एकलिंग

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उदयपुर से 12 मील पर स्थित है। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। कहा जाता है कि डूंगरपुरराज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। जब विपत्तियों के थपेड़ों से महाराणा प्रताप का धैर्य टूटने जा रहा था तब उन्होंने अकबर के दरबार में रहकर भी राजपूती गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वीराज को, उनके उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से भरे हुए पत्र के उत्तर में जो शब्द लिखे थे वे आज भी अमर हैं-

'तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग'[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (प्रताप के शरीर रहते एकलिंग की सौगंध है, बादशाह अकबर मेरे मुख से तुर्क ही कह लाएगा। आप निश्चित रहें, सूर्य पूर्व में ही उगेगा')

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