी दिन भगवान श्री [[कृष्ण]] ने [[ब्रज]] में उत्सव रचाया था, जिसे महारास के नाम से जाना जाता है,यह महारास कार्तिक पूर्णिमा को शुरु होकर चैत्र की पूर्णिमा को समाप्त हुआ था। | |||
*चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन स्त्री पुरुष बाल वृद्ध सभी पवित्र नदियों में स्नान करने के अपने को पवित्र करते है,इस दिन घरों में लक्ष्मी-नारायण को प्रसन्न करने के लिये व्रत किया जाता है और सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है। | |||
*चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को [[हनुमान]] जी का जन्मदिवस मनाया जाता है, वैसे वायु पुराणादि के अनुसार कार्तिक की चौदस के दिन हनुमान जयन्ती अधिक प्रचलित है, इस दिन हनुमान जी को सजा कर उनकी पूजा अर्चना एवं आरती करें,भोग लगाकर सबको प्रसाद देना चाहिये। | |||
*[[पुराण]] के अनुसार, चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तारीख से ही सृष्टि का आरंभ हुआ है। कहते हैं कि इसी दिन से [[भारत]] में समय की गणना शुरू हुई है। दूसरी ओर, ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। | |||
*चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा बसंत ऋतु में आती है। | |||
*शाक्त संप्रदाय के अनुसार, बासंतिक नवरात्रका आरंभ भी इसी दिन से होता है। | |||
*स्मृति कौस्तुभ के अनुसार, रेवती नक्षत्र में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। | |||
*ईरान में इस तिथि को नौरोज यानी नया वर्ष मनाया जाता है। | |||
*यह दिन जम्मू-कश्मीर में नवरेह,पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में गुडीपडवा, सिंधी में चेतीचंड,केरल में विशु,असम में रोंगलीबिहूआदि के रूप में मनाया जाता है। | |||
*आंध्र में यह पर्व उगादिनाम से मनाया जाता है। उगादिका अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन। | |||
*विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्म, आर्य समाज की स्थापना, महान नेता डॉ. केशव बलिरामका जन्म भी इसी दिन हुआ था। साथ ही, आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन हुई थी। | |||
*चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते है । | |||
*चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते है । | |||
*शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है, सो आश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सो चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण (सावन) माह से होती है, इसलिये एक गते, श्रावण को हरेला मनाया जाता है। | |||
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*इस दिन सूर्य उदय से पहले जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो, उबटन लगाकर स्नान करें। | *इस दिन सूर्य उदय से पहले जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो, उबटन लगाकर स्नान करें। | ||
*नए वस्त्र पहनें और सूर्य के दर्शन करें। | *नए वस्त्र पहनें और सूर्य के दर्शन करें। | ||
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Revision as of 11:45, 18 September 2010
- चैत्र हिंदू पंचांग का प्रथम मास है।
- फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला मास।
- अमावस्या के पश्चात चन्द्रमा जब मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15 वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास 'चित्रा' नक्षत्र के कारण 'चैत्र' कहलाता है।
- हिंदू नववर्ष के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े।
- इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं।
- पुराण अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था।
- प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरूआत हुई।
- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सत युग का प्रारंभ माना जाता है। यह तिथि हमें सतयुग की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है।
- सतयुग का अर्थ है हम कर्म करें और कर्तव्य के मार्ग पर आगे बढ़े।
- इस मास के सामान्य कृत्यों का विवरण कृत्यरत्नाकर, [1]; निर्णयसिन्धु, [2]में मिलता है।
- शुक्ल प्रतिपदा कल्पादि तिथि है।
- इस दिन से प्रारम्भ कर चार मास तक जलदान करना चाहिए।
- शुक्ल तृतीयों को उमा, शिव तथा अग्नि का पूजन होना चाहिए।
- शुक्ल तृतीया मन्वादि तिथि है। उसी दिन मत्स्यजयन्ती मनानी चाहिए।
- चतुर्थी को गणेशजी का लड्डुओं से पूजन होना चाहिए।
- पंचमी को लक्ष्मी पूजन तथा नागों के पूजन का विधान है।
- षष्ठी के लिए स्वामी कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
- सप्तमी को दमनक पौधे से सूर्यपूजन की विधि है।
- अष्टमी को भवानी कुछ महत्वपूर्ण व्रतों का अन्यत्र भी परिगणन किया गया है। यात्रा होती है। इस दिन ब्रह्मपुत्र नदी में स्नान का महत्व है।
- नवमी को भद्रकाली की पूजा होती है।
- दशमी को दमनक पौधे से धर्मराज की पूजा का विधान है।
- शुक्ल एकादशी को कृष्ण भगवान का दोलोत्सव तथा दमनक से ऋषियों का पूजन होता है। महिलाएँ कृष्णपत्नी रुक्मिणी का पूजन करती हैं तथा सन्ध्या काल में सभी दिशाओं में पंचगव्य फेंकती हैं।
- द्वादशी को दमनकोत्सव मनाया जाता है।
- त्रयोदशी को कामदेव की पूजा चम्पा के पुष्पों तथा चन्दन के लप से की जाती है।
- चतुर्दशी को नृसिंहदोलोत्सव मनाया जाता है। दमनक पौधे से एकवीर, भैरव तथा शिव की पूजा की जाती है।
- पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमज्जयन्ती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता है।
- चैत्र मास की पूर्णिमा को 'चैते पूनम' भी कहा जाता है, इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में उत्सव रचाया था, जिसे महारास के नाम से जाना जाता है,यह महारास कार्तिक पूर्णिमा को शुरु होकर चैत्र की पूर्णिमा को समाप्त हुआ था।
- चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन स्त्री पुरुष बाल वृद्ध सभी पवित्र नदियों में स्नान करने के अपने को पवित्र करते है,इस दिन घरों में लक्ष्मी-नारायण को प्रसन्न करने के लिये व्रत किया जाता है और सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है।
- चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मदिवस मनाया जाता है, वैसे वायु पुराणादि के अनुसार कार्तिक की चौदस के दिन हनुमान जयन्ती अधिक प्रचलित है, इस दिन हनुमान जी को सजा कर उनकी पूजा अर्चना एवं आरती करें,भोग लगाकर सबको प्रसाद देना चाहिये।
- पुराण के अनुसार, चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तारीख से ही सृष्टि का आरंभ हुआ है। कहते हैं कि इसी दिन से भारत में समय की गणना शुरू हुई है। दूसरी ओर, ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है।
- चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा बसंत ऋतु में आती है।
- शाक्त संप्रदाय के अनुसार, बासंतिक नवरात्रका आरंभ भी इसी दिन से होता है।
- स्मृति कौस्तुभ के अनुसार, रेवती नक्षत्र में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था।
- ईरान में इस तिथि को नौरोज यानी नया वर्ष मनाया जाता है।
- यह दिन जम्मू-कश्मीर में नवरेह,पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में गुडीपडवा, सिंधी में चेतीचंड,केरल में विशु,असम में रोंगलीबिहूआदि के रूप में मनाया जाता है।
- आंध्र में यह पर्व उगादिनाम से मनाया जाता है। उगादिका अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन।
- विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्म, आर्य समाज की स्थापना, महान नेता डॉ. केशव बलिरामका जन्म भी इसी दिन हुआ था। साथ ही, आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन हुई थी।
- चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते है ।
- चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते है ।
- शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है, सो आश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सो चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण (सावन) माह से होती है, इसलिये एक गते, श्रावण को हरेला मनाया जाता है।
विधि
- नए साल का आरंभ हमें सूर्य पूजन से करके करना चाहिए।
- सूर्य को प्रत्यक्ष देव माना गया है।
- सूर्य से हमें ऊर्जा मिलती है।
- हम सूर्य की तरह ऊर्जावान है।
- इस दिन सूर्य उदय से पहले जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो, उबटन लगाकर स्नान करें।
- नए वस्त्र पहनें और सूर्य के दर्शन करें।
- सूर्य को अर्ध्य दें और पूजन कर नए साल के लिए प्रार्थना करें।
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