नागौर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{पुनरीक्षण}}{{tocright}} नागौर राजस्थान का एक ज़िला, जो [[जय...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब")
 
(16 intermediate revisions by 7 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}{{tocright}}
[[चित्र:Nagaur-Fort.jpg|thumb|250px|नागौर क़िला]]
नागौर [[राजस्थान]] का एक ज़िला, जो [[जयपुर]] से उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र प्राकऐतिहासिक है, किंतु नागौर की प्रसिद्धि मध्ययुगीन है। सपादलक्ष अर्थात सांभर एवं नागौर चौहानों के मूल स्थान थे।  
'''नागौर''' [[राजस्थान]] राज्य, [[जयपुर]] से उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र प्राकऐतिहासिक है, किंतु नागौर की प्रसिद्धि मध्ययुगीन है। सपादलक्ष अर्थात् सांभर एवं नागौर चौहानों के मूल स्थान थे।  
==इतिहास==
==इतिहास==
[[भारत]] में तुर्को के आगमन के साथ ही नागौर उनकी शाक्ति का केन्द्र बन गया। नागौर महाराणा कुम्भा के अधीन भी रहा। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में [[गुजरात]] के मुस्लिम शासकों की नागौर की राजनीति में दिलचस्पी रही। सन 1534 ई. में गुजरात के शासक [[बहादुरशाह द्वितीय]] ने नागौर पर थोड़े समय के लिए अधिकार कर लिया था।
{{tocright}}
सम्राट [[अकबर]] के समय में नागौर मुग़ल साम्राज्य का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक राजपूत राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।
[[भारत]] में तुर्को के आगमन के साथ ही नागौर उनकी शाक्ति का केन्द्र बन गया। नागौर [[महाराणा कुम्भा]] के अधीन भी रहा। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में [[गुजरात]] के [[मुस्लिम]] शासकों की नागौर की राजनीति में दिलचस्पी रही। सन् 1534 ई. में [[गुजरात]] के शासक [[बहादुरशाह द्वितीय]] ने नागौर पर थोड़े समय के लिए अधिकार कर लिया था।  
====<u>प्रसिद्ध केन्द्र</u>====
राजस्थान में [[अजमेर]] के बाद नागौर ही सूफी मत का प्रसिद्ध केन्द्र रहा। यहाँ पर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य शेख हमीदुद्दीन नागौरी (1192-1274 ई.) ने अपने गुरु के आदेशानुसार सूफी मत का प्रचार-प्रसार किया। यद्यपि इनका जन्म [[दिल्ली]] में हुआ था लेकिन इनका अधिकांश समय नागौर में ही बीता। इन्होंने अपना जीवन एक आत्मनिर्भर किसान की तरह गुजारा और नागौर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति सुवाल नामक गाँव में खेती की। वे पूर्णतः शाकाहारी थे एवं अपने शिष्यों से भी शाकाहारी रहने को कहते थे। इनकी गरीबी को देखकर नागौर के प्रशासक ने इन्हें कुछ नकद एवं ज़मीन देने की पेशकश की, जिसको इन्होंने अस्वीकार कर दिया।
====<u>गुम्बद का निर्माण</u>====
हमीदुद्दीन नागौरी समंवयवादी थे इन्होंने भारतीय वातावरण के अनुरूप सूफी आन्दोलन को आगे को आगे बढ़ाया। नागौर में चिश्ती सम्प्रदाय के इस सूफी संत की मजार आज भी याद दिला रही है। इस मजार पर [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] ने एक गुम्बद का निर्माण करवाया था जो 1330 ई. में बनकर पूर्ण हुआ।
====<u>सम्प्रदाय का केन्द्र</u>====
नागौर को सूफी मत के केन्द्र के रूप में पुनर्स्थापित करने की दिशा में यहाँ के सूफी संत ख्वाजा मखदूम हुसैन नागौरी (15वीं शताब्दी) का नाम उल्लेखनीय है। 16 वीं शताब्दी में नागौर में राजपूत शाक्ति के उदय के बावजूद भी नागौर सूफी सम्प्रदाय का केन्द्र बना रहा। अकबर के दरबारी शेख मुबारक के पिता एवं [[अबुल फ़जल]] के दादा शेख खिज्र नागौर में ही आकर बस गये थे।
नागौर की प्राचीन इमारतों में अतारिकिन का विशाल दरवाजा प्रसिद्ध है, जिसे 1230 ई. में [[इल्तुतमिश]] ने बनवाया था।  


{{प्रचार}}
सम्राट [[अकबर]] के समय में नागौर [[मुग़ल साम्राज्य]] का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक [[राजपूत]] राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।
{{लेख प्रगति
==प्रसिद्ध केन्द्र==
|आधार=
राजस्थान में [[अजमेर]] के बाद नागौर ही सूफी मत का प्रसिद्ध केन्द्र रहा। यहाँ पर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य शेख हमीदुद्दीन नागौरी (1192-1274 ई.) ने अपने गुरु के आदेशानुसार सूफी मत का प्रचार-प्रसार किया। यद्यपि इनका जन्म [[दिल्ली]] में हुआ था लेकिन इनका अधिकांश समय नागौर में ही बीता। इन्होंने अपना जीवन एक आत्मनिर्भर किसान की तरह गुजारा और नागौर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति सुवाल नामक गाँव में खेती की। वे पूर्णतः शाकाहारी थे एवं अपने शिष्यों से भी शाकाहारी रहने को कहते थे। इनकी ग़रीबी को देखकर नागौर के प्रशासक ने इन्हें कुछ नकद एवं ज़मीन देने की पेशकश की, जिसको इन्होंने अस्वीकार कर दिया। [[चित्र:Nagaur-Abandoned-Palace.jpg|thumb|right|250px|नागौर]]
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
==गुम्बद का निर्माण==
|माध्यमिक=
हमीदुद्दीन नागौरी समंवयवादी थे इन्होंने भारतीय वातावरण के अनुरूप सूफी आन्दोलन को आगे को आगे बढ़ाया। नागौर में [[चिश्ती सम्प्रदाय]] के इस सूफी संत की मजार आज भी याद दिला रही है। इस मजार पर [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] ने एक गुम्बद का निर्माण करवाया था जो 1330 ई. में बनकर पूर्ण हुआ।
|पूर्णता=
 
|शोध=
==सम्प्रदाय का केन्द्र==
}}
नागौर को सूफी मत के केन्द्र के रूप में पुनर्स्थापित करने की दिशा में यहाँ के सूफी संत ख्वाजा मखदूम हुसैन नागौरी (15वीं शताब्दी) का नाम उल्लेखनीय है। 16 वीं शताब्दी में नागौर में राजपूत शाक्ति के उदय के बावजूद भी नागौर सूफी सम्प्रदाय का केन्द्र बना रहा। अकबर के दरबारी शेख मुबारक के पिता एवं [[अबुल फ़जल]] के दादा शेख ख़िज़्र नागौर में ही आकर बस गये थे।
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
नागौर की प्राचीन इमारतों में अतारिकिन का विशाल दरवाज़ा प्रसिद्ध है, जिसे 1230 ई. में [[इल्तुतमिश]] ने बनवाया था।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
==संबंधित लेख==
{{राजस्थान के नगर}}
[[Category:राजस्थान]]
[[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक नगर]]
[[Category:राजस्थान के नगर]]
[[Category:भारत के नगर]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 09:16, 12 April 2018

thumb|250px|नागौर क़िला नागौर राजस्थान राज्य, जयपुर से उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र प्राकऐतिहासिक है, किंतु नागौर की प्रसिद्धि मध्ययुगीन है। सपादलक्ष अर्थात् सांभर एवं नागौर चौहानों के मूल स्थान थे।

इतिहास

भारत में तुर्को के आगमन के साथ ही नागौर उनकी शाक्ति का केन्द्र बन गया। नागौर महाराणा कुम्भा के अधीन भी रहा। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में गुजरात के मुस्लिम शासकों की नागौर की राजनीति में दिलचस्पी रही। सन् 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह द्वितीय ने नागौर पर थोड़े समय के लिए अधिकार कर लिया था।

सम्राट अकबर के समय में नागौर मुग़ल साम्राज्य का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक राजपूत राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।

प्रसिद्ध केन्द्र

राजस्थान में अजमेर के बाद नागौर ही सूफी मत का प्रसिद्ध केन्द्र रहा। यहाँ पर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य शेख हमीदुद्दीन नागौरी (1192-1274 ई.) ने अपने गुरु के आदेशानुसार सूफी मत का प्रचार-प्रसार किया। यद्यपि इनका जन्म दिल्ली में हुआ था लेकिन इनका अधिकांश समय नागौर में ही बीता। इन्होंने अपना जीवन एक आत्मनिर्भर किसान की तरह गुजारा और नागौर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति सुवाल नामक गाँव में खेती की। वे पूर्णतः शाकाहारी थे एवं अपने शिष्यों से भी शाकाहारी रहने को कहते थे। इनकी ग़रीबी को देखकर नागौर के प्रशासक ने इन्हें कुछ नकद एवं ज़मीन देने की पेशकश की, जिसको इन्होंने अस्वीकार कर दिया। thumb|right|250px|नागौर

गुम्बद का निर्माण

हमीदुद्दीन नागौरी समंवयवादी थे इन्होंने भारतीय वातावरण के अनुरूप सूफी आन्दोलन को आगे को आगे बढ़ाया। नागौर में चिश्ती सम्प्रदाय के इस सूफी संत की मजार आज भी याद दिला रही है। इस मजार पर मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने एक गुम्बद का निर्माण करवाया था जो 1330 ई. में बनकर पूर्ण हुआ।

सम्प्रदाय का केन्द्र

नागौर को सूफी मत के केन्द्र के रूप में पुनर्स्थापित करने की दिशा में यहाँ के सूफी संत ख्वाजा मखदूम हुसैन नागौरी (15वीं शताब्दी) का नाम उल्लेखनीय है। 16 वीं शताब्दी में नागौर में राजपूत शाक्ति के उदय के बावजूद भी नागौर सूफी सम्प्रदाय का केन्द्र बना रहा। अकबर के दरबारी शेख मुबारक के पिता एवं अबुल फ़जल के दादा शेख ख़िज़्र नागौर में ही आकर बस गये थे।

नागौर की प्राचीन इमारतों में अतारिकिन का विशाल दरवाज़ा प्रसिद्ध है, जिसे 1230 ई. में इल्तुतमिश ने बनवाया था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख