मधुबनी चित्रकला

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thumb|मधुबनी चित्रकला|250px मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रुप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ों, दीवारों एवं काग़ज़ पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है।

विशेषता

घनी चित्रकारी और उसमें भरे गए चटख रंगों का इंद्रधनुष। न जाने कितने समय से इस कला ने लोगों को आकर्षित किया है। माना जाता है ये चित्रकला राजा जनक ने राम सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाई थी। पहले तो सिर्फ ऊंची जाति की महिलाओं (जैसे ब्राह्मणों) को ही इस कला को बनाने की इजाजत थी लेकिन वक्त के साथ ये सीमाएं भी खत्म हो गईं। आज मिथिलांचल के कई गांवों की महिलाएं इस कला में निपुण हैं। अपने असली रूप में तो ये चित्रकला गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है। इस चित्रकला में खासतौर पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नजारे जैसे- सूर्यचंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे।[1]

प्रकार

मधुबनी चित्रकला दो तरह की होती हैं- भित्ति चित्र और अरिपन या अल्पना। भित्ति चित्र को मिट्टी से पुती दीवारों पर बनाया जाता है। इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- भगवान व विवाहितों के कमरे में और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर। मधुबनी चित्रकला में जिन देवी-देवताओं को दिखाया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मिथिलांचल की विरासत मधुबनी पेंटिंग (हिन्दी) देशबन्धु। अभिगमन तिथि: 8 अक्टूबर, 2012।

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