Difference between revisions of "गोविन्द विरूदावली"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
 
(4 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
यह अति सुन्दर अनुप्रास - अलंकार युक्त [[भाषा]] में अपनी झंकार से ही गोविन्द को प्रसन्न कर देने वाली गोविन्द की स्तुति है। इसके पीछे एक मनोहर किवदंती है। एक बार एक अनपढ़ चारण ने किसी अन्य [[देवता]] की स्तुति का गोविन्द जी के सम्मुख बड़े भाव से गान किया। स्तुति अनुप्रास भरी [[डिंगल भाषा]] में थी। गोविन्द उसे सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। स्तुति के समाप्त होने पर उनकी माला गले से खिसक पड़ी। इसे गोविन्द की प्रसन्नता का सूचक जान रूपगोस्वामी ने माला गोविन्द के प्रसाद रूप में चारण को दे दी। चारण के चले जाने पर उन्होंने गोविन्द देव से कहा- 'प्रभु चारण तो किसी अन्य [[देवता]] की स्तुति सुना रहा था। आप कैसे उस पर रीझ गये?'
+
'''गोविन्द विरूदावली''' अति सुन्दर [[अनुप्रास अलंकार]] युक्त [[भाषा]] में अपनी झंकार से ही गोविन्द को प्रसन्न कर देने वाली गोविन्द की स्तुति है। इसके पीछे एक मनोहर किवदंती है-
  
गोविन्द ने उत्तर दिया- 'स्तुति अन्य देवता की थी तो क्या? सुना तो मुझे रहा था। इसी प्रकार मेरी स्तुति की रचना तुम करो।' तब रूप गोस्वामी ने इस विरूदावली की रचना की।
+
एक बार एक अनपढ़ [[चारण]] ने किसी अन्य [[देवता]] की स्तुति का गोविन्द जी के सम्मुख बड़े भाव से गान किया। स्तुति अनुप्रास भरी [[डिंगल|डिंगल भाषा]] में थी। गोविन्द उसे सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। स्तुति के समाप्त होने पर उनकी माला गले से खिसक पड़ी। इसे गोविन्द की प्रसन्नता का सूचक जान [[रूपगोस्वामी]] ने माला गोविन्द के प्रसाद रूप में चारण को दे दी। चारण के चले जाने पर उन्होंने गोविन्द देव से कहा- 'प्रभु चारण तो किसी अन्य [[देवता]] की स्तुति सुना रहा था। आप कैसे उस पर रीझ गये?'
  
 +
गोविन्द ने उत्तर दिया- 'स्तुति अन्य [[देवता]] की थी तो क्या? सुना तो मुझे रहा था। इसी प्रकार मेरी स्तुति की रचना तुम करो।' तब रूपगोस्वामी ने इस विरूदावली की रचना की।
  
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
 
==संबंधित लेख==  
 
==संबंधित लेख==  
{{रूपगोस्वामी की रचनाएँ}}
+
{{रूपगोस्वामी की रचनाएँ}}{{भक्ति कालीन साहित्य}}
 
[[Category:सगुण भक्ति]][[Category:भक्ति साहित्य]]
 
[[Category:सगुण भक्ति]][[Category:भक्ति साहित्य]]
 
[[Category:साहित्य_कोश]]
 
[[Category:साहित्य_कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

Latest revision as of 09:18, 22 July 2014

govind viroodavali ati sundar anupras alankar yukt bhasha mean apani jhankar se hi govind ko prasann kar dene vali govind ki stuti hai. isake pichhe ek manohar kivadanti hai-

ek bar ek anapadh charan ne kisi any devata ki stuti ka govind ji ke sammukh b de bhav se gan kiya. stuti anupras bhari diangal bhasha mean thi. govind use sunakar bahut prasann hue. stuti ke samapt hone par unaki mala gale se khisak p di. ise govind ki prasannata ka soochak jan roopagosvami ne mala govind ke prasad roop mean charan ko de di. charan ke chale jane par unhoanne govind dev se kaha- 'prabhu charan to kisi any devata ki stuti suna raha tha. ap kaise us par rijh gaye?'

govind ne uttar diya- 'stuti any devata ki thi to kya? suna to mujhe raha tha. isi prakar meri stuti ki rachana tum karo.' tab roopagosvami ne is viroodavali ki rachana ki.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh