पद (काव्य)

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पद काव्य रचना की गेय शैली है। इसका विकास लोक गीतों की परंपरा से माना जाता है। यह मात्रिक छन्द की श्रेणी में आता है। प्राय: पदों के साथ किसी न किसी राग का निर्देश मिलता है। पद विशेष को सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है।

  • 'टेक' पद का विशेष अंग है। प्राय: हिन्दी साहित्य में पद शैली की दो परम्पराएँ मिलती हैं। पहली सन्तों के 'सबदों' की दूसरी कृष्ण भक्तों की पद-शैली, जिसका आधार लोक गीतों की शैली होगा।
  • मध्यकालीन समय में भक्ति भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग हुआ।
  • सूरदास का समस्त काव्य-व्यक्तित्व पद शैली से ही निर्मित है। 'सूरसागर' का सम्पूर्ण कवित्वपूर्ण और सजीव भाग पदों में है।
  • परमानन्ददास, नन्ददास, कृष्णदास, मीराबाई, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि के पदों में सूर की मार्मिकता मिलती है।
  • तुलसीदास ने अपनी कूछ रचनाएँ पद शैली में की हैं।
  • वर्तमान में पद शैली का प्रचलन नहीं के बराबर है, परन्तु सामान्य जनता और सुशिक्षित जनों में सामान्य रूप से इनका प्रचार और आकर्षण है।


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