होला मोहल्ला: Difference between revisions
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'''होला मोहल्ला''' [[पंजाब]] का प्रसिद्ध उत्सव है। [[सिक्ख|सिक्खों]] के पवित्र धर्मस्थान [[आनन्दपुर साहिब|श्री आनन्दपुर साहिब]] में [[होली]] के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिक्खों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | ||
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कहते हैं सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस [[हिमाचल प्रदेश]] की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए [[रंग|रंगों]] की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए 'जो बोले सो निहाल' के नारे बुलंद करते हैं। | |चित्र का नाम='होला मोहल्ला' के अवसर पर गुलाल लगाते हुए लोग | ||
|विवरण='होला मोहल्ला' [[पंजाब]] में लगने वाले एक मेले को कहा जाता है। इसमें [[होली]] के समान ही [[रंग]] खेला जाता है। | |||
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'''होला मोहल्ला''' [[पंजाब]] का प्रसिद्ध उत्सव है। [[सिक्ख|सिक्खों]] के पवित्र धर्मस्थान [[आनन्दपुर साहिब|श्री आनन्दपुर साहिब]] में [[होली]] के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिक्खों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस दिन यहाँ पर आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर [[होली]] पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए [[गुरु गोविंद सिंह|गुरु गोविंद सिंह जी]] ने होली के लिए [[पुल्लिंग]] शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरु जी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे। | |||
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*होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। | |||
*इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। | |||
*जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है। | |||
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Latest revision as of 09:35, 3 March 2015
होला मोहल्ला
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विवरण | 'होला मोहल्ला' पंजाब में लगने वाले एक मेले को कहा जाता है। इसमें होली के समान ही रंग खेला जाता है। |
राज्य | पंजाब |
प्रारम्भकर्ता | गुरु गोबिन्द सिंह |
संबंधित लेख | होली, सिक्ख धर्म |
अन्य जानकारी | कहते हैं सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने स्वयं इस 'होला मोहल्ला' की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। |
होला मोहल्ला पंजाब का प्रसिद्ध उत्सव है। सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिक्खों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस दिन यहाँ पर आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए गुरु गोविंद सिंह जी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरु जी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे।
- कहते हैं सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।
- होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है।
- इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं।
- जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है।
- पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए 'जो बोले सो निहाल' के नारे बुलंद करते हैं।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख