रामाश्रयी शाखा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:54, 17 July 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - " शृंगार " to " श्रृंगार ")
Jump to navigation Jump to search

कृष्णभक्ति शाखा के अंतर्गत लीला-पुरुषोत्तम कृष्ण का गान रहा, तो रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि तुलसीदास ने मर्यादा-पुरुषोत्तम राम का ध्यान किया। इसलिए कवि तुलसीदास ने रामचंद्र को आराध्य माना और ‘रामचरितमानस’ से राम-कथा को घर-घर में पहुँचा दिया। तुलसीदास हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। समन्वयवादी तुलसीदास में लोकनायक के सभी गुण मौजूद थे। तुलसीदास की पावन और मधुर वाणी ने जनता के तमाम स्तरों को राममय कर दिया। उस समय की प्रचलित भाषाओं और छंदों में तुलसीदास ने रामकथा लिख दी। जन-मानस के उत्थान में तुलसीदास ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इस शाखा में दूसरा कोई विशेष उल्लेखनीय कवि नहीं हुआ है।

राम की उपासना को निर्गुण संतों ने भी आदर दिया और सगुण भक्तों ने भी। अंतर यह था कि निर्गुण संप्रदाय में निर्गुण निराकार राम की उपासना का प्रचार हुआ और सगुण-रामभक्तों ने उनकी अवतार-लीला को गौरव दिया। उन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित किया। रामभक्ति शाखा में मर्यादावाद का पालन किया गया। दास्य भक्ति को प्रधानता दी गई। इस शाखा में एक रसिक संप्रदाय चल पड़ा। उसमें राम और सीता की शृंगार-लीलाओं का राधा-कृष्ण की श्रृंगार लीलाओं की भांति ही विस्तृत चित्रण किया गया। फिर भी इस शाखा में भगवान के सौंदर्य की अपेक्षा उनके शील और शक्ति का ही निरूपण अधिक किया गया है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः