महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 193-214

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:58, 27 July 2015 by नवनीत कुमार (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 193-214 का हिन्दी अनुवाद

इसी मार्कण्डेय समागम में पुराणों की अनेक कथाएँ, राजा इन्द्रद्युम्न का उपाख्यान तथा धुन्धुमार की कथा भी है। पतिव्रता का और आडिंगरस का उपाख्यान भी इसी प्रसंग में है। द्रौपदी का सत्यभामा के साथ संवाद भी इसी में हैं। तदनन्तर धर्मात्मा पाण्डव पुनः द्वैत-वन में आये। कौरवों ने घोषयात्रा की और गन्धवों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया। वे मन्दमति दुर्योधन को कैद करके लिये जा रहे थे कि अर्जुन ने युद्ध करके उसे छुड़ा लिया। इसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर स्वप्न हरिण के दर्शन हुए। इसके पश्चात पाण्डव गण काम्यक नामक श्रेष्ठ वन में फिर से गये। इसी प्रसंग में अत्यन्त विस्तार के साथ व्रीहिद्रौणिक उपाख्यान भी कहा गया है। इसी में दुर्वासा जी का उपाख्यान और जयद्रथ के द्वारा आश्रम से द्रौपदी के हरण की कथा भी कही गयी है। उस समय महावली भयंकर भीमसेन ने वायुवेग से दौड़कर उसका पीछा किया था तथा जयद्रथ के सिर के सारे बाल मूँडकर उसमें पाँच चोटियाँ रख दी थीं। वन पर्व में बड़े ही विस्तार के साथ रामायण का उपाख्यान है, जिसमें भगवान श्री रामचन्द्र जी ने युद्ध भूमि में अपने पराक्रम से रावण का वध किया है। इसके बाद ही सावित्री का उपाख्यान और इन्द्र के द्वारा कर्ण को कुण्डलों से वंचित कर देने की कथा है। इसी प्रसंग में इन्द्र ने प्रसन्न होकर कर्ण को एक शक्ति दी थी, जिससे कोई भी एक वीर मारा जा सकता था। इसके बाद है आरणेय उपाख्यान, जिसमें धर्मराज ने अपने पुत्र युधिष्ठिर को शिक्षा दी थी। और उनसे वरदान प्राप्त कर पाण्डवों ने पश्चिम दिशा की यात्रा की। यह तीसरे वनपर्व की सूची कही गयी। इस पर्व में गिनकर दो सौ उनहत्तर (269) अध्याय कहे गये हैं। ग्यारह हजार छः सौ चौंसठ (11664) श्लोक इस पर्व में हैं। इसके बाद विराट पर्व की विस्तृत सूची सुनो। पाण्डवों ने विराट नगर में जाकर शमशान के पास एक विशाल शमीका वृक्ष देखा। उसी पर उन्होंने अपने सारे अस्त्र शस्त्र रख दिये। तदनन्तर उन्होंने नगर में प्रवेश किया और छदमवेश में वहाँ निवास करने लगे। कीचक स्वभाव से ही दुष्ट था। द्रौपदी को देखते ही उसका मन काम-बाण से घायल हो गया। वह द्रौपदी के पीछे पड़ गया। इसी अपराध में भीमसेन ने उसे मार डाला। यह कथा इसी पर्व में है। राजा दुर्योधन ने पाण्डवों का पता चलाने के लिये बहुत से निपुण गुप्तचर सब ओर भेजे। परंतु उन्हें महात्मा पाण्डवों की गतिविधि का कोई हाल -चाल न मिला। इन्ही दिनों त्रिगतों ने राजा विराट की गौओं का प्रथम बार अपहरण कर लिया। राजा विराट ने त्रिगतों के साथ रोंगटे खड़े कर देने वाला घमासान युद्ध किया। त्रिगर्त विराट को पकड़कर लिये जा रहे थे, किंतु भीमसेन ने उन्हें छुड़ा लिया। साथ ही पाण्डवों ने उनके गोधन को भी त्रिगतों से छुड़ा लिया। इसके बाद ही कौरवों ने विराट नगर पर चढ़ाई करके उनकी उत्तर दिशा की गायों को लूटना प्रारम्भ कर दिया। इसी अवसर पर किरीटधारी अर्जुन ने अपना पराक्रम प्रकट करके संग्राम भूमि में सम्पूर्ण कौरवों को पराजित कर दिया और विराट के गोधन को लौटा लिया। (पाण्डवों के पहचाने जाने पर) राजा विराट ने अपनी पुत्री उत्तरा शत्रुघाती सुभद्रा नन्दन अभिमन्यु से विवाह करने के लिये पुत्र वधू के रूप में अर्जुन को दे दी।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः