जूट उद्योग: Difference between revisions

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'''जूट उद्योग''' में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। [[जूट]] 'सोने का रेशा'  के नाम से मशहूर है। जूट उद्योग का पहला कारख़ाना [[कोलकाता]] के समीप रिसरा नामक स्थान में [[1859]] में लगाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला उद्योग यही था, क्योकि तत्कालीन 120 कारखानों में से 10 पूर्वी पाकिस्तान<ref>अब [[बांग्लादेश]]</ref> में चले गये थे, जबकि जूट उत्पादन क्षेत्र का अधिकांश भाग उसके पास था। 110 कारखानों को कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए पश्चिम बंगाल के किसानो को अथक परिश्रम करना पड़ा। शुद्ध कच्चा माल होने के कारण इस उद्योग के कारखानों की स्थापना जूट उत्पादक क्षेत्रों में ही की जाती है।  
'''जूट उद्योग''' में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। [[जूट]] 'सोने का रेशा'  के नाम से मशहूर है। जूट उद्योग का पहला कारख़ाना [[कोलकाता]] के समीप रिसरा नामक स्थान में [[1859]] में लगाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला उद्योग यही था, क्योकि तत्कालीन 120 कारखानों में से 10 पूर्वी पाकिस्तान<ref>अब [[बांग्लादेश]]</ref> में चले गये थे, जबकि जूट उत्पादन क्षेत्र का अधिकांश भाग उसके पास था। 110 कारखानों को [[कच्चा माल]] उपलब्ध कराने के लिए पश्चिम बंगाल के किसानो को अथक परिश्रम करना पड़ा। शुद्ध कच्चा माल होने के कारण इस उद्योग के कारखानों की स्थापना जूट उत्पादक क्षेत्रों में ही की जाती है।  
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[[चित्र:Jute.jpg|thumb|250px|सूखती हुई जूट]] जूट उद्योग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। जूट 'सोने का रेशा' के नाम से मशहूर है। जूट उद्योग का पहला कारख़ाना कोलकाता के समीप रिसरा नामक स्थान में 1859 में लगाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला उद्योग यही था, क्योकि तत्कालीन 120 कारखानों में से 10 पूर्वी पाकिस्तान[1] में चले गये थे, जबकि जूट उत्पादन क्षेत्र का अधिकांश भाग उसके पास था। 110 कारखानों को कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए पश्चिम बंगाल के किसानो को अथक परिश्रम करना पड़ा। शुद्ध कच्चा माल होने के कारण इस उद्योग के कारखानों की स्थापना जूट उत्पादक क्षेत्रों में ही की जाती है।

उत्पादन क्षेत्र

भारत के जूट उद्योग में पश्चिम बंगाल का प्रथम स्थान है। देश के कुल 114 जूट कारखानों में से 102 यहीं स्थापित हैं। यहाँ हुगली नदी के दोनो किनारों पर 3 से 4 किमी की चौड़ाई में 97 किमी लम्बी पेटी में इन कारखानों की स्थापना की गयी है। रिसरा से नईहाटी तक विस्तृत 24 किमी लम्बी पट्टी में तो इस उद्योग का सर्वाधिक केन्द्रीकरण हो गया है। यहाँ जूट उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं- रिसरा, बाली, अगरपाड़ा, टीटागढ़, बांसबेरिया, कानकिनारा, उलबेरिया, सीरामपुर, बजबज, हावड़ा, श्यामनगर, शिवपुर, सियालदाह, बिरलापुर, होलीनगर, बड़नगर, बैरकपुर, लिलुआ, बाटानगर, बेलूर, संकरेल, हाजीनगर, भद्रेश्वर, जगतदल, आदि।

जूट उद्योग के कारखने

पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश में जूट उद्योग के 4 कारखनें स्थापित किये गये है। इनमें से दो विशाखापटनम में तथा अन्य गुंटूर तथा पूर्वी गोदावरी ज़िलों में स्थित हैं। यहाँ जूट की कृषि का प्रमुख क्षेत्र गोदावरी नदी का डेल्टा है। उत्तर प्रदेश में 3 कारखानें, दो कानपुर तथा एक सहजनवाँ (गोरखपुर) में स्थापित किये गये हैं। कानपुर का कारख़ाना पश्चिम बंगाल से कच्चा जूट लेता है, जबकि सहजनवाँ में तराई क्षेत्र का जूट प्रयोग किया जाता है। बिहार में गया, पूर्णिया, कटिहार तथा दरभंगा, छत्तीसगढ़ में रायगढ़ तथा असम में एक छोटा कारख़ाना इस उद्योग के अन्य कारखाने है।

जूट का निर्माण

भारत में सम्पूर्ण विश्व के 50 प्रतिशत जूट के सामानों का निर्माण किया जाता है और यह एक प्रमुख निर्यातोन्मुखी उद्योग है। भारत सरकार द्वारा जूट के आयात निर्यात एवं आन्तरिक बाज़ार के देख-रेख के लिए 1971 में 'भारतीय जूट निगम' की स्थापना की गई है। 2006-07 में कुल 103 लाख गांठे[2] उत्पादित हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान 26238 हज़ार मीट्रिक टन जूट वस्त्र का निर्माण किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अब बांग्लादेश
  2. प्रत्येक गांठ 180 किग्रा.

बाहरी कड़ियाँ

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