Difference between revisions of "कर्षापण"

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[[चित्र:Karshapana-Maghada.jpg|thumb|250px|[[मगध]] में प्रचलित कर्षापण]]
 
[[चित्र:Karshapana-Maghada.jpg|thumb|250px|[[मगध]] में प्रचलित कर्षापण]]
'''कर्षापण''' प्राचीन समय में प्रयुक्त होने वाला [[स्वर्ण]] का सिक्का था। [[जातक कथा|जातकों]] से यह सिद्ध होता है कि [[बुद्ध]] के समय में सिक्कों का प्रचलन हो चुका था। इन सिक्कों को निष्क, कर्षापण तथा सुवर्ण, कंस, पाद आदि कहा जाता था। सम्राट नहपान के समय में स्वर्ण कर्षापण का विनिमय दर 1:35 था।
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'''कर्षापण''' प्राचीन समय में प्रयुक्त होने वाला [[स्वर्ण]] का सिक्का था। [[जातक कथा|जातकों]] से यह सिद्ध होता है कि [[बुद्ध]] के समय में सिक्कों का प्रचलन हो चुका था। इन सिक्कों को '''निष्क, कर्षापण तथा सुवर्ण, कंस, पाद, मास-मासक और काकणिक''' कहा जाता था। सम्राट [[नहपान]] के समय में स्वर्ण कर्षापण का विनिमय दर 1:35 था।
 
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==जातक ग्रंथों में उल्लेख==
महात्मा बुद्ध के समय में अत्यन्त प्राचीन काल से चली वस्तु विनिमय प्रणाली थोड़ी बहुत मात्रा में प्रचलित थी, ऐसा जातक ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है। चूॅंकि बौद्ध भिक्षु अर्थ संग्रह और उसका स्पर्श नहीं करते थे। विनिमय करते थे। इस साधन को ही वे ज्यादातर अपनाते थे। जातकों के काल तक [[चावल]] का एक परिणाम वस्तुओं के विनिमय के रूप मेें प्रचलित था। किन्तु बुद्धकाल में सिक्कों के प्रचलन का पक्का प्रमाण मिलता है और कई अवसरों पर ऐसा प्रतीत होता है कि सिक्कों के रूप में अनेक वस्तुओं के मूल्य निश्चित हुआ करते थे। जातकों के अध्ययन से भी यह सिद्ध होता है कि उस समय सिक्कों का प्रचलन हो चुका था। इन सिक्कों को 'निक्ख' (निष्क), 'कहापण' (कर्षापण), 'सुवण्ण' (सुवर्ण), 'कंस', 'पाद', 'मास-मासक' और 'काकणिक' कहा जाता था। इसमेें निष्क सोने का सिक्का था, जो प्रारम्भ मेें एक [[आभूषण]] के रूप में भी प्रयुक्त होता था। सुवर्ण जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि यह सोने का सिक्का था। सम्भवतः इसे ही 'हिरण्य' भी कहते थे। यद्यपि [[प्रसेनजित]], [[बिम्बिसार|विम्बसार]] और [[अजातशत्रु]] के समय ढप्पेदार सिक्के प्राप्त होते हैं; परन्तु अभी तक 'सुत्तपिटक' में चर्चित इन राजाओं के सोने के सिक्के का ज्ञान नहीं है। परन्तु पाणिनी ने (550 ई. पू.) कर्षापण और शतमान जैसे सोने के सिक्के का उल्लेख किया है। इन सिक्कों का पारस्परिक मूल्यमान क्या था, यह निश्चित करना कठिन है। 'विनयपिटक' में वर्णन मिलता है कि अजातशत्रु और विम्बसार के समय राजग्रह मेें 5 पाँच मासे का एक पद होता था और 5 सुवर्ण के बराबर एक [[निष्क]] होता था।<ref>{{cite web |url=http://shriprbhu.blogspot.in/2011/07/blog-post_32.html |title=जातक ग्रन्थों में वर्णित महात्माबुद्ध कालीन भारत में विनिमय के साधन एवं मुद्रायें |accessmonthday=23 अगस्त |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=shriprbhu.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref>
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[[जातक कथा|जातक]] ग्रन्थों के अनुसार [[बुद्ध]] के समय का सर्वाधिक प्रचलित सिक्का 'कर्षापण' अथवा 'कहापण' कहलता था। कर्षापण [[चाँदी]] या [[ताँबा|ताॅंबे]] का सिक्का था, यह निश्चित बताना कठिन है। जातक अटठ्कथा के अनुसार एक कहापण (कर्षापण) 20 मासे का होता था। बुुद्धघोष का कहना है कि कर्षापण चाँदी का सिक्का होता था।
 
 
जातक ग्रन्थों के अनुसार [[बुद्ध]] के समय का सर्वाधिक प्रचलित सिक्का कर्षापण अथवा कहापण कहलता था। कर्षापण [[चाँदी]] या ताॅंबे का सिक्का था, यह निश्चित बताना कठिन है। जातक अटठ्कथा के अनुसार एक कहापण (कर्षापण) 20 मासे का होता था। बुुद्धघोष का कहना है कि कर्षापण चाॅंदी का सिक्का होता था।
 
  
 
‘रजत वुच्चति कहापणो’
 
‘रजत वुच्चति कहापणो’
  
 
जातकों से यह प्रतीत होता है कि कर्षापण चाँदी या ताँबे का सिक्का रहा होगा तथा कर्षापणों से प्रायः अनेक वस्तुओं की कीमत तय होती थी। उदाहरणार्थ ‘गामणीचण्ड’ जातक से पता चलता है कि एक जोड़ी बैल की कीमत 24 कर्षापण थी तथा एक गघे का मूल्य प्रायः 8 कर्षापण होता था। 'कुण्डक कुच्छि' जातक में वर्णन मिलता है कि अच्छी जाति के घोड़े की कीमत प्रायः एक हज़ार के 6 हज़ार कर्षापण तक होती थी। 'महावेस्सन्तर' जातक में [[काशी]] के बहुमूल्य वस्त्रों की कीमत एक लाख कर्षापण बतायी गई है। अच्छी नस्ल के कुत्ते का मूल्य एक कर्षापण था। 'कण्ह' जातक में काशी के व्यापारी ने 500 गाड़ियों का मरूस्थल पार करने के लिए प्रति बैल दो कर्षापण दिये तथा अर्घमासक या मासक एक दैनिक मजदूर की मजदूरी होती थी।
 
जातकों से यह प्रतीत होता है कि कर्षापण चाँदी या ताँबे का सिक्का रहा होगा तथा कर्षापणों से प्रायः अनेक वस्तुओं की कीमत तय होती थी। उदाहरणार्थ ‘गामणीचण्ड’ जातक से पता चलता है कि एक जोड़ी बैल की कीमत 24 कर्षापण थी तथा एक गघे का मूल्य प्रायः 8 कर्षापण होता था। 'कुण्डक कुच्छि' जातक में वर्णन मिलता है कि अच्छी जाति के घोड़े की कीमत प्रायः एक हज़ार के 6 हज़ार कर्षापण तक होती थी। 'महावेस्सन्तर' जातक में [[काशी]] के बहुमूल्य वस्त्रों की कीमत एक लाख कर्षापण बतायी गई है। अच्छी नस्ल के कुत्ते का मूल्य एक कर्षापण था। 'कण्ह' जातक में काशी के व्यापारी ने 500 गाड़ियों का मरूस्थल पार करने के लिए प्रति बैल दो कर्षापण दिये तथा अर्घमासक या मासक एक दैनिक मजदूर की मजदूरी होती थी।
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==बुद्धकाल में प्रचलन==
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महात्मा बुद्ध के समय में अत्यन्त प्राचीन काल से चली वस्तु विनिमय प्रणाली थोड़ी बहुत मात्रा में प्रचलित थी, ऐसा जातक ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है। चूॅंकि बौद्ध [[भिक्कु|भिक्षु]] अर्थ संग्रह और उसका स्पर्श नहीं करते थे। विनिमय करते थे। इस साधन को ही वे ज्यादातर अपनाते थे। जातकों के काल तक [[चावल]] का एक परिणाम वस्तुओं के विनिमय के रूप मेें प्रचलित था। किन्तु बुद्धकाल में सिक्कों के प्रचलन का पक्का प्रमाण मिलता है और कई अवसरों पर ऐसा प्रतीत होता है कि सिक्कों के रूप में अनेक वस्तुओं के मूल्य निश्चित हुआ करते थे। जातकों के अध्ययन से भी यह सिद्ध होता है कि उस समय सिक्कों का प्रचलन हो चुका था। इन सिक्कों को 'निक्ख' (निष्क), 'कहापण' (कर्षापण), 'सुवण्ण' (सुवर्ण), 'कंस', 'पाद', 'मास-मासक' और 'काकणिक' कहा जाता था। इसमेें निष्क सोने का सिक्का था, जो प्रारम्भ मेें एक [[आभूषण]] के रूप में भी प्रयुक्त होता था। सुवर्ण जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि यह सोने का सिक्का था। सम्भवतः इसे ही 'हिरण्य' भी कहते थे। यद्यपि [[प्रसेनजित]], [[बिम्बिसार|विम्बसार]] और [[अजातशत्रु]] के समय ढप्पेदार सिक्के प्राप्त होते हैं; परन्तु अभी तक '[[सुत्तपिटक]]' में चर्चित इन राजाओं के सोने के सिक्के का ज्ञान नहीं है। परन्तु [[पाणिनी]] ने (550 ई. पू.) कर्षापण और शतमान जैसे सोने के सिक्के का उल्लेख किया है। इन सिक्कों का पारस्परिक मूल्यमान क्या था, यह निश्चित करना कठिन है। '[[विनयपिटक]]' में वर्णन मिलता है कि अजातशत्रु और विम्बसार के समय [[राजगृह]] मेें 5 पाँच मासे का एक पद होता था और 5 सुवर्ण के बराबर एक [[निष्क]] होता था।<ref>{{cite web |url=http://shriprbhu.blogspot.in/2011/07/blog-post_32.html |title=जातक ग्रन्थों में वर्णित महात्माबुद्ध कालीन भारत में विनिमय के साधन एवं मुद्रायें |accessmonthday=23 अगस्त |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=shriprbhu.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref>
  
  
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==वीथिका==
 
==वीथिका==
 
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चित्र:Karshapana-Maurya-Bindusara.jpg|राजा मौर्य बिंदुसारा के समय में प्रचलित कर्षापण
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चित्र:Karshapana-Maurya-Bindusara.jpg|मौर्य [[बिन्दुसार|राजा बिन्दुसार]] के समय में प्रचलित कर्षापण
 
चित्र:Karshapana-Ujjain.jpg|[[उज्जैन]] में प्रचलित कर्षापण
 
चित्र:Karshapana-Ujjain.jpg|[[उज्जैन]] में प्रचलित कर्षापण
 
चित्र:Karshapana-Panchala.jpg|[[पांचाल]] में प्रचलित कर्षापण
 
चित्र:Karshapana-Panchala.jpg|[[पांचाल]] में प्रचलित कर्षापण
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चित्र:Pushkalavati-Karshapana.jpg|पुष्कलावटी में प्रचलित कर्षापण
 
चित्र:Pushkalavati-Karshapana.jpg|पुष्कलावटी में प्रचलित कर्षापण
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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Revision as of 12:53, 23 August 2016

[[chitr:Karshapana-Maghada.jpg|thumb|250px|magadh mean prachalit karshapan]] karshapan prachin samay mean prayukt hone vala svarn ka sikka tha. jatakoan se yah siddh hota hai ki buddh ke samay mean sikkoan ka prachalan ho chuka tha. in sikkoan ko nishk, karshapan tatha suvarn, kans, pad, mas-masak aur kakanik kaha jata tha. samrat nahapan ke samay mean svarn karshapan ka vinimay dar 1:35 tha.

jatak granthoan mean ullekh

jatak granthoan ke anusar buddh ke samay ka sarvadhik prachalit sikka 'karshapan' athava 'kahapan' kahalata tha. karshapan chaandi ya taॅanbe ka sikka tha, yah nishchit batana kathin hai. jatak atathkatha ke anusar ek kahapan (karshapan) 20 mase ka hota tha. buuddhaghosh ka kahana hai ki karshapan chaandi ka sikka hota tha.

‘rajat vuchchati kahapano’

jatakoan se yah pratit hota hai ki karshapan chaandi ya taanbe ka sikka raha hoga tatha karshapanoan se prayah anek vastuoan ki kimat tay hoti thi. udaharanarth ‘gamanichand’ jatak se pata chalata hai ki ek jo di bail ki kimat 24 karshapan thi tatha ek gaghe ka mooly prayah 8 karshapan hota tha. 'kundak kuchchhi' jatak mean varnan milata hai ki achchhi jati ke gho de ki kimat prayah ek hazar ke 6 hazar karshapan tak hoti thi. 'mahavessantar' jatak mean kashi ke bahumooly vastroan ki kimat ek lakh karshapan batayi gee hai. achchhi nasl ke kutte ka mooly ek karshapan tha. 'kanh' jatak mean kashi ke vyapari ne 500 ga diyoan ka maroosthal par karane ke lie prati bail do karshapan diye tatha arghamasak ya masak ek dainik majadoor ki majadoori hoti thi.

buddhakal mean prachalan

mahatma buddh ke samay mean atyant prachin kal se chali vastu vinimay pranali tho di bahut matra mean prachalit thi, aisa jatak granthoan ke adhyayan se pata chalata hai. chooॅanki bauddh bhikshu arth sangrah aur usaka sparsh nahian karate the. vinimay karate the. is sadhan ko hi ve jyadatar apanate the. jatakoan ke kal tak chaval ka ek parinam vastuoan ke vinimay ke roop meean prachalit tha. kintu buddhakal mean sikkoan ke prachalan ka pakka praman milata hai aur kee avasaroan par aisa pratit hota hai ki sikkoan ke roop mean anek vastuoan ke mooly nishchit hua karate the. jatakoan ke adhyayan se bhi yah siddh hota hai ki us samay sikkoan ka prachalan ho chuka tha. in sikkoan ko 'nikkh' (nishk), 'kahapan' (karshapan), 'suvann' (suvarn), 'kans', 'pad', 'mas-masak' aur 'kakanik' kaha jata tha. isameean nishk sone ka sikka tha, jo prarambh meean ek abhooshan ke roop mean bhi prayukt hota tha. suvarn jaisa ki nam se spasht hai ki yah sone ka sikka tha. sambhavatah ise hi 'hirany' bhi kahate the. yadyapi prasenajit, vimbasar aur ajatashatru ke samay dhappedar sikke prapt hote haian; parantu abhi tak 'suttapitak' mean charchit in rajaoan ke sone ke sikke ka jnan nahian hai. parantu panini ne (550 ee. poo.) karshapan aur shataman jaise sone ke sikke ka ullekh kiya hai. in sikkoan ka parasparik moolyaman kya tha, yah nishchit karana kathin hai. 'vinayapitak' mean varnan milata hai ki ajatashatru aur vimbasar ke samay rajagrih meean 5 paanch mase ka ek pad hota tha aur 5 suvarn ke barabar ek nishk hota tha.[1]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

vithika

tika tippani aur sandarbh

  1. jatak granthoan mean varnit mahatmabuddh kalin bharat mean vinimay ke sadhan evan mudrayean (hindi) shriprbhu.blogspot.in. abhigaman tithi: 23 agast, 2016.

sanbandhit lekh