Difference between revisions of "कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी"
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− | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कौऔं का वायरस</font></div><br /> | + | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] <br /> |
+ | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | ||
+ | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>कौऔं का वायरस<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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− | एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी की ट्रेनिंग देते हुए गूढ़-ज्ञान की बातें बता रहा था। "सुनो ध्यान से! भगवान ने हमको ही सबसे ज़्यादा चालाक बनाया हो ऐसा नहीं है। असल में दूसरी तरह के कौए हमसे भी ज़्यादा चालाक हैं और हमको चैन से खाने-पीने और जीने नहीं देते। हमारी जान इसीलिए बची हुई है कि हमने जान बचाने की आदत डाल रखी है। इन ख़तरनाक कौऔं से बचने के लिए एक बहुत ज़रूरी आदत तुमको डालनी ही होगी। हमेशा-हमेशा याद रखो! अगर इस | + | एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी की ट्रेनिंग देते हुए गूढ़-ज्ञान की बातें बता रहा था। "सुनो ध्यान से! भगवान ने हमको ही सबसे ज़्यादा चालाक बनाया हो ऐसा नहीं है। असल में दूसरी तरह के कौए हमसे भी ज़्यादा चालाक हैं और हमको चैन से खाने-पीने और जीने नहीं देते। हमारी जान इसीलिए बची हुई है कि हमने जान बचाने की आदत डाल रखी है। इन ख़तरनाक कौऔं से बचने के लिए एक बहुत ज़रूरी आदत तुमको डालनी ही होगी। हमेशा-हमेशा याद रखो! अगर इस दुनिया में ''सरवाइव'' करना है तो जान बचाने की आदत डाल लेनी चाहिए, तो जान बचाने के लिए... " |
"ओ.के. डॅडी! हम समझ गए! इतना डिटेल में क्यों जा रहे हैं? सीधे-सीधे काम की बात बताइए, वो कौन सी आदत है?" बच्चे ने बात बीच में ही काटी। | "ओ.के. डॅडी! हम समझ गए! इतना डिटेल में क्यों जा रहे हैं? सीधे-सीधे काम की बात बताइए, वो कौन सी आदत है?" बच्चे ने बात बीच में ही काटी। | ||
"अबे ओ 'थ्री ईडियट्स' के 'रॅन्चो'!" कौआ 'प्रिंसीपल वायरस' की तरह ही दहाड़ा "चुपचाप बात समझने की कोशिश करो..." कौए ने बच्चों को ग़ुस्से से घूरा और फिर दूर से उनकी ओर आते हुए एक आदमी की ओर इशारा किया और आगे बोला- | "अबे ओ 'थ्री ईडियट्स' के 'रॅन्चो'!" कौआ 'प्रिंसीपल वायरस' की तरह ही दहाड़ा "चुपचाप बात समझने की कोशिश करो..." कौए ने बच्चों को ग़ुस्से से घूरा और फिर दूर से उनकी ओर आते हुए एक आदमी की ओर इशारा किया और आगे बोला- | ||
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"वो जो तुम दो पैरों पर चलता हुआ कौआ देख रहे हो। वो हमसे ज़्यादा चालाक कौआ है। कौए की इस नस्ल को 'आदमी' कहते हैं। अब जैसे ही ये पत्थर उठाने के लिए नीचे झुके तो तुमको फ़ौरन उड़ जाना चाहिए वरना गए जान से... समझ गये!" | "वो जो तुम दो पैरों पर चलता हुआ कौआ देख रहे हो। वो हमसे ज़्यादा चालाक कौआ है। कौए की इस नस्ल को 'आदमी' कहते हैं। अब जैसे ही ये पत्थर उठाने के लिए नीचे झुके तो तुमको फ़ौरन उड़ जाना चाहिए वरना गए जान से... समझ गये!" | ||
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"तुमको किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं है... कमबख़्तों! तुम इस आदत को अण्डे से ही लेकर आए हो।" | "तुमको किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं है... कमबख़्तों! तुम इस आदत को अण्डे से ही लेकर आए हो।" | ||
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ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म होता है लेकिन एक सवाल पैदा होता है कि कोई आदत कितने वक़्त में पड़ जाती है? तो जवाब है '23 दिन'। ये इस क्षेत्र के विद्वानों का अध्ययन है कि 23 दिनों तक लगातार कोई कार्य, किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती है और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है। | ये क़िस्सा तो यहीं ख़त्म होता है लेकिन एक सवाल पैदा होता है कि कोई आदत कितने वक़्त में पड़ जाती है? तो जवाब है '23 दिन'। ये इस क्षेत्र के विद्वानों का अध्ययन है कि 23 दिनों तक लगातार कोई कार्य, किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती है और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है। | ||
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दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है। | दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है। | ||
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यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ''ऍमिग्डाला'' (''Amygdala'') कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ''ऍमिग्डाला'' की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब ''इमोशनल इंटेलीजेन्स'' में बहुत अच्छी तरह समझाया है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=OgXxhmGiRB0C&dq=emotional+intelligence+goleman&hl=en&sa=X&ei=jRROT4j-A4TkrAeM1qS1Dw&redir_esc=y 'इमोशनल इंटेलीजेन्स' लेखक- डेनियल गोलमॅन]</ref> | यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ''ऍमिग्डाला'' (''Amygdala'') कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ''ऍमिग्डाला'' की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब ''इमोशनल इंटेलीजेन्स'' में बहुत अच्छी तरह समझाया है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=OgXxhmGiRB0C&dq=emotional+intelligence+goleman&hl=en&sa=X&ei=jRROT4j-A4TkrAeM1qS1Dw&redir_esc=y 'इमोशनल इंटेलीजेन्स' लेखक- डेनियल गोलमॅन]</ref> | ||
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ज़िंदगी भर हम आदतों के आधीन रह कर जीवन जीते हैं। कुछ कार्य आदत बना लेने से ही हो पाते हैं, जैसे कि पढ़ाई और कसरत। छात्रों को अपनी परीक्षा में अच्छे अंक लाने की इच्छा होना स्वाभाविक ही है लेकिन वे पढ़ाई को आदत बनाना नहीं सीख पाते, इसलिए सारी गड़बड़ होती है। शारीरिक व्यायाम की बात भी कुछ ऐसी ही है। अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक 'इरविंग वॉलिस' की किताब ''द बुक ऑफ़ लिस्ट्स''<ref> | ज़िंदगी भर हम आदतों के आधीन रह कर जीवन जीते हैं। कुछ कार्य आदत बना लेने से ही हो पाते हैं, जैसे कि पढ़ाई और कसरत। छात्रों को अपनी परीक्षा में अच्छे अंक लाने की इच्छा होना स्वाभाविक ही है लेकिन वे पढ़ाई को आदत बनाना नहीं सीख पाते, इसलिए सारी गड़बड़ होती है। शारीरिक व्यायाम की बात भी कुछ ऐसी ही है। अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक 'इरविंग वॉलिस' की किताब ''द बुक ऑफ़ लिस्ट्स''<ref> | ||
− | [http://www.amazon.com/Peoples-Almanac-Presents-Book-Lists/dp/0688031838/ref=pd_sim_b_3 'द बुक ऑफ़ लिस्ट्स' लेखक- इरविंग वॉलिस आदि]</ref> में | + | [http://www.amazon.com/Peoples-Almanac-Presents-Book-Lists/dp/0688031838/ref=pd_sim_b_3 'द बुक ऑफ़ लिस्ट्स' लेखक- इरविंग वॉलिस आदि]</ref> में दुनिया भर की अनोखी सूचियाँ हैं और एक सूची उबाऊ कार्यों की भी है। सबसे उबाऊ कार्य वे माने गए हैं जो घरेलू कार्य हैं जैसे- झाड़ू-पौछा, कपड़े-बर्तन धोना आदि। (महिलाओं से क्षमा याचना क्योंकि अक्सर ये कार्य महिलाओं के हिस्से में ही आते हैं) दुनिया के सबसे उबाऊ काम फिर भी वे नहीं हैं जो अभी मैंने बताए बल्कि सूची में सबसे ऊपर 'कसरत' है। |
जिस तरह पान मसालों के विज्ञापनों में आता है कि "क्योंकि स्वाद बड़ी चीज़ है" या "शौक़ बड़ी चीज़ है" इसी तरह याद रखिए कि 'आदत' बड़ी चीज़ है। सिर्फ़ 23 दिन सुबह जल्दी उठ लीजिए फिर ज़िन्दगी भर अपने आप जल्दी उठेंगे। | जिस तरह पान मसालों के विज्ञापनों में आता है कि "क्योंकि स्वाद बड़ी चीज़ है" या "शौक़ बड़ी चीज़ है" इसी तरह याद रखिए कि 'आदत' बड़ी चीज़ है। सिर्फ़ 23 दिन सुबह जल्दी उठ लीजिए फिर ज़िन्दगी भर अपने आप जल्दी उठेंगे। | ||
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Latest revision as of 13:54, 15 July 2013
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|fesabuk par bharatakosh (nee shuruat) bharatakosh kauauan ka vayaras -adity chaudhari ek bahut hi sayana kaua apane tin bachchoan ko duniyadari ki treniang dete hue goodh-jnan ki batean bata raha tha. "suno dhyan se! bhagavan ne hamako hi sabase zyada chalak banaya ho aisa nahian hai. asal mean doosari tarah ke kaue hamase bhi zyada chalak haian aur hamako chain se khane-pine aur jine nahian dete. hamari jan isilie bachi huee hai ki hamane jan bachane ki adat dal rakhi hai. in khataranak kauauan se bachane ke lie ek bahut zaroori adat tumako dalani hi hogi. hamesha-hamesha yad rakho! agar is duniya mean saravaiv karana hai to jan bachane ki adat dal leni chahie, to jan bachane ke lie... " |
tika tippani aur sandarbh