Difference between revisions of "घरौंदा -रांगेय राघव"

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'''घरौंदा''' प्रसिद्ध साहित्यकार, कहानिकार और उपन्यासकार [[रांगेय राघव]] द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास [[1 जनवरी]], [[2005]] को प्रकाशित हुआ था, और इसे 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस उपन्यास की कथा वस्तु [[भारत]] की स्वतंत्रता के पहले का महाविद्यालयी छात्र जीवन है। तत्कालीन समय की छाप अनेक रंगों की छटाओं में इसमें दिखाई पड़ती है।  
 
'''घरौंदा''' प्रसिद्ध साहित्यकार, कहानिकार और उपन्यासकार [[रांगेय राघव]] द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास [[1 जनवरी]], [[2005]] को प्रकाशित हुआ था, और इसे 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस उपन्यास की कथा वस्तु [[भारत]] की स्वतंत्रता के पहले का महाविद्यालयी छात्र जीवन है। तत्कालीन समय की छाप अनेक रंगों की छटाओं में इसमें दिखाई पड़ती है।  
 
==उपन्यास परिचय==
 
==उपन्यास परिचय==
'घरौदा' नामक यह उपन्यास रांगेय राघव के प्रारंभिक उपन्यासों में से एक है। इस उपन्यास का रचना काल आज से लगभग 75 वर्ष पूर्व का है, परंतु आज के पाठक जिन्होंने भारत के महाविद्यालयों में शिक्षा पाई है, अपनी कुछ यादें इस कहानी से जोड़े बगैर नहीं रह पाएँगे। इसी कारण से उनके इस उपन्यास को कालजयी उपन्यासों की श्रेणी में रखा जा सकता है। रांगेय जी का मानना था कि मात्र कल्पना से ही अच्छा उपन्यास नहीं लिखा जा सकता, उसके लिए लेखक को उपन्यास के बारे में विस्तृत जानकारी अवश्य एकत्र करनी चाहिए। रांगेय जी के इस उपन्यास में वर्णित विस्तृत वर्णन उसे रोचक और पाठक को बाँधे रखने में सफल होता है।
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'घरौदा' नामक यह उपन्यास रांगेय राघव के प्रारंभिक उपन्यासों में से एक है। इस उपन्यास का रचना काल आज से लगभग 75 वर्ष पूर्व का है, परंतु आज के पाठक जिन्होंने भारत के महाविद्यालयों में शिक्षा पाई है, अपनी कुछ यादें इस कहानी से जोड़े बगैर नहीं रह पाएँगे। इसी कारण से उनके इस उपन्यास को कालजयी उपन्यासों की श्रेणी में रखा जा सकता है। रांगेय जी का मानना था कि मात्र कल्पना से ही अच्छा उपन्यास नहीं लिखा जा सकता, उसके लिए लेखक को उपन्यास के बारे में विस्तृत जानकारी अवश्य एकत्र करनी चाहिए। रांगेय जी के इस उपन्यास में वर्णित विस्तृत वर्णन उसे रोचक और पाठक को बाँधे रखने में सफल होता है।<ref name="ab">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/aaj_sirhane/2008/gharonda.htm|title=घरौंदा उपन्यास|accessmonthday=23 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
====कथावस्तु====
 
====कथावस्तु====
 
इस उपन्यास की कथावस्तु देश की स्वतंत्रता के पहले का महाविद्यालयी छात्र जीवन है। तत्कालीन समय की छाप अनेक रंगों की छटाओं में इस कहानी में दिखाई पड़ती है। उपन्यास छात्रावास और कॉलेज के विवरण से आरंभ होता है, और छात्र जीवन की विविधताओं को प्रदर्शित करता हुआ द्वितीय महायुद्ध और [[अंग्रेज़ी शासन]] की छाया में छात्र जीवन को प्रस्तुत करता है। इस कृति में ईसाई मिशनरी का महाविद्यालयों के जीवन में दखल और नियंत्रण भी कई स्थानों पर दिखाई पड़ता है। [[भारत]] में तत्कालीन समाज में [[ईसाई मिशनरी]] द्वारा किस प्रकार [[धर्म]] पर आधारित विभाजन किया जा रहा था, और शिक्षा जगत की राजनीति में उसका प्रभाव किस तरह पड़ता रहा, इसके संकेत भी कई जगह आते हैं।
 
इस उपन्यास की कथावस्तु देश की स्वतंत्रता के पहले का महाविद्यालयी छात्र जीवन है। तत्कालीन समय की छाप अनेक रंगों की छटाओं में इस कहानी में दिखाई पड़ती है। उपन्यास छात्रावास और कॉलेज के विवरण से आरंभ होता है, और छात्र जीवन की विविधताओं को प्रदर्शित करता हुआ द्वितीय महायुद्ध और [[अंग्रेज़ी शासन]] की छाया में छात्र जीवन को प्रस्तुत करता है। इस कृति में ईसाई मिशनरी का महाविद्यालयों के जीवन में दखल और नियंत्रण भी कई स्थानों पर दिखाई पड़ता है। [[भारत]] में तत्कालीन समाज में [[ईसाई मिशनरी]] द्वारा किस प्रकार [[धर्म]] पर आधारित विभाजन किया जा रहा था, और शिक्षा जगत की राजनीति में उसका प्रभाव किस तरह पड़ता रहा, इसके संकेत भी कई जगह आते हैं।
  
इस उपन्यास का नायक गाँव के एक अत्यंत निर्धन परिवार का युवक है, जो छात्रवृत्ति के सहारे उच्च शिक्षा को प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है। परंतु जब उसका परिचय तत्कालीन धनी परिवारों के युवक युवतियों से होता है तो वह एक ऐसी दुनिया में पहुँचता है, जिसमें वह न चाहते हुए भी झंझावात की तरह फँस जाता है। 'घरौंदा' उपन्यास में कॉलेज आदि के कुछ चित्रण वास्तव में अत्यंत सजीव बन पड़े हैं।
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इस उपन्यास का नायक गाँव के एक अत्यंत निर्धन परिवार का युवक है, जो छात्रवृत्ति के सहारे उच्च शिक्षा को प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है। परंतु जब उसका परिचय तत्कालीन धनी परिवारों के युवक युवतियों से होता है तो वह एक ऐसी दुनिया में पहुँचता है, जिसमें वह न चाहते हुए भी झंझावात की तरह फँस जाता है। 'घरौंदा' उपन्यास में कॉलेज आदि के कुछ चित्रण वास्तव में अत्यंत सजीव बन पड़े हैं।<ref name="ab"/>
 
====पात्र====
 
====पात्र====
उपन्यास के कथानक में अनेक पात्र हैं। कथा-नायक का जीवन पूरे उपन्यास के दौरान इधर-उधर हिचकोले खाता है, कभी अपनी पढ़ाई का संघर्ष, तो कभी उसके आस-पास के अन्य छात्रों के बीच साँप-छछूँदर जैसी अवस्था। कहानी के मुख्य पात्रों में से एक कामेश्वर, एक संपन्न परिवार का एम. ए. में पढ़ने वाला ऐसा छात्र है जो कई वर्षों से कॉलेज में डेरा जमाए हुए है। वह एक बिगड़ा हुआ रईसज़ादा है। रानी हेरोल्ड दबाव में आकर ईसाई धर्म स्वीकार कर लेती हैं, लेकिन मन ही मन वह इससे खुश नहीं है। एक स्थान पर वह कहती है- "मैं घृणा के सहारे जिऊँगी, क्योंकि मुझे यही सिखाया गया है। मेरे [[पिता]] धर्म के लिए नहीं, पादरी के सिखावे में आकर धन के लिए ईसाई हुए थे। उसके बाद भी [[अंग्रेज़]] पादरी ने उन्हें कभी बराबरी का दर्ज़ा नहीं दिया। यह ईसा का उपदेश नहीं है।" लवंग जो धनी परिवार की मनमौजी लड़की है, उपन्यास में कभी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, तो कभी दर-किनार हो जाती है। इंदिरा पर लेखक का कुछ विशेष स्नेह रहा है। कहानी में एक मज़बूत आधार प्रधान करने वाला चरित्र इंदिरा का है, जो पाठक को हमेशा भरोसा दिलाए रहता है कि कुछ न कुछ अच्छा होकर रहेगा। कहानी का केंद्र घूमते-घूमते कई पात्रों और परिस्थितियों से होते हुए आखिर एक परिवार और एक घर पर अपनी यात्रा समाप्त करता है। कुल मिलाकर यह एक पठनीय उपन्यास है।
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उपन्यास के कथानक में अनेक पात्र हैं। कथा-नायक का जीवन पूरे उपन्यास के दौरान इधर-उधर हिचकोले खाता है, कभी अपनी पढ़ाई का संघर्ष, तो कभी उसके आस-पास के अन्य छात्रों के बीच साँप-छछूँदर जैसी अवस्था। कहानी के मुख्य पात्रों में से एक कामेश्वर, एक संपन्न परिवार का एम. ए. में पढ़ने वाला ऐसा छात्र है जो कई वर्षों से कॉलेज में डेरा जमाए हुए है। वह एक बिगड़ा हुआ रईसज़ादा है। रानी हेरोल्ड दबाव में आकर ईसाई धर्म स्वीकार कर लेती हैं, लेकिन मन ही मन वह इससे खुश नहीं है। एक स्थान पर वह कहती है- "मैं घृणा के सहारे जिऊँगी, क्योंकि मुझे यही सिखाया गया है। मेरे [[पिता]] धर्म के लिए नहीं, पादरी के सिखावे में आकर धन के लिए ईसाई हुए थे। उसके बाद भी [[अंग्रेज़]] पादरी ने उन्हें कभी बराबरी का दर्ज़ा नहीं दिया। यह ईसा का उपदेश नहीं है।" लवंग जो धनी परिवार की मनमौजी लड़की है, उपन्यास में कभी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, तो कभी दर-किनार हो जाती है। इंदिरा पर लेखक का कुछ विशेष स्नेह रहा है। कहानी में एक मज़बूत आधार प्रधान करने वाला चरित्र इंदिरा का है, जो पाठक को हमेशा भरोसा दिलाए रहता है कि कुछ न कुछ अच्छा होकर रहेगा। कहानी का केंद्र घूमते-घूमते कई पात्रों और परिस्थितियों से होते हुए आखिर एक परिवार और एक घर पर अपनी यात्रा समाप्त करता है। कुल मिलाकर यह एक पठनीय उपन्यास है।<ref name="ab"/>
  
 
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Revision as of 11:25, 23 January 2013

gharauanda -raangey raghav
lekhak raangey raghav
prakashak rajapal eand sans, kashmiri get, dilli
prakashan tithi 1 janavari, 2005
ISBN 9788170282297
desh bharat
prishth: 243
bhasha hindi
prakar upanyas

gharauanda prasiddh sahityakar, kahanikar aur upanyasakar raangey raghav dvara likha gaya upanyas hai. yah upanyas 1 janavari, 2005 ko prakashit hua tha, aur ise 'rajapal eand sans' prakashan dvara prakashit kiya gaya tha. is upanyas ki katha vastu bharat ki svatantrata ke pahale ka mahavidyalayi chhatr jivan hai. tatkalin samay ki chhap anek rangoan ki chhataoan mean isamean dikhaee p dati hai.

upanyas parichay

'gharauda' namak yah upanyas raangey raghav ke praranbhik upanyasoan mean se ek hai. is upanyas ka rachana kal aj se lagabhag 75 varsh poorv ka hai, parantu aj ke pathak jinhoanne bharat ke mahavidyalayoan mean shiksha paee hai, apani kuchh yadean is kahani se jo de bagair nahian rah paeange. isi karan se unake is upanyas ko kalajayi upanyasoan ki shreni mean rakha ja sakata hai. raangey ji ka manana tha ki matr kalpana se hi achchha upanyas nahian likha ja sakata, usake lie lekhak ko upanyas ke bare mean vistrit janakari avashy ekatr karani chahie. raangey ji ke is upanyas mean varnit vistrit varnan use rochak aur pathak ko baandhe rakhane mean saphal hota hai.[1]

kathavastu

is upanyas ki kathavastu desh ki svatantrata ke pahale ka mahavidyalayi chhatr jivan hai. tatkalin samay ki chhap anek rangoan ki chhataoan mean is kahani mean dikhaee p dati hai. upanyas chhatravas aur k aaulej ke vivaran se aranbh hota hai, aur chhatr jivan ki vividhataoan ko pradarshit karata hua dvitiy mahayuddh aur aangrezi shasan ki chhaya mean chhatr jivan ko prastut karata hai. is kriti mean eesaee mishanari ka mahavidyalayoan ke jivan mean dakhal aur niyantran bhi kee sthanoan par dikhaee p data hai. bharat mean tatkalin samaj mean eesaee mishanari dvara kis prakar dharm par adharit vibhajan kiya ja raha tha, aur shiksha jagat ki rajaniti mean usaka prabhav kis tarah p data raha, isake sanket bhi kee jagah ate haian.

is upanyas ka nayak gaanv ke ek atyant nirdhan parivar ka yuvak hai, jo chhatravritti ke sahare uchch shiksha ko prapt karane ki akaanksha rakhata hai. parantu jab usaka parichay tatkalin dhani parivaroan ke yuvak yuvatiyoan se hota hai to vah ek aisi duniya mean pahuanchata hai, jisamean vah n chahate hue bhi jhanjhavat ki tarah phans jata hai. 'gharauanda' upanyas mean k aaulej adi ke kuchh chitran vastav mean atyant sajiv ban p de haian.[1]

patr

upanyas ke kathanak mean anek patr haian. katha-nayak ka jivan poore upanyas ke dauran idhar-udhar hichakole khata hai, kabhi apani padhaee ka sangharsh, to kabhi usake as-pas ke any chhatroan ke bich saanp-chhachhooandar jaisi avastha. kahani ke mukhy patroan mean se ek kameshvar, ek sanpann parivar ka em. e. mean padhane vala aisa chhatr hai jo kee varshoan se k aaulej mean dera jamae hue hai. vah ek big da hua reesazada hai. rani herold dabav mean akar eesaee dharm svikar kar leti haian, lekin man hi man vah isase khush nahian hai. ek sthan par vah kahati hai- "maian ghrina ke sahare jiooangi, kyoanki mujhe yahi sikhaya gaya hai. mere pita dharm ke lie nahian, padari ke sikhave mean akar dhan ke lie eesaee hue the. usake bad bhi aangrez padari ne unhean kabhi barabari ka darza nahian diya. yah eesa ka upadesh nahian hai." lavang jo dhani parivar ki manamauji l daki hai, upanyas mean kabhi bahut mahatvapoorn ho jati hai, to kabhi dar-kinar ho jati hai. iandira par lekhak ka kuchh vishesh sneh raha hai. kahani mean ek mazaboot adhar pradhan karane vala charitr iandira ka hai, jo pathak ko hamesha bharosa dilae rahata hai ki kuchh n kuchh achchha hokar rahega. kahani ka keandr ghoomate-ghoomate kee patroan aur paristhitiyoan se hote hue akhir ek parivar aur ek ghar par apani yatra samapt karata hai. kul milakar yah ek pathaniy upanyas hai.[1]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. 1.0 1.1 1.2 gharauanda upanyas (hindi). . abhigaman tithi: 23 janavari, 2013.

bahari k diyaan

sanbandhit lekh