पद्म पुराण
[[चित्र:Cover-Padma-Purana.jpg|thumb|पद्म पुराण, गीताप्रेस गोरखपुर का आवरण पृष्ठ]]
'पद्म पुराण' हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में विशाल पुराण है। केवल 'स्कन्द पुराण' ही इससे बड़ा है। इस पुराण के श्लोकों की संख्या पचास हज़ार है। वैसे तो इस पुराण से संबंधित सभी विषयों का वर्णन स्थान विशेष पर आ गया है, किन्तु इसमें प्रधानता उपाख्यानों और कथानकों की है। ये कथानक तीर्थों तथा व्रत सम्बन्धी नहीं हैं, वरन् पौराणिक पुरुषों और राजाओं से सम्बन्धित हैं। अन्य पुराणों में यही कथानक जिस रूप में प्राप्त होते हैं, यहाँ ये दूसरे रूप में हैं। ये आख्यान और उपाख्यान सर्वथा नवीन, विचित्र और सामान्य पाठकों को चमत्कृत कर देने वाले हैं।
[[चित्र:Shiva.jpg|thumb|शिव
Shiva]]
वैष्णव पुराण
'पद्म पुराण' प्रमुख रूप से वैष्णव पुराण है। इस पुराण की मान्यता के अनुसार 'विष्णु' की उपासना का प्रतिपादन करने वाले पुराण ही सात्विक हैं। इस पुराण में प्रसंगवश शिव का वर्णन भी प्राप्त होता है। किन्तु यह वर्णन सम्प्रदायवाद से ग्रसित न होकर उत्तम रूप में प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश में उन्हें विष्णु से सर्वोच्च नहीं माना गया है। यदि इस पुराण को विष्णु की उपासना के कारण 'सात्विक' माना गया है तो ब्रह्मा की उपासना करने वाले पुराणों को 'राजस' श्रेणी में रखा गया हैं इसके अलावा शिवोपासना से सम्बन्धित पुराणों को 'तामस' श्रेणी का माना गया है, जैसे- 'शिव पुराण', 'लिंग पुराण', 'कूर्म पुराण', 'मत्स्य पुराण', 'स्कन्द पुराण' और 'अग्नि पुराण'।
खण्ड विभाजन
'पद्म पुराण' को पांच खण्डों में विभाजित किया गया है। ये खण्ड इस प्रकार हैं-
- सृष्टि खण्ड
- भूमि खण्ड
- स्वर्ग खण्ड
- पाताल खण्ड
- उत्तर खण्ड
उपयुक्त खण्डों के अतिरिक्त 'ब्रह्म खण्ड' और 'क्रियायोग सागर खण्ड' का वर्णन भी मिलता है, परन्तु 'नारद पुराण' में जो खण्ड सूची है, उसमें पांच ही खण्ड दिए गए हैं। उसमें ब्रह्म खण्ड और क्रियायोग सागर खण्ड का उल्लेख नहीं है। प्राय: पांच खण्डों का विवेचन ही पुराण सम्बन्धी धार्मिक पुस्तकों में प्राप्त होता है। इसलिए यहाँ पांच खण्डों पर ही प्रकाश डाला जा रहा है।
सृष्टि खण्ड
सृष्टि खण्ड में बयासी अध्याय हैं। यह पांच उपखण्डों- पौष्कर खण्ड, तीर्थ खण्ड, तृतीय पर्व खण्ड, वंशानुकीर्तन खण्ड तथा मोक्ष खण्ड में विभाजित है। इसमें मनुष्यों की सात प्रकार की सृष्टि रचना का विवरण है। साथ ही सावित्री सत्यवान उपाख्यान, पुष्कर आदि तीर्थों का वर्णन और प्रभंजन, धर्ममूर्ति, नरकासुर, कार्तिकेय आदि की कथाएं हैं। इसमें पितरों का श्राद्धकर्म, पर्वतों, द्वीपों, सप्त सागरों आदि का वर्णन भी प्राप्त होता है। आदित्य शयन और रोहिण चन्द्र शयन व्रत को अत्यन्त पुण्यशाली, मंगलकारी और सुख-सौभाग्य का सूचक बताया गया है। तीर्थ माहात्म्य के प्रसंग में यह खण्ड इस बात की सूचना देता है कि किसी भी शुक्ल पक्ष में मंगलवार के दिन या चतुर्थी तिथि को जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक श्राद्धकर्म करता है, वह कभी प्रेत योनि में नहीं पड़ता। श्रीरामचन्द्र जी ने अपने पिता का श्राद्ध पुष्कर तीर्थ में जाकर किया था, इसका वर्णन भी प्राप्त होता है। रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की पूजा का उल्लेख भी इसमें मिलता है। कार्तिकेय द्वारा तारकासुर के वध की कथा भी इसमें प्राप्त होती है।
इस खण्ड में बताया गया है कि एकादशी के प्रतिदिन आंवले के जल से स्नान करने पर ऐश्वर्य और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। आवंले की महिमा का बखान करने के उपरान्त तुलसी की महिमा का भी वर्णन है। तुलसी का पौधा घर में रहने से भूत-प्रेत, रोग आदि कभी प्रवेश नहीं करते। इसमें व्यास जी गंगाजल के एक मूलमन्त्र का भी वर्णन करते हैं। उनके मतानुसार जो व्यक्ति निम्रवत् मन्त्र का एक बार जप करके गंगाजल से स्नान करता है, वह भगवान विष्णु के चरणों का संयोग प्राप्त कर लेता है।
मन्त्र इस प्रकार है, जो सृष्टि खण्ड के गंगा माहात्म्य-45 में वर्णित है-
ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम:।
अर्थात् विश्व रूप वाली साक्षात् नारायण स्वरूप भगवती गंगा के लिए मेरा बारम्बार प्रणाम है।
[[चित्र:Ganesha.jpg|thumb|200px|गणेश
Ganesha]]
गंगा की स्तुति के बाद श्रीगणेश और सूर्य की स्तुति की गई है तथा संक्रान्ति काल के पुण्य फल का उल्लेख किया गया है।
भूमि खण्ड
भूमि खण्ड में अनेक आख्यान हैं। ब्रह्मचर्य, दान, मानव धर्म आदि का वर्णन इस खण्ड में है। जैन धर्म का विवेचन भी इसमें है। भूमि खण्ड के प्रारम्भ में शिव शर्मा ब्राह्मण द्वारा पितृ भक्ति और वैष्णव भक्ति की सुन्दर गाथा प्रस्तुत की गई है। इसके उपरान्त सोम शर्मा द्वारा भगवान विष्णु की भावना युक्त स्तुति है। इसके बाद इसके उपरान्त सोम शर्मा भगवान विष्णु की भावना युक्त स्तुति है। इसके बाद वेन पुत्र राजा पृथु के जन्म एवं चरित्र, गन्धर्व कुमार सुशंख द्वारा मृत्यु अथवा यम कन्या सुनीया को शाप, अंग की तपस्या, वेन द्वारा विष्णु की उपासना और पृथु के आविर्भाव की कथा का पुन: आवर्तन, विष्णु द्वारा दान काल के भेदों का वेन को उपदेश, सुकाला की कथा, शूकर-शूकरी की उपाख्यान, पिप्पल की पितृ तीर्थ प्रसंग में तपस्या, सुकर्मा की पितृ भक्ति, भगवान शिव की महिमा और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र आदि का उल्लेख प्राप्त होता है।
ययाति की जरावस्था, कामकन्या से भेंट तथा पुत्र पुरू द्वारा यौवन दान की प्रसिद्ध कथा भी इस खण्ड में दी गई है। अन्त में गुरु तीर्थ के प्रसंग में महर्षि च्यवन की कथा, कुंजल पक्षी द्वारा अपने पुत्र उज्ज्वल को ज्ञानव्रत और स्तोत्र का उपदेश आदि का वर्णन भी इस खण्ड में मिलता हे। साथ ही 'शरीरोत्पत्तिह' का भी सुन्दर विवेचन इस खण्ड में किया गया है।
स्वर्ग खण्ड
स्वर्ग खण्ड में बासठ अध्याय हैं। इसमें पुष्कर तीर्थ एवं नर्मदा के तट तीर्थों का बड़ा ही मनोहारी और पुण्य देने वाला वर्णन है। साथ ही शकुन्तला-दुष्यन्त उपाख्यान, ग्रह-नक्षत्र, नारायण, दिवोदास, हरिश्चन्द्र, मांधाता आदि के चरित्रों का अत्यन्त सुन्दर वर्णन यहाँ प्राप्त होता है। खण्ड के प्रारम्भ में भारतवर्ष के वर्णन में कुल सात पर्वतों, एक सौ बाईस नदियों, उत्तर भारत के एक सौ पैंतीस तथा दक्षिण भारत के इक्यावन जनपदों और मलेच्छ राजाओं का भी इसमें वर्णन है। इसी सन्दर्भ में बीस बलिष्ठ राजाओं की सूची भी दी गई है। साथ ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का भी सुन्दर विवेचन है।
विविध तीर्थों के अन्तर्गत में नागराज तक्षक की जन्मभूमि विताता (कश्मीर), गया है कि 'ब्रह्म पुराण' हरि का मस्तक और 'पद्म पुराण' उनका हृदय है। 'विष्णु पुराण' दाईं भुजा, 'शिव पुराण' बाईं भुजा,'श्रीमद् भागवत पुराण' दो आँखेंं, 'नारद पुराण' नाभि, 'मार्कण्डेय पुराण' दायां चरण, 'अग्नि पुराण' बायां चरण, 'भविष्य पुराण' दायां घुटना, 'ब्रह्म वैवर्त पुराण' बायां घुटना, 'लिंग पुराण' दायां टखना, 'वराह पुराण' बायां टखना, 'स्कन्द पुराण' शरीर के रोएं, 'वामन पुराण' त्वचा, 'कूर्म पुराण' पीठ, 'मत्स्य पुराण' मेदा, 'गरुड़ पुराण' मज्जा और 'ब्रह्माण्ड पुराण' उनकी अस्थियां हैं।
इसी खण्ड में 'एकादशी व्रत' का माहात्म्य भी बताया गया है। कहा गया है कि जितने भी अन्य व्रतोपवास हैं, उन सब में एकादशी व्रत सबसे उत्तम है। इस उपवास से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होकर वरदान देते हैं। [[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|thumb|रावण के वेश में, रामलीला कलाकार, मथुरा]]
पाताल खण्ड
पाताल खण्ड में रावण विजय के उपरान्त राम कथा का वर्णन है। श्रीकृष्ण की महिमा, कृष्ण तीर्थ, नारद का स्त्री रूप आख्यान्, रावण तथा अन्य राक्षसों का वर्णन, बारह महीनों के पर्व और माहात्म्य तथा भूगोल सम्बन्धी सामग्री भी इस खण्ड में उपलब्ध होती है।
वस्तुत: इस खण्ड में भगवान विष्णु के 'रामावतार' और 'कृष्णावतार' की लीलाओं का ही वर्णन प्राप्त होता है।
[[चित्र:Haridwar.jpg|गंगा नदी, हरिद्वार
Ganga River, Haridwar|thumb|200px]]
उत्तर खण्ड
उत्तर खण्ड में जलंधर राक्षस और सती पत्नी तुलसी वृन्दा की कथा तथा अनेक देवों एवं तीर्थों के माहात्म्स का वर्णन है। इस खण्ड का प्रारम्भ नारद-महादेव के मध्य बद्रिकाश्रम एवं नारायण की महिमा के संवाद के साथ होता है। इसके पश्चात् गंगावतरण की कथा, हरिद्वार का माहात्म्य; प्रयाग, काशी एवं गया आदि तीर्थों का वर्णन है।
'पद्म पुराण' की रचना बारहवीं शताब्दी के बाद की मानी जाती है। इस पुराण में नन्दी धेनु उपाख्यान, बलि-वामन आख्यान, तुलाधार की कथा आदि द्वारा सत्य की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। तुलाधार कथा से पतिव्रत धर्म की शक्ति का पता चलता है। इन उपाख्यानों द्वारा पुराणकार ने यही सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि सत्य का पालन करते हुए सादा जीवन जीना सभी कर्मकाण्डों और धार्मिक अनुष्ठानों से बढ़कर है। सदाचारियों को ही 'देवता' और दुराचारियों तथा पाश्विक वृत्तियां धारण करने वाले को 'राक्षस' कहा जाता है। पूजा जाति की नहीं, गुणों की होनी चाहिए। धर्म विरोधी प्रवृत्तियों के निराकरण के लिए प्रभु कीर्तन बहुत सहायक होता है।
अन्य दो खण्ड
- ब्रह्म खण्ड
इस खण्ड में पुरुषों के कल्याण का सुलभ उपाय धर्म आदि की विवेचन तथा निषिद्ध तत्वों का उल्लेख किया गया है। पाताल खण्ड में राम के प्रसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है कि भक्ति के प्रवाह में विष्णु और राम में कोई भेद नहीं है। उत्तर खण्ड में भक्ति के स्वरूप को समझाते हुए योग और भक्ति की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को विस्तार से लिया गया है।
- क्रियायोग सार खण्ड
क्रियायोग सार खण्ड में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित तथा कुछ अन्य संक्षिप्त बातों को लिया गया है। इस प्रकार यह खण्ड सामान्यत: तत्व का विवेचन करता है।
- पदम-पुराण के विषय में कहा गया है कि यह पुराण अत्यन्त पुण्य-दायक और पापों का विनाशक है। सबसे पहले इस पुराण को ब्रह्मा ने पुलस्त्य को सुनाया और उन्होंने फिर भीष्म को और भीष्म ने अत्यन्त मनोयोग से इस पुराण को सुना, क्योंकि वे समझते थे कि वेदों का मर्म इस रूप में ही समझा जा सकता है।
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