डेरियस प्रथम

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डेरियस प्रथम अथवा 'दारा प्रथम' अथवा 'दारयबहु' (लगभग ई. पू. 522-486) ईरान के अख़ामनी वंश का तीसरा सबसे शक्तिशाली और इतिहास प्रसिद्ध राजा था। उसे इतिहास में धार्मिक सहिष्णुता तथा अपने शिलालेखों के लिए जाना जाता है। वह फ़ारसी साम्राज्य के संस्थापक 'साइरस' के बाद अख़ामनी वंश का सबसे प्रभावशाली शासक माना जाता है।

राजगद्दी तथा विद्रोह

कांबीसीस के बाद हिस्टास्पीस का लड़का 'डेरियस प्रथम' या 'दारा प्रथम' पर्शिया की गद्दी पर बैठा। उसे प्रारंभ में जबरदस्त विद्रोहियों का सामना करना पड़ा था। विद्रोहियों में सबसे प्रबल 'गौमता' नाम का एक व्यक्ति था, जिसने ईरान के सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। लेकिन डेरियस के सहायकों ने शीघ्र ही गौमता का वध कर दिया। इसके बाद भी पर्शिया के अनेक प्रांतों ने डेरियस प्रथम के विरुद्ध विद्रोह कर स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया। एलाम, बैबीलोनिया, मीडिया, आर्मीनिया, लीडिया एवं मिस्र तथा पर्शिया तक में विद्रोह हुए, लेकिन साहसी और प्रतिभाशाली डेरियस प्रथम ने समस्त विद्रोहियों को कुचलकर पारसीक साम्राज्य को पुन: सुदृढ़ कर दिया। लगभग तीन वर्ष उसे विद्रोह दबाने में लगे। इसके बाद फ़ारस के विस्तृत साम्राज्य में शांति स्थापित हो गई।

साम्राज्य

डेरियस प्रथम के बहिस्तान अभिलेख (लगभग ई. पू. 519) में गंधार के लोगों को भी उसकी प्रजा बताया गया है। 'हमदान', 'परसीपोलिस' तथा 'नक्शेरुस्तम' से प्राप्त उसके एक अन्य अभिलेख में भारतीयों का उल्लेख भी उसकी प्रजा के रूप में किया गया है। हेरोडोटस के अनुसार गंधार उसके साम्राज्य का सातवाँ प्रान्त और भारत अर्थात् सिन्धु घाटी बीसवाँ प्रान्त था। डेरियस प्रथम को अपने भारतीय साम्राज्य से काफ़ी राजस्व प्राप्त होता था और साथ ही यहाँ पर से उसकी सेना के लिए सैनिक भी भेजे जाते थे। इस प्रकार भारत और फ़ारस के बीच अत्यन्त प्राचीन काल से ही सम्बन्ध था, जो कि दिनोंदिन बढ़ता ही गया। फलस्वरूप बहुत से फ़ारसी शब्द भारत में प्रचलित हो गए। फ़ारस के विचारों ने कुछ अंश तक भारतीयों विचारों को भी प्रभावित किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-201

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