महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 169-192

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:50, 23 June 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 169-192 का हिन्दी अनुवाद

इसी चरित्र में कार्तवीर्य अर्जुन तथा हयवंशी राजाओं के वध का वर्णन किया गया है। प्रभास तीर्थ में पाण्डवों एवं यादवों के मिलने की कथा भी इसी में है। इसके बाद सुकन्या का उपाख्यान है। इसी में यह कथा है कि भृगुनन्दन च्यवन ने शर्याति के यज्ञ में अश्विनी कुमारों को सोमपान का अधिकारी बना दिया। उन्हीं दोनों ने च्यवन मुनि को बूढ़े से जवान बना दिया। राजा मान्धाता की कथा भी इसी पर्व में कहीं गयी है। यहीं जन्तूपाख्यान है। इसमें राजा सोमक ने बहुत से पुत्र प्राप्त करने के लिये एक पुत्र से यजन किया और उसके फलस्वरूप सौ पुत्र प्राप्त किये। इसके बाद श्येन (बाज) और कपोत (कबूतर) का सर्वोत्तम उपाख्यान है। इसमें इन्द्र और अग्नि राजा शिबि के धर्म की परीक्षा लेने के लिये आये हैं। इसी पर्व में अष्टावक्र का चरित्र भी है। जिसमें बन्दी के साथ जनक के यज्ञ में ब्रह्मार्षि अष्टावक्र ने शास्त्रार्थ का वर्णन है। वह बन्दी वरूण का पुत्र था और नैयायिकों में प्रधान था। उसे महात्मा अष्टावक्र ने बन्दी को हराकर समुद्र में डाले हुए अपने पिता को प्राप्त कर लिया। इसके बाद यवक्रीत और महात्मा रैभ्य का उपाख्यान है। तदनन्तर पाण्डवों की गन्धमादन यात्रा और नारायण श्रम में निवास का वर्णन है। द्रौपदी ने सौगन्धिक कमल लाने के लिये भीमसेन को गन्धमादन पर्वत पर भेजा। यात्रा करते समय महाबाहु भीमसेन ने मार्ग में कदली-वन में महावली पवन नन्दन श्रीहनुमान् जी का दर्शन किया। यही सौगन्धिक कमल के लिये भीमसेन ने सरोवर में घुसकर उसे मथ डाला। वहीं भीमसेन का राक्षसों एवं महाशक्तिशाली मणिमान आदि यक्षों के साथ घमासान युद्ध हुआ।

तत्पश्चात् भीमसेन के द्वारा जटासुर राक्षस का वध हुआ। फिर पाण्डव क्रमशः राजर्षि वषपर्वा और आष्टिपेण के आश्रम पर गये और वहीं रहने लगे। यहीं द्रौपदी महात्मा भीमसेन को प्रोत्साहित करती रही। भीमसेन कैलास पर्वत पर चढ़ गये। यहीं अपनी शक्ति के नशे में चूर मणिमान आदि य़क्षों के साथ उनका अत्यन्त घोर युद्ध हुआ। यहीं पाण्डवों का कुबेर के साथ मागम हुआ। इसी स्थान पर अर्जुन आकर अपने भाईयो से मिले। इधर सव्यसाची अर्जुन ने अपने बड़े भाई के लिये दिव्य अस्त्र प्राप्त कर लिये और हिरण्यपुरवासी निवातकवच दानवों के साथ उनका घोर युद्ध हुआ। वहाँ देवताओं के शत्रु भयंकर दानव निवातकवच, पौलोम और कालकेयों के साथ अर्जुन ने जैसा युद्ध किया और जिस प्रकार उन सबका वध हुआ था, वह सब बुद्धिमान अर्जुन ने धर्मराज युधिष्ठिर के पास अपने अस्त्र शस्त्रों का प्रदर्शन करना चाहा। इसी समय देवर्षि नारद ने आकर अर्जुन को अस्त्र प्रदर्शन से रोक दिया। अब पाण्डव गन्धमादन पर्वत से नीचे उतरने लगे। फिर एक बीहड़ वन में पर्वत के समान विशाल शरीरधारी बलवान अजगर ने भीमसेन को पकड़ लिया। धर्मराज युधिष्ठिर ने अजगर-वेशधारी नहुष के प्रश्नों का उत्तर देकर भीमसेन को छुड़ा लिय। इसके बाद महानुभाव पाण्डव पुनः काम्यकवन में आये। जब नरपुगंव पाण्डव काम्यक वन में निवास करने लगे, तब उनसे मिलने के लिये वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण उनके पास आये। यह कथा इसी प्रसंग में कही गयी है। पाण्डवों का महामुनि मार्कण्डेय के साथ समागम हुआ। वहाँ महर्षि ने बहुत से उपाख्यान सुनाये। उनमें वेनपुत्र पृधुका भी उपाख्यान है। इसी प्रसंग में प्रसिद्ध महात्मा महर्षि ताक्ष्र्य और सरस्वती का संवाद है। तदनन्तर मत्स्योपाख्यान भी कहा गया है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः