मलयगिरी वृक्ष: Difference between revisions

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'''मलयगिरि वृक्ष''' दारचीनी जाति का एक प्रकार का बड़ा और बहुत ऊँचा वृक्ष है। यह वृक्ष [[कामरूप]], [[आसाम]] और [[दार्जिलिंग]] में विशेष रूप से उत्पन्न होता है। मलयगिरी वृक्ष को उगाने के लिए बसंत ऋतु में इसके बीज बोये जाते हैं।
'''मलयगिरी वृक्ष''' दारचीनी जाति का एक प्रकार का बड़ा और बहुत ऊँचा वृक्ष है। यह वृक्ष [[कामरूप]], [[आसाम]] और [[दार्जिलिंग]] में विशेष रूप से उत्पन्न होता है। मलयगिरी वृक्ष को उगाने के लिए [[वसंत ऋतु]] में इसके बीज बोये जाते हैं।
 
*मलयगिरी वृक्ष में कई प्रकार की विशेषताएँ पाई जाती हैं।
*मलयगिरी वृक्ष में कई प्रकार की विशेषताएँ पाई जाती हैं।
*इसकी छाल दो अंगुल से चार-पाँच अंगुल तक मोटी होती है।
*इसकी छाल दो अंगुल से चार-पाँच अंगुल तक मोटी होती है।
*वृक्ष की लकड़ी भारी, पीलापन लिए हुए और [[सफ़ेद रंग]] की होती है।
*वृक्ष की लकड़ी भारी, पीलापन लिए हुए और [[सफ़ेद रंग]] की होती है।
*इसकी छाल और लकड़ी दोनों अपनी ख़ास प्रकार की सुगंध के लिए जानी जाती हैं।
*इसकी छाल और लकड़ी दोनों अपनी ख़ास प्रकार की सुगंध के लिए जानी जाती हैं।
*मलयगिरी वृक्ष की लकड़ी बहुत मजबुत होती है और साफ करने पर चमकदार निकलती है।
*मलयगिरी वृक्ष की लकड़ी बहुत मजबुत होती है और साफ़ करने पर चमकदार निकलती है।
*इसकी लकड़ी कि एक और विशेषता यह है कि इसमें दीमक आदि कीड़े नहीं लगते।
*इसकी लकड़ी कि एक और विशेषता यह है कि इसमें दीमक आदि कीड़े नहीं लगते।
*इससे मेज, कुर्सी और संदुक आदि बनते हैं और साथ ही इमारत आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
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चित्र:Disamb2.jpg मलयगिरी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मलयगिरी (बहुविकल्पी)

मलयगिरी वृक्ष दारचीनी जाति का एक प्रकार का बड़ा और बहुत ऊँचा वृक्ष है। यह वृक्ष कामरूप, आसाम और दार्जिलिंग में विशेष रूप से उत्पन्न होता है। मलयगिरी वृक्ष को उगाने के लिए वसंत ऋतु में इसके बीज बोये जाते हैं।

  • मलयगिरी वृक्ष में कई प्रकार की विशेषताएँ पाई जाती हैं।
  • इसकी छाल दो अंगुल से चार-पाँच अंगुल तक मोटी होती है।
  • वृक्ष की लकड़ी भारी, पीलापन लिए हुए और सफ़ेद रंग की होती है।
  • इसकी छाल और लकड़ी दोनों अपनी ख़ास प्रकार की सुगंध के लिए जानी जाती हैं।
  • मलयगिरी वृक्ष की लकड़ी बहुत मजबुत होती है और साफ़ करने पर चमकदार निकलती है।
  • इसकी लकड़ी कि एक और विशेषता यह है कि इसमें दीमक आदि कीड़े नहीं लगते।
  • इससे मेज, कुर्सी और संदुक आदि बनते हैं और साथ ही इमारत आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मलयगिरी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2012।

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