Difference between revisions of "अभिभावक -आदित्य चौधरी"
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एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। | एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। | ||
− | इसके बावजूद भी स्कूल कॉलेजों में दाख़िले के लिए जो मारा-मारी होती है उससे हम सभी गुज़र चुके हैं। आइए इस विषय पर एक व्यंग्य पढ़ें जो मैंने 1993 के आस-पास लिखा था ( ऊपर लिखे | + | इसके बावजूद भी स्कूल कॉलेजों में दाख़िले के लिए जो मारा-मारी होती है उससे हम सभी गुज़र चुके हैं। आइए इस विषय पर एक व्यंग्य पढ़ें जो मैंने 1993 के आस-पास लिखा था ( ऊपर लिखे आँकड़ों को छोड़कर ) लेकिन लगता है जैसे आज ही लिखा हो… |
पुराने समय में, हमारे स्कूल, देश को मेधावी छात्राएँ-छात्र देते थे। आजकल स्कूल देश को मेधावी अभिभावक याने ‘पेरेन्ट्स’ देते हैं। पहले बच्चे को पहली बार स्कूल में एडमीशन के लिए ले जाते वक़्त नए-नए माता-पिता बड़ी ख़ुशी से हाथ में हाथ डालकर सीटी बजाते हुए स्कूल में घुसते हैं और जब वापस लौटते हैं तो बेचारे अभिभावक बन चुके होते हैं। बड़ा ही कारूणिक दृश्य होता है। पिता अभिभावक के बाल बिखरे होते हैं और कमीज़ एक तरफ़ से पैन्ट के बाहर निकली होती है। दोनों कान एल्सेशियनिज़्म से रिक्त देशी कुत्तों की तरह लटक जाते हैं। माता अभिभावक का पर्स पिता अभिभावक के मुँह की तरह खुला रह जाता है। साड़ी के पल्लू से सिर ढँक जाता है, चुटिया मरी साँपिन-सी लटक जाती है। दोनों अभिभावक अबला नारी और निर्बल नर के रूप में लौटते हैं और उनका सारा उत्साह ठण्डा हो जाता है। बच्चे को स्कूल भेजने की सारी ख़ुशी हवा हो जाती है। इसके बाद वे अपना शेष जीवन अभिभावकी में ही गुज़ारते हैं। क्या कमाल है, एक झटके में अच्छा ख़ासा इंसान अभिभावक बन कर रह जाता है। | पुराने समय में, हमारे स्कूल, देश को मेधावी छात्राएँ-छात्र देते थे। आजकल स्कूल देश को मेधावी अभिभावक याने ‘पेरेन्ट्स’ देते हैं। पहले बच्चे को पहली बार स्कूल में एडमीशन के लिए ले जाते वक़्त नए-नए माता-पिता बड़ी ख़ुशी से हाथ में हाथ डालकर सीटी बजाते हुए स्कूल में घुसते हैं और जब वापस लौटते हैं तो बेचारे अभिभावक बन चुके होते हैं। बड़ा ही कारूणिक दृश्य होता है। पिता अभिभावक के बाल बिखरे होते हैं और कमीज़ एक तरफ़ से पैन्ट के बाहर निकली होती है। दोनों कान एल्सेशियनिज़्म से रिक्त देशी कुत्तों की तरह लटक जाते हैं। माता अभिभावक का पर्स पिता अभिभावक के मुँह की तरह खुला रह जाता है। साड़ी के पल्लू से सिर ढँक जाता है, चुटिया मरी साँपिन-सी लटक जाती है। दोनों अभिभावक अबला नारी और निर्बल नर के रूप में लौटते हैं और उनका सारा उत्साह ठण्डा हो जाता है। बच्चे को स्कूल भेजने की सारी ख़ुशी हवा हो जाती है। इसके बाद वे अपना शेष जीवन अभिभावकी में ही गुज़ारते हैं। क्या कमाल है, एक झटके में अच्छा ख़ासा इंसान अभिभावक बन कर रह जाता है। | ||
एक अच्छे स्कूल में आप अपने बच्चे का एडमीशन करा चुके हैं और आपको “कुछ” नहीं हुआ है तो आप बधाई के पात्र हैं। एक से ज़्यादा बच्चों का एडमीशन करा चुके हैं तो आप सहज ही ‘पद्मश्री’ के दावेदार बन गए हैं। आज की दुनिया में शहर में रहने वाले इंसान का सबसे बड़ा सपना होता है, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना। आप चाहे जहाँ कहीं किसी को भी रास्ते में रोककर पूछ सकते हैं कि “आप के जीवन का उद्देश्य क्या है?” हमेशा एक ही उत्तर मिलेगा “बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना।“ हाँ यह बात अलग है कि इस उत्तर को देने वाला व्यक्ति उत्तर देते वक़्त व्यवहार क्या करता है। मैंने भी यही सवाल एक दोस्त से किया। पहले तो उसने मेरी तरफ़ आश्चर्य से ऐसे देखा जैसे मैंने कोई बेहद निरर्थक क़िस्म का सवाल किया है, फिर सजल नेत्रों से भर्राए गले के साथ बोला- | एक अच्छे स्कूल में आप अपने बच्चे का एडमीशन करा चुके हैं और आपको “कुछ” नहीं हुआ है तो आप बधाई के पात्र हैं। एक से ज़्यादा बच्चों का एडमीशन करा चुके हैं तो आप सहज ही ‘पद्मश्री’ के दावेदार बन गए हैं। आज की दुनिया में शहर में रहने वाले इंसान का सबसे बड़ा सपना होता है, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना। आप चाहे जहाँ कहीं किसी को भी रास्ते में रोककर पूछ सकते हैं कि “आप के जीवन का उद्देश्य क्या है?” हमेशा एक ही उत्तर मिलेगा “बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना।“ हाँ यह बात अलग है कि इस उत्तर को देने वाला व्यक्ति उत्तर देते वक़्त व्यवहार क्या करता है। मैंने भी यही सवाल एक दोस्त से किया। पहले तो उसने मेरी तरफ़ आश्चर्य से ऐसे देखा जैसे मैंने कोई बेहद निरर्थक क़िस्म का सवाल किया है, फिर सजल नेत्रों से भर्राए गले के साथ बोला- |
Latest revision as of 14:29, 10 July 2015
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|fesabuk par bharatakosh (nee shuruat) bharatakosh abhibhavak -adity chaudhari ek sau pachchis karo d ki abadi, 6 lakh 38 hazar se adhik gaanvoan aur qarib 18 sau nagar-qasboan vale hamare desh mean qarib 35 karo d chhatraean-chhatr haian. jo 16 lakh se adhik shikshan sansthanoan aur 700 vishvavidyalayoan mean samate haian. du:khad yah hai ki vishv ke mukhy 100 shikshan sansthanoan mean kisi bhi bharatiy shikshan sansthan ka nam-o-nishaan nahian hai. |
tika tippani aur sandarbh
pichhale sampadakiy