पुष्कर अजमेर: Difference between revisions

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*पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है।
*पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है।
*पुष्कर राजस्थान के अजमेर जिले में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है।
*पुष्कर राजस्थान के अजमेर ज़िले में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है।
*पर्यटकों का स्वर्ग तीर्थराज पुष्कर [[पद्म पुराण]] के अनुसार पर्वतों में [[भेरू पर्वत]], पक्षियों में [[गरूड़ पक्षी]] और समस्त तीर्थों में पुष्कर तीर्थ श्रेष्ठ माना गया हैं।
*पर्यटकों का स्वर्ग तीर्थराज पुष्कर [[पद्म पुराण]] के अनुसार पर्वतों में [[भेरू पर्वत]], पक्षियों में [[गरूड़ पक्षी]] और समस्त तीर्थों में पुष्कर तीर्थ श्रेष्ठ माना गया हैं।
*संस्कृतियों का संगम तीर्थराज पुष्कर अजमेर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
*संस्कृतियों का संगम तीर्थराज पुष्कर अजमेर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।

Revision as of 12:17, 26 September 2010

[[चित्र:Pushkar-Lake-Ajmer.jpg|पुष्कर झील
Pushkar Lake|thumb]]

  • राजस्थान के शहर अजमेर में कई पर्यटन स्थल है जिनमें से ये एक है।
  • पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है।
  • पुष्कर राजस्थान के अजमेर ज़िले में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है।
  • पर्यटकों का स्वर्ग तीर्थराज पुष्कर पद्म पुराण के अनुसार पर्वतों में भेरू पर्वत, पक्षियों में गरूड़ पक्षी और समस्त तीर्थों में पुष्कर तीर्थ श्रेष्ठ माना गया हैं।
  • संस्कृतियों का संगम तीर्थराज पुष्कर अजमेर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
  • यहाँ पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं।
  • हज़ारों हिन्दू लोग इस मेले में आते हैं। अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं।
  • इस समय यहाँ पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, यह मेला विश्व प्रसिद्ध है इसे देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुँचते हैं, यहाँ दुनिया के एक मात्र जगतपिता ब्रह्मा जी का मंदिर ओर प्रजापति मन्दिर समेत कई छोटे बडे मंदिर हैं।
  • हम्मीर महाकाव्य और सुरजन चरित्र ग्रन्थों में पुष्कर की ही चौहान वंश के संस्थापक चाहमनों की जन्मभूमि बताई गई हैं।
  • यहाँ प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता हैं।
    • पहला मेला कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक तथा
    • दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है।
  • मेले के अवसर पर स्नान का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता हैं।

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