कुषाण साम्राज्य: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 28: Line 28:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
{{कुषाण साम्राज्य}}
[[Category:नया पन्ना]]  
[[Category:नया पन्ना]]  


[[Category:इतिहास_कोश]][[Category:शक_एवं_कुषाण_काल]]__INDEX__
[[Category:इतिहास_कोश]][[Category:शक_एवं_कुषाण_काल]]__INDEX__

Revision as of 10:45, 3 October 2010

युइशि जाति का भारत प्रवेश

हूणों के आक्रमण के कारण युइशि लोग अपने प्राचीन अभिजन को छोड़कर अन्यत्र जाने के लिए विवश हुए थे, और इसलिए मध्य एशिया के क्षेत्र में निवास करने वाली विविध जातियों में एक प्रकार की उथल-पुथल मच गई थी। युइशि जाति का मूल अभिजन तिब्बत के उत्तर-पश्चिम में 'तकला मक़ान' की मरुभूमि के सीमान्त क्षेत्र में था। उस समय हूण लोग उत्तरी चीन में निवास करते थे। जब चीन के शक्तिशाली सम्राट शी-हुआंग-ती (246—210 ई. पू.) ने उत्तरी चीन में विशाल दीवार बनवाकर हूणों के लिए अपने राज्य पर आक्रमण कर सकना असम्भव बना दिया, तो हूण लोग पश्चिम की ओर बढ़े, और उस प्रदेश पर टूट पड़े, जहाँ युइशि जाति का निवास था। युइशि लोगों के लिए यह सम्भव नहीं था कि वे बर्बर और प्रचण्ड हूण आक्रान्ताओं का मुक़ाबला कर सकते। वे अपने अभिजन को छोड़कर पश्चिम व दक्षिण की ओर जाने के लिए विवश हुए। उस समय सीर नदी की घाटी में शक जाति का निवास था। युइशि लोगों के आक्रमण के कारण वह अपने प्रदेश को छोड़ देने के लिए विवश हुई, और सीर नदी की घाटी पर युइशि जाति का अधिकार हो गया। युइशियों से धकेले जाकर ही शकों ने बैक्ट्रिया और पार्थिया पर आक्रमण किए और उनकी एक शाखा भारत में भी प्रविष्ट हुई। शकों के द्वारा बैक्ट्रिया के यवन राज्य का अन्त हुआ, और पार्थिया भी उनके अधिकार में आ जाता, यदि राजा मिथिदातस द्वितीय उनके आक्रमणों से अपने राज्य की रक्षा करने में समर्थ न होता। पार्थिया को जीत सकने में समर्थ न हो पाने के कारण ही शकों की एक शाखा सीस्तान होती हुई सिन्ध नदी में प्रविष्ट हुई थी।

युइशि जाति का बैक्ट्रिया में प्रवेश

सीर नदी की घाटी से शकों को निकालकर युइशि जाति के लोग वहाँ पर आबाद हो गए थे। पर वे वहाँ पर भी देर तक नहीं टिक सके। जिन हूणों के आक्रमण के कारण युइशि लोग अपने मूल अभिजन को छोड़ने के लिए विवश हुए थे, उन्होंने उन्हें सीर नदी की घाटी में भी चैन से नहीं रहने दिया। हूणों ने यहाँ पर भी उनका पीछा कया, जिससे की शकों के पीछे-पीछे वे बैक्ट्रिया में भी प्रविष्ट हुए। बैक्ट्रिया और उसके समीपवर्ती प्रदेशों पर उन्होंने क़ब्ज़ा कर लिया, और वहाँ अपने पाँच राज्य क़ायम किए। एक चीनी ऐतिहासिक के अनुसार -

  1. हिउ-मी
  2. शुआंग-मी
  3. कुएई-शुआंग
  4. ही-तू
  5. काओ-फ़ू।

पहली सदी ई. पू. से ही युइशि लोग अपने ये पाँच राज्य स्थापित कर चुके थे। इन राज्यों में परस्पर संघर्ष चलता रहता था। बैक्ट्रिया के यवन निवासियों के सम्पर्क में आकर युइशि लोग सभ्यता के मार्ग पर भी अग्रसर होने लगे थे, और वे उस दशा से उन्नति कर गए थे, जिसमें कि वे तक़लामक़ान की मरुभूमि के समीपवर्ती अपने मूल अभिजन में रहा करते थे।

कुषाण

युइशि लोगों के पाँच राज्यों में अन्यतम 'कुएई-शुआंगा' था। 25 ई. पू. के लगभग इस राज्य का स्वामी 'कुषाण' नाम का वीर पुरुष हुआ, जिसके शासन में इस राज्य की बहुत उन्नति हुई। उसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और शक राज्यों पर भी आक्रमण किए।

अनेक इतिहासकारों का मत है, कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम कुजुल कडफ़ाइसिस था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी कुषाण वंशी थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण - यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहलाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है।

कुषाण भी शकों की ही तरह मध्य एशिया से निकाले जाने पर क़ाबुल-कंधार की ओर यहाँ आ गये थे। उस काल में यहाँ के हिन्दी यूनानियों की शक्ति कम हो गई थी, उन्हें कुषाणों ने सरलता से पराजित कर दिया। उसके बाद उन्होंने क़ाबुल-कंधार पर अपना राज्याधिकार कायम किया। उनके प्रथम राजा का नाम कुजुल कडफाइसिस था। उसने क़ाबुल – कंधार के यवनों (हिन्दी यूनानियों) को हरा कर भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बसे हुए पह्लवों को भी पराजित कर दिया। कुषाणों का शासन पश्चिमी पंजाब तक हो गया था। कुजुल के पश्चात उसके पुत्र विम तक्षम ने कुषाण राज्य का और भी अधिक विस्तार किया। भारत की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति का लाभ उठा कर ये लोग आगे बढ़े और उन्होंने हिंद यूनानी शासकों की शक्ति को कमज़ोर कर शुंग साम्राज्य के पश्चिमी भाग को अपने अधिकार में कर लिया। विजित प्रदेश का केन्द्र उन्होंने मथुरा को बनाया, जो उस समय उत्तर भारत के धर्म, कला तथा व्यापारिक यातायात का एक प्रमुख नगर था।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

Template:'

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संभवतः इसी समय से जनपद का नाम भी शूरसेन के स्थान पर 'मथुरा' प्रसिद्ध हो गया।

संबंधित लेख