मुकुट बिहारी लाल भार्गव

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मुकुट बिहारी लाल भार्गव (अंग्रेज़ी: Mukat Behari Lal Bhargava, जन्म- 30 जून, 1903, उदयपुर; मृत्यु- 18 दिसम्बर, 1980, जयपुर) सामाजिक कार्यकर्ता, भारतीय राजनीतिज्ञ, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य तथा 1951 से 1967 तक लोक सभा के सदस्य थे। उन्हें संविधान सभा का भी सदस्य चुना गया था। मुकुट बिहारी लाल ने स्वतंत्रता के बाद तीन चुनावों में अजमेर निर्वाचन क्षेत्र का लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया था।

परिचय

राजस्थान के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता मुकुट बिहारी लाल भार्गव का जन्म 30 जनवरी सन 1903 को राजस्थान की उदयपुर रियासत में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. और एल. एल. बी. करने के बद उन्होंने 1927 में बेवर में वकालत शुरू की। सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू और महात्मा गाँधी के प्रभाव से वे राजबंदियों के मुकदमे निर्भय होकर अपने हाथ में लिया करते थे। 1930 में वे कांग्रेस में सम्मिलित हो गये। ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में उन्होंने जेल की सज़ाएँ भोगीं। 1946 में मुकुट बिहारी लाल भार्गव केंद्रीय असेम्बली और संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने तीन चुनावों में अजमेर निर्वाचन क्षेत्र का लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया। स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान की रियासतों में प्रतिनिधि शासन की स्थापना के लिए भी वे प्रयत्नशील रहे। प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के समर्थक भार्गव जी लोक सभा में प्रभावशाली वक्ता के रूप में जाने जाते थे।

संविधान सभा के सदस्य

मुकुट बिहारी लाल भार्गव के साथ वकालत और राजनीति करने वाले अजमेर के मशहूर वकील सत्यकिशोर सक्सेना के अनुसार- "जब देश के संविधान बनाने को लेकर मंथन चल रहा था, तब भार्गव भी बेहद सक्रिय थे। उस समय संविधान के निर्माण को लेकर अलग-अलग कमेटियां बनाई गईं। चूंकि डॉ. अम्बेडकर युवा और अच्छी अंग्रेज़ी जानने वाले थे, इसलिए संविधान की ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष उन्हें ही बनाया गया। उस समय भार्गव की गिनती भी तेज तर्रार युवा वकीलों में होती थी। लेकिन भार्गव का यह दुर्भाग्य रहा कि देश की आज़ादी के समय उनकी आंखों की रोशनी चली गई।


स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेज़ सरकार ने भार्गव को सेन्ट्रल जेल में बंद कर दिया। तब जेल में चेचक जैसी महामारी फैल गई और समुचित इलाज के अभाव में भार्गव की रोशनी चली गई। लेकिन फिर भी भार्गव की काबिलियत और याददास्त को देखते हुए संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। नेत्रहीन भार्गव ने भी बताया कि देश के संविधान में क्या-क्या होना चाहिए।" वकील सत्यकिशोर सक्सेना यह भी बताते हैं कि भार्गव की याददास्त जबरदस्त थी। अदालत में पैरवी करने से पहले भार्गव अपने जूनियर वकीलों से सुनते थे और फिर अदालत में जाकर मजिस्ट्रेट को बताते थे कि फाइल के किस पन्ने पर क्या लिखा है और संविधान की किस पुस्तक में कौन से पृष्ठ पर क्या बात दर्ज है।[1]

लोक सभा सांसद

देश में पहली बार 1952 में लोक सभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में मुकुट बिहारी लाल भार्गव ही सांसद बने। इसके बाद 1959 और 1962 में भी भार्गव ही सांसद चुने गए। 19671971 के चुनावों में भार्गव जी के भतीजे विश्वेश्वर नाथ भार्गव अजमेर से सांसद बने। चूंकि मुकुट बिहारी लाल भार्गव के अपनी कोई सन्तान नहीं थी, इसलिए अपनी बहन के पुत्र सुरेन्द्र नाथ भार्गव को गोद लिया था। बाद में वही भार्गव हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बने।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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